शिखिल ब्यौहार, भोपाल। Former VP Jagdeep Dhankhar: पूर्व उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ आज मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल पहुंचे। इस दौरान वह ‘हम और यह विश्व’ पुस्तक के विमोचन में शामिल हुए। यह पुस्तक ऑल इंडिया एग्जीक्यूटिव मेंबर डॉ. मनमोहन वैद्य ने लिखी है। जिसका विमोचन कार्यक्रम रविंद्र भवन में आयोजित हुआ। इस कार्यक्रम में देश के पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनगड़ और आश्रम वृंदावन के पीठाधीश्वर पूज्य रीतेश्वर महाराज समेत कई हस्तियां शामिल हुई।
धनखड़ ने कहा- हम कठिन समय में हैं, मुझसे बेहतर कौन जान सकता है?
उन्होंने आगे कहा, ‘इस कार्यक्रम में शील होना मेरे लिए गर्व की बात है। इस महायज्ञ में मेरी भी आहुति होगी। हम ऐसे युग में हैं, जहां धारणा ही सब तय करती है। यह लेखक नहीं चिंतक हैं।संघ शताब्दी वर्ष में इस पुस्तक का विमोचन हो रहा है। यह पुस्तक हमारे गौरवशाली भविष्य का आईना है। वर्तमान की चुनौतियों के लिए समझने और भविष्य निर्माण का आधार भी है। यह पुस्तक सोए हुए को जगा देगी। यहां से चुनौती आ रही है। यह समय बेहद चुनौती का समय है।’ आज हमारा भारत बदल रहा है। अतीत के गौरव को याद दिलाता है। इंडिया एक बार फिर राइज कर रहा है। जो सोया हुआ है उसका जगा सकते हैं, लेकिन जो जाग के सोया हुआ उसके लिए कुछ भी कर लो क्या हो सकता है? हम कठिन समय में हैं, मुझसे बेहतर कौन जान सकता है?
‘मैं फ्लाइट पकड़ने की चिंता से अपने कर्तव्य को नहीं छोड़ सकता’
कार्यक्रम में जगदीप धनखड़ कह रहे थे कि आज के समय में लोग नैतिकता और आध्यात्मिकता से दूर होते जा रहे हैं। इस दौरान किसी ने उन्हें बताया कि फ्लाइट का समय हो रहा है। इस पर उन्होंने कहा, मैं फ्लाइट पकड़ने की चिंता से अपने कर्तव्य को नहीं छोड़ सकता। मेरा हाल का अतीत इसका सबूत है।’
‘भगवान करे कोई नैरेटिव के चक्कर में न फंस जाए’
पूर्व उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इस दौरान बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा, ‘भगवान करे कोई नरेटिव में न फंस जाए। अगर कोई फंस गया तो निकलना मुश्किल हो। मैं अपने बारे में बात नहीं कर रहा हूं।’ उनके यह कहते ही सभी ठहाके मारकर हंसने लगे।
रीतेश्वर जी महाराज ने दिए आशीर्वचन
सुरुचि प्रकाशन के इस पुस्तक के विमोचन समारोह को वक्ता के रूप में आर्शीवचन देते हुए पूज्य रीतेश्वर जी महाराज ने कहा कि पुस्तक अध्यात्म को महत्व देती है। भारतीय संस्कृति भी मैं को महत्व देती है। क्योंकि ‘मैं’ को जाने बिना ‘हम’ को नहीं समझा जा सकता है। यहां उन्होंने संघ में जनमानस की रूचि उत्पन्न करने के लिये सुरुचि प्रकाशन के योगदान को महत्वपूर्ण बताया। जबकि सुरुचि प्रकाशन के अध्यक्ष राजीव तुली का कहना था कि यह पुस्तक संवाद स्थापित करती है। लिखने की शैली आनंददायक है। समाज के मौजूदा सवालों का उत्तर इसी पुस्तक मिल जाता है।
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