दिल्ली हाई कोर्ट(Delhi High Court) ने पटियाला हाउस फैमिली कोर्ट(Patiyala House Family Court) के एक तलाक फैसले को रद्द करते हुए कड़ी टिप्पणी की है। हाई कोर्ट ने पाया कि फैमिली कोर्ट जज ने उन कानूनी प्रावधानों के आधार पर तलाक दे दिया, जो कानून में हैं ही नहीं। इसके अलावा, अदालत ने बिना किसी पक्ष की गवाही दर्ज किए ही विवाह को खत्म कर दिया था। हाई कोर्ट ने इसे गंभीर लापरवाही करार देते हुए कहा कि यह पहली बार नहीं है जब ऐसे त्रुटिपूर्ण आदेश सामने आए हैं। अदालत ने संबंधित जज को दोबारा प्रशिक्षण देने का भी निर्देश दिया।

हाई कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर शामिल थे, ने मामले को गंभीर लापरवाही बताते हुए कहा कि चाहे अदालतों पर मामलों का कितना भी बोझ क्यों न हो, कानून के प्रावधानों को न बदला जा सकता है और न ही नजरअंदाज किया जा सकता है।

यह मामला 2021 में दाखिल उस तलाक याचिका से जुड़ा है, जो हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(ia)  क्रूरता के आधार पर दायर की गई थी। दंपती के बीच कई राज्यों में अलग-अलग मुकदमे चल रहे थे, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने सभी मामलों की सुनवाई को एकीकृत करते हुए उन्हें दिल्ली ट्रांसफर कर दिया। लेकिन पटियाला हाउस फैमिली कोर्ट ने पहली ही तारीख को दोनों पक्षों के गवाह पेश करने के अधिकार समाप्त कर दिए और बिना किसी साक्ष्य के तलाक दे दिया। इतना ही नहीं, अदालत ने अपने आदेश में स्पेशल मैरिज एक्ट की धारा 28A का हवाला भी दिया, जबकि ऐसी कोई धारा कानून में मौजूद ही नहीं है।

दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यह पहला मौका नहीं है जब संबंधित जज ने ऐसी त्रुटियाँ की हों। कोर्ट के अनुसार, उनके कई अन्य मामलों में भी इसी प्रकार की गलतियाँ मिली हैं। बेंच ने यह भी आपत्ति जताई कि जज ने हिंदू विवाह को “पवित्र बंधन” बताते हुए स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत हुए विवाह को कम महत्व का आंका, जिसे कोर्ट ने अनुचित और अस्वीकार्य बताया। हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि स्पेशल मैरिज एक्ट के अंतर्गत होने वाला विवाह भी उतना ही मान्य, सम्मानित और गंभीर होता है।

ट्रेनिंग पर भेजने का आदेश

दिल्ली हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के तलाक फैसले को रद्द करते हुए मामले की नई सुनवाई का आदेश दिया है। अब मुकदमा पटियाला हाउस स्थित फैमिली कोर्ट के प्रिंसिपल जज के समक्ष दोबारा चलेगा, जहाँ दोनों पक्ष अपनी मौखिक और दस्तावेजी गवाही फिर से प्रस्तुत कर सकेंगे। साथ ही, हाई कोर्ट ने दिल्ली ज्यूडिशियल अकैडमी को निर्देश दिया है कि संबंधित फैमिली कोर्ट जज को विवाह संबंधी कानूनों पर अनिवार्य री-ट्रेनिंग दी जाए।

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