रायपुर। छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के अवसर पर गुरुवार को छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग की ओर से महंत घासीदास संग्रहालय के सभागार में भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में संस्कृति एवं पर्यावरण मंत्री राजेश अग्रवाल, जबकि विशेष अतिथि के रूप में विधायक अनुज शर्मा और पुरंदर मिश्रा शामिल हुए. कार्यक्रम की शुरुआत छत्तीसगढ़ महतारी वंदना से की गई.


इस अवसर पर साहित्यकारों का स्वागत-सम्मान किया गया, साथ ही अनेक पुस्तकों का विमोचन और आयोग द्वारा प्रकाशित नई पुस्तकों का लोकार्पण भी किया गया. विभिन्न जिलों से आए साहित्यकारों ने छत्तीसगढ़ी भाषा की वर्तमान स्थिति, आठवीं अनुसूची में शामिल कराने की आवश्यकता और भाषा संवर्धन पर अपने विचार रखे.

मंत्री राजेश अग्रवाल ने संबोधन में कहा कि हर साल 28 नवंबर को छत्तीसगढ़ राजभाषा दिवस मनाया जाता है, और इसी उम्मीद के साथ कि छत्तीसगढ़ी को संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान मिले. उन्होंने कहा कि इस वर्ष भी परंपरा के अनुसार साहित्यकारों का सम्मान और नई पुस्तकों का विमोचन किया गया है.
विधायक अनुज शर्मा ने कहा कि छत्तीसगढ़ी हमारी पहचान की भाषा है. इसे केवल बोलचाल में ही नहीं, बल्कि कार्यालयीन कार्यों और व्यवहार में भी अपनाना जरूरी है.
राजभाषा आयोग की सचिव डॉ. अभिलाषा बेहार ने बताया कि कार्यक्रम बेहद विशेष रहा. कुल 13 साहित्यकारों की पुस्तकों का विमोचन और 6 वरिष्ठ साहित्यकारों का सम्मान किया गया. आयोग ने दो नई पुस्तकों का प्रकाशन भी किया है, जिससे आठवीं अनुसूची में छत्तीसगढ़ी की दावेदारी और मजबूत होगी. उन्होंने कहा कि आयोग छत्तीसगढ़ी को जन-जन की भाषा बनाने के लिए लगातार प्रयासरत है.
कलेक्ट्रेट गार्डन में भी हुआ विशेष आयोजन
राजभाषा दिवस पर शुक्रवार को कलेक्ट्रेट गार्डन में भी विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया. यहां भी कार्यक्रम की शुरुआत छत्तीसगढ़ महतारी की वंदना से हुई. कार्यक्रम में साहित्यकार, कलाकार, जनप्रतिनिधि, पत्रकार, शिक्षक और बड़ी संख्या में छात्र शामिल हुए.

छत्तीसगढ़ी भाषा संरक्षण अभियान से जुड़े साहित्यकार नंद किशोर शुक्ल ने बताया कि 28 नवंबर 2007 को विधानसभा में छत्तीसगढ़ राजभाषा संशोधन विधेयक सर्वसम्मति से पारित हुआ था. इसके बाद 2008 में राजभाषा आयोग गठित हुआ, जिसने प्रशासनिक शब्दकोश, कार्यालयीन पुस्तिकाएं और हजारों पृष्ठों का साहित्य तैयार किया.

उन्होंने कहा कि संसाधन और आयोग होने के बावजूद सरकारी कार्यालयों में छत्तीसगढ़ी का उपयोग आज भी सीमित है. छत्तीसगढ़ी समृद्ध और प्राचीन भाषा है, लेकिन न पढ़ाई में इसका स्थान है और न सरकारी कामकाज में, जिससे भाषा और विरासत कमजोर होती जा रही है.

कार्यक्रम में सामाजिक संगठनों और भाषा प्रेमियों ने एक स्वर में मांग की कि कक्षा पाँचवीं तक छत्तीसगढ़ी भाषा में शिक्षा अनिवार्य की जाए, जिससे नई पीढ़ी मातृभाषा से जुड़े और भाषा को वास्तविक सम्मान मिल सके.
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