अविनाश श्रीवास्तव रोहतास, सासाराम। रोजमर्रा की भागदौड़ के बीच सासाराम शहर का एक शांत किनारा ऐसा भी है, जहां पहुंचकर लोग इतिहास से गहरा जुड़ाव महसूस करते हैं। हसन शाह सूरी का ऐतिहासिक मकबरा-जिसे स्थानीय लोग सुखा रौज़ा के नाम से ज्यादा जानते हैं-आज भी शहर की सांस्कृतिक आत्मा को मजबूत पकड़ कर खड़ा है।
पीढ़ियों से जुड़ी यादें
सासाराम के कई बुजुर्ग बताते हैं कि उन्होंने बचपन में इस मकबरे की सीढ़ियों पर खेलते हुए इतिहास को महसूस किया है। शेरशाह सूरी के पिता हसन खान सूरी की याद में बने इस स्मारक को देखकर लोगों के चेहरे पर गर्व साफ झलकता है। हमारे शहर का गौरव है यह जगह स्थानीय निवासी अक्सर यही कहते सुनाई देते हैं।
कला, इतिहास और शांति का मेल
लाल बलुआ पत्थर से बना यह मकबरा अपने आप में कला का अद्भुत नमूना है। इसकी दीवारों पर की गई बारीक नक्काशी और पत्थर की जालीदार स्क्रीन हर आने वाले पर्यटक को हैरान कर देती है। फारसी और भारतीय वास्तुकला का जो मेल यहां दिखाई देता है, वह Indo-Islamic शैली की अनमोल मिसाल है। पर्यटकों का कहना है कि यहां सिर्फ ऐतिहासिक सौंदर्य ही नहीं, बल्कि एक अनोखी शांति भी महसूस होती है।
शेरशाह के मकबरे का पड़ोसी
हसन शाह सूरी का यह मकबरा शेरशाह सूरी के विश्व प्रसिद्ध मकबरे के पास स्थित है। एक तरफ यूनेस्को में दर्ज शेरशाह का भव्य रौज़ा और दूसरी ओर यह शांत, कलात्मक संरचना-दोनों मिलकर सासाराम को भारत के ऐतिहासिक नक्शे में खास मुकाम देते हैं।
पर्यटन और स्थानीय पहचान
आज यह मकबरा सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि सासाराम की पहचान, लोगों की भावनाओं और इतिहास की धरोहर का प्रतीक बन चुका है। दूर-दराज से आने वाले यात्री यहां के इतिहास को जानने और इस मिट्टी की खुशबू को महसूस करने पहुंचते हैं।
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