अमित पांडेय, खैरागढ़। साफ पेयजल के नाम पर वर्षों से सिर्फ़ भरोसे के ढेर पर बैठा खैरागढ़ अब खुलकर बीमारियों की चपेट में है। लिमउटोला में 31 अक्टूबर को 37 वर्षीय समारू गोंड की मौत के बाद भी सिस्टम नहीं जागा और नतीजा यह कि अब नया करेला गांव में दूषित पानी पीने से 50 से अधिक लोग उल्टी-दस्त और डायरिया से बेहाल हैं। स्वास्थ्य विभाग को आपात चिकित्सा शिविर लगाना पड़ा, जबकि 5 गंभीर मरीजों को राजनांदगांव मेडिकल कॉलेज भेजना पड़ा है। सवाल फिर वही है, अंततः जिम्मेदार कब जागेंगे?

दूषित जल प्रवाह की बार-बार शिकायत करने पर भी किसी ने नहीं ली सुध

लिमउटोला निवासी समारू गोंड की मौत ने पूरे इलाके को झकझोर दिया था। लगातार उल्टी-दस्त और पेट दर्द की शिकायत के बाद 31 अक्टूबर की रात उन्हें सिविल अस्पताल खैरागढ़ लाया गया था, पर इलाज के दौरान उनकी जान नहीं बच सकी। ग्रामीण तब भी पीएचई विभाग और ग्राम पंचायत को जिम्मेदार ठहरा रहे थे। उनका आरोप था कि पाइपलाइन लीकेज, गंदे नालों के संपर्क और दूषित जल प्रवाह की शिकायतें बार-बार करने के बाद भी किसी ने सुध नहीं ली। इसके बावजूद हालात सुधरने के बजाय और बिगड़ गए। नया करेला गांव की पेयजल पाइपलाइन कई जगह नालियों से सटकर गुजर रही है और लीकेज के चलते गंदा पानी सीधे सप्लाई लाइन में घुसता रहा।

ग्रामीण कहते हैं “पहले लिमउटोला में मौत हुई, फिर भी पंचायत और पीएचई सोते रहे। अगर तब कार्रवाई हो जाती, तो आज पूरा नया करेला बीमारी से नहीं जूझ रहा होता।”

स्वास्थ्य विभाग ने लगाया जांच शिविर

बढ़ते मरीजों की भीड़ को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग को गांव में आपात स्वास्थ्य शिविर लगाना पड़ा। खैरागढ़ विकासखंड चिकित्सा अधिकारी डॉ. विवेक सेन ने पुष्टि की कि 23 तारीख से लगातार मरीज बढ़े हैं और मेडिकल टीमों को मॉर्निंग इवनिंग-नाइट तीनों शिफ्ट में लगाया गया है। स्वास्थ्य विभाग लगातार निगरानी बढ़ा रहा है।

वहीं पीएचई ने पानी के सैंपल लेकर जांच और पाइपलाइन सुधार की प्रक्रिया शुरू की है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या पीएचई विभाग हर बार तब जागेगा जब हालात अस्पतालों के दरवाज़े तक पहुंच जाएं? लिमउटोला के समारू गोंड की मौत एक चेतावनी थी; अब नया करेला में 50 लोग बीमार हैं, यह दूसरी। अगर इससे भी जिम्मेदार नहीं चेते, तो अगली चेतावनी और भी भारी पड़ सकती है।

खैरागढ़ के ग्रामीणों का दर्द एक ही है कब तक दूषित पानी पीकर अपनी जान दांव पर लगाते रहेंगे? आखिर कब मिलेगा साफ पानी? प्रशासन की चुप्पी और विभागीय सुस्ती इस संकट को हल नहीं, बल्कि और गहरा रही है।