रायपुर। छत्तीसगढ़ का बस्तर क्षेत्र कभी नक्सल हिंसा, डर, अविश्वास और विकास से दूर रहने के लिए जाना जाता था. घने जंगलों, दुर्गम पहाड़ियों और सीमित संपर्क व्यवस्था के कारण यहाँ शासन-प्रशासन की मौजूदगी भी कमजोर थी. स्कूल बंद रहते थे, सड़कें अधूरी थीं, स्वास्थ्य केंद्र वीरान थे, और आमजन का जीवन भय के साए में गुजरता था. लेकिन आज प्रदेश के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के कुशल नेतृत्व में उसी बस्तर ने करवट ली है.

नक्सलमुक्त ग्रामों की नई तस्वीर पूरे देश के सामने एक प्रेरक कहानी बनकर उभर रही है. सुकमा जिले का बड़ेसट्टी गांव बस्तर संभाग की पहली नक्सल-मुक्त ग्राम पंचायत घोषित होना इस बदलाव का ऐतिहासिक प्रमाण है. यह केवल एक गांव की उपलब्धि नहीं, बल्कि पूरे बस्तर की नई पहचान की शुरुआत है. यह सफलता सुरक्षाबलों के साहस, स्थानीय ग्रामीणों के सहयोग और राज्य सरकार की सशक्त, संवेदनशील एवं दूरदर्शी नीतियों का प्रतिफल है.

नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या में ऐतिहासिक कमी- साय सरकार की कोशिशें पा रही सफलता

राज्य सरकार के अनुसार पहले जहां छत्तीसगढ़ में छह जिले गंभीर रूप से नक्सल प्रभावित थे, वहीं अब यह संख्या घटकर केवल तीन – बीजापुर, सुकमा और नारायणपुर – तक सिमट गई है. यह गिरावट केवल आंकड़ों का खेल नहीं है, बल्कि जमीन पर हुई ठोस कार्यवाही और सतत विकास प्रयासों का परिणाम है.

मुख्यमंत्री श्विष्णुदेव साय ने स्पष्ट किया है कि सरकार का लक्ष्य 31 मार्च 2026 तक पूरे छत्तीसगढ़ को नक्सलमुक्त बनाना है, और यह लक्ष्य अब दूर नहीं है. जिस तेजी और संकल्प के साथ कार्य हो रहा है, उससे यह स्पष्ट है कि बस्तर अब हिंसा नहीं, शांति और विकास की ओर बढ़ रहा है.इस सिलसिले में राज्य के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने 100 से अधिक बार बस्तर की यात्रा कर ली है.

सुरक्षाबलों का अदम्य साहस और साय सरकार की रणनीतिक बढ़त

इस ऐतिहासिक बदलाव के पीछे सुरक्षाबलों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड (DRG), केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) और अन्य सुरक्षा एजेंसियों ने नक्सल प्रभावित इलाकों में लगातार सघन अभियान चलाए. घने जंगलों, दुर्गम पहाड़ियों और कठिन परिस्थितियों के बावजूद हमारे जवानों ने अद्भुत साहस, सूझबूझ और वीरता का परिचय दिया.

सुकमा, बीजापुर और नारायणपुर जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में लगातार मुठभेड़ों और सर्च ऑपरेशनों के माध्यम से नक्सलियों के ठिकानों को ध्वस्त किया गया. यह सभी अभियान खुफिया जानकारी के आधार पर योजनाबद्ध तरीके से चलाए गए, जिससे नक्सली नेटवर्क की कमर टूट गई.बीते लगभग 22 महीनों में – 477 नक्सली मारे गए, 2110 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया, 1785 नक्सली गिरफ्तार किए गए. ये आँकड़े इस बात के साक्ष्य हैं कि अब बस्तर में बंदूक नहीं, संविधान की शक्ति विजयी हो रही है.

आत्मसमर्पण के साथ नक्सली बढ़ रहे हिंसा से मुख्यधारा की ओर

हाल ही में राज्य की साय सरकार के पहल पर 258 नक्सलियों का आत्मसमर्पण इस बात का संकेत है कि अब नक्सली भी यह समझने लगे हैं कि हिंसा का रास्ता केवल विनाश की ओर ले जाता है जबकि शांति का मार्ग विकास और सम्मान की ओर. मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने बेहद मार्मिक शब्दों में यह कहा भी है कि “हिंसा की राह अंतहीन दर्द देती है, आत्मसमर्पण जीवन को नई दिशा देता है.” यह कथन केवल एक संदेश नहीं बल्कि उन सैकड़ों युवाओं के लिए आशा की किरण है जो कभी नक्सलवाद की गिरफ्त में थे और अब सामान्य जीवन जीने की ओर लौटना चाहते हैं.

राज्य सरकार की “नक्सलवादी आत्मसमर्पण एवं पुनर्वास नीति 2025” के तहत उन्हें न केवल कानूनी संरक्षण दिया जा रहा है बल्कि रोजगार, शिक्षा, आवास और सामाजिक पुनर्वास की व्यवस्था भी की जा रही है. यह नीति दर्शाती है कि प्रदेश सरकार का उद्देश्य केवल नकसलवादियों के प्रति सख्ती नहीं बल्कि संवेदना और पुनर्निर्माण भी है.

नियद नेल्ला नार” योजना बना बस्तर में विकास और संवाद का नया सेतु

बस्तर में बदलाव की इस कहानी में राज्य के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में आरम्भ हुई “नियद नेल्ला नार योजना” की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है. इस योजना का उद्देश्य है – दूरस्थ और आदिवासी क्षेत्रों तक सरकार की सीधी पहुंच, जनसंवाद को बढ़ावा और जनविश्वास का निर्माण.

इस योजना के तहत अब तक 64 नए सुरक्षा कैंप स्थापित किए गए, दूरस्थ गांवों में प्रशासन की नियमित पहुँच बनी, बस्तर में नागरिक सुविधाओं का विस्तार हुआ, स्कूल, आंगनबाड़ी, स्वास्थ्य केंद्र पुनः सक्रिय हुए और राशन, पेयजल, बिजली और सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं में उल्लेखनीय वृद्धि हुई. बस्तर में नियद नेल्ला नार योजना के क्रियान्वयन के बाद जहां कभी सरकारी अधिकारी पहुंचने से डरते थे आज वही अधिकारी ग्रामीणों के बीच बैठकर उनकी समस्याएं सुन रहे हैं. शासन और जनता के बीच बना आत्मीय संबंध बस्तर के भविष्य की सबसे बड़ी पूंजी है.

भयमुक्त हुआ उत्तर बस्तर और अबूझमाड़

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने घोषणा की है कि उत्तर बस्तर और अबूझमाड़ अब नक्सल आतंक से पूर्णतः मुक्त हो चुके हैं. ये वही क्षेत्र हैं जिन्हें कभी नक्सलवाद का सबसे मजबूत गढ़ माना जाता था. आज वहां स्कूलों में बच्चों की आवाज़ गूंज रही है, सड़कों पर विकास के वाहन दौड़ रहे हैं, बाजारों में रौनक लौट आई है और लोग बिना भय के जीवन जी रहे हैं. प्रदेश के बस्तर क्षेत्र का यह परिवर्तन केवल प्रशासनिक नहीं बल्कि सामाजिक और मानसिक भी है. क्योंकि अब यहाँ भय का स्थान आत्मविश्वास ले रहा है.

केंद्र और राज्य के समन्वय से मिली ऐतिहासिक सफलता

बस्तर को भयमुक्त कर देने वाली इस उपलब्धि के पीछे डबल इंजन सरकार का मजबूत समन्वय भी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के स्पष्ट मार्गदर्शन और सहयोग से नक्सल उन्मूलन अभियान ने अभूतपूर्व गति पकड़ी है.केंद्रीय गृह मंत्री ने सोशल मीडिया पर यह जानकारी साझा की कि “अबूझमाड़ और उत्तर बस्तर जैसे क्षेत्र अब पूरी तरह नक्सल मुक्त हो चुके हैं.” उन्होंने इसे भारत की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था की बड़ी सफलता बताते हुए कहा कि अब देश नक्सलवाद के अंत की दहलीज पर खड़ा है. यह केवल एक सैन्य सफलता नहीं, बल्कि लोकतंत्र, संविधान और विकास की जीत है.

शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार से बस्तर के गांवों में लौट रही है रौनक

बस्तर के नक्सलमुक्त होते ही गांवों में विकास की प्रक्रिया तेज हो गई है. जिन स्कूलों पर कभी ताले लगे थे, अब वहां बच्चे पढ़ते नजर आते हैं. स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टर और नर्सों की तैनाती हुई है. बिजली के खंभे, मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट कनेक्टिविटी गांवों को बाहरी दुनिया से जोड़ रही है.सड़क निर्माण से बाजारों तक पहुंच आसान हुई है. कृषि, वनोपज और स्थानीय हस्तशिल्प को नया बाजार मिल रहा है. स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं. युवा वर्ग रोजगार और प्रशिक्षण से जुड़ रहा है. यह सब इस बात का प्रमाण है कि शांति जहां आती है, वहीं विकास स्वतः आता है.

मुख्यमंत्री का स्पष्ट संदेश: हिंसा का कोई स्थान नहीं

राज्य के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने दो टूक शब्दों में स्पष्ट कर दिया है कि “राज्य में अब हिंसा का कोई स्थान नहीं है. जो मुख्यधारा में लौटना चाहते हैं, सरकार उनका स्वागत करती है. लेकिन जो अब भी बंदूक के बल पर आतंक फैलाना चाहते हैं, उन्हें कानून का सख्त सामना करना पड़ेगा.” उनका यह संतुलित और दृढ़ रुख ही नक्सल उन्मूलन की इस सफलता की नींव है.

भविष्य की ओर छत्तीसगढ़ का पूर्ण नक्सलमुक्त बस्तर

छत्तीसगढ़ का बस्तर अब इतिहास के उस मोड़ पर है, जहां नक्सलवाद की लाल कलम से लिखाएक बड़ा अध्याय समाप्त होने जा रहा है. 31 मार्च 2026 तक प्रदेश को पूरी तरह नक्सलमुक्त बनाने का लक्ष्य अब सपना नहीं, बल्कि वास्तविकता के बहुत करीब पहुँच चुका है.बस्तर की धरती जो कभी गोलियों की आवाज से कांपती थी अब वहाँ विकास के गीत गाए जा रहे हैं. यह परिवर्तन आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मजबूत, सुरक्षित और समृद्ध भविष्य की नींव रख रहा है.

नक्सलमुक्त बस्तर के ग्रामों की यह नई तस्वीर साहस, समर्पण और सही नेतृत्व की प्रेरक कहानी है. मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ एक नए युग में प्रवेश कर चुका है – जहां भय नहीं, विश्वास है… जहां हिंसा नहीं, विकास है… और जहां अंधकार नहीं, उजाला है.आज बस्तर केवल नक्शे का एक हिस्सा नहीं, बल्कि भारत की विजयगाथा का उज्ज्वल अध्याय बन चुका है.