Justice Surya Kant: कौन हैं जस्टिस सूर्यकांत, जानें उनके 10 बड़े फैसले

जस्टिस सूर्य कांत ने देश के 53वें मुख्य न्यायाधीश के तौर पर पदभार संभाल लिया है.

हरियाणा के हिसार में 10 फरवरी 1962 को जन्मे जस्टिस सूर्यकांत बेहद साधारण परिवार से निकलकर देश की सर्वोच्च अदालत के शीर्ष पद तक पहुंचे हैं.

उन्होंने शुरुआती वकालत हिसार में की और बाद में पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट में प्रैक्टिस जारी रखी. साल 2018 में उन्हें हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया था.

जस्टिस सूर्यकांत के 10 बड़े फैसले

1. अनुच्छेद 370 पर ऐतिहासिक फैसला

जस्टिस सूर्यकांत उस पांच जजों की संविधान पीठ का हिस्सा थे, जिसने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले को वैध करार दिया.

2. राजद्रोह कानून पर रोक

उन्होंने उस पीठ में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने धारा 124A (राजद्रोह) पर प्रभावी रोक लगाई

3. पेगासस जासूसी विवाद

पेगासस स्पाइवेयर मामले में जस्टिस सूर्यकांत ने जांच के लिए साइबर विशेषज्ञों की विशेष समिति गठित करने के फैसले में भाग लिया.

4. बिहार मतदाता सूची विवाद

उन्होंने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि मतदाता सूची से हटाए गए 65 लाख नामों का पूरा विवरण सार्वजनिक किया जाए, जिससे चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित हो सके.

5. महिलाओं के अधिकार और स्थानीय निकाय शासन

जस्टिस सूर्यकांत ने एक महिला सरपंच को पद से हटाने को गैरकानूनी बताते हुए बहाल किया और अपने निर्णय में कहा कि महिलाओं के खिलाफ भेदभाव अस्वीकार्य है.

6. राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्तियों पर विचार

वह उस संविधान पीठ का हिस्सा हैं जो राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्तियों से जुड़े महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई कर रही है. इन पर अभी फैसला आना बाकी है.

7. पीएम मोदी की सुरक्षा चूक की जांच

2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पंजाब दौरे के दौरान सुरक्षा चूक पर उन्होंने जस्टिस इंदु मल्होत्रा की अध्यक्षता में जांच कमेटी बनाने के आदेश दिए थे.

8. वन रैंक-वन पेंशन (OROP)

OROP योजना को उन्होंने संवैधानिक मान्यता दी और इसे सही ठहराया था.

9. महिला अधिकारों पर मजबूत स्टैंड

उन्होंने अपने अलग फैसले में कहा था कि कानूनी पेशे और संस्थानों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना समय की मांग है, इसलिए बार एसोसिएशनों में आरक्षण जरूरी है.

10. रणवीर इलाहाबादिया मामला

उन्होंने पॉडकास्टर रणवीर इलाहाबादिया को अपमानजनक टिप्पणियों पर चेतावनी दी और कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब सामाजिक मर्यादाएं तोड़ने का अधिकार नहीं है.