अभय मिश्रा, मऊगंज। मध्य प्रदेश के मऊगंज कलेक्ट्रेट एक बार फिर भ्रष्टाचार और प्रशासनिक अव्यवस्थाओं के आरोपों में घिर गया है। चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी पर कलेक्टर के नाम पर 1 लाख 12 हजार रुपए की रिश्वत लेने और विभागीय आदेश दबाने के आरोपों ने बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है। कलेक्टर संजय जैन ने तुरंत सख्त कार्रवाई करते हुए जांच के आदेश जारी कर दिए हैं। वहीं वार्डन की ओर से लगाए गए आरोपों ने विभागीय तामिली और नोटिस प्रक्रिया पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
मऊगंज कलेक्ट्रेट, जहां एक बार फिर भ्रष्टाचार का साया मंडरा रहा है। चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी पंकज श्रीवास्तव पर एक महिला वार्डन से कलेक्टर के नाम पर एक लाख बारह हजार रुपये की कथित रिश्वत लेने के गंभीर आरोप लगे हैं। वार्डन शकुंतला नीरत का आरोप है कि ‘काम कराने’ के नाम पर पंकज श्रीवास्तव ने दो किस्तों में यह रकम ली और जब काम नहीं हुआ, तो पैसे मांगे जाने पर उनके पति को रात में पुराने बस स्टैंड बुलाकर धमकियां दी गईं। वार्डन ने यह पूरी शिकायत मऊगंज थाने में दर्ज कराई है।
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कलेक्टर ने दिए जांच के आदेश
मामला सामने आते ही कलेक्टर संजय जैन ने अपनी जीरो टॉलरेंस नीति के तहत तुरंत जांच के आदेश दे दिए। अपर कलेक्टर को जांच अधिकारी बनाया गया है। कलेक्टर का कहना है कि “दोषी चाहे कोई भी हो, बख्शा नहीं जाएगा।” लेकिन मामला जितना रिश्वत का है, उतना ही प्रशासनिक लापरवाही का भी। वार्डन का आरोप है कि छात्रावास प्रभार छोड़ने का आदेश 28 अगस्त को जारी हुआ था, लेकिन न तो वह उन्हें समय पर मिला और न ही नियमों के अनुसार डाकपाल के माध्यम से तामीली हुई। आदेश 6 सितंबर को दोपहर 12 बजे आशा द्विवेदी के द्वारा व्हाट्सऐप पर भेजा गया, जो प्रक्रिया का खुला उल्लंघन है।
वार्डन का ये भी आरोप
इस देरी और अनियमितता के कारण वार्डन को हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा, जहां से 26 सितंबर को स्थगन आदेश मिला। वार्डन का एक और आरोप सामने आया है। उनके खिलाफ 6 लाख 67 हजार की रिकवरी 14 नवंबर को जारी कर दी गई, लेकिन इसकी सूचना उन्हें 30 नवंबर को सोशल मीडिया में खबर प्रकाशित होने के बाद व्हाट्सऐप से मिली। न कोई नोटिस, न कोई जवाब का अवसर और न ही बिल-वाउचर की विधिवत जांच। इधर, कलेक्टर संजय जैन का कहना है कि वार्डन ने न्यायालय में गलत तथ्य प्रस्तुत किए हैं और आदेश जारी होने के बाद नियम विरुद्ध तरीके से राशि का आहरण किया गया। जिसमें विधि एवं प्राप्त जांच रिपोर्ट के आधार पर कार्यवाही की गई है।
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कर्मचारियों की कार्यप्रणाली पर उठे सवाल
बड़ा सवाल यह है कि जब कलेक्टर ने कोर्ट के आदेश का अनुपालन करते हुए 14 नवंबर को निर्देश जारी कर दिए थे, तो विभागीय अधिकारियों ने 16 दिनों तक इसकी तामीली क्यों नहीं की ? और क्यों इस आदेश को तब जारी किया गया, जब मामला मीडिया में आ चुका था और कोर्ट ने अवमानना नोटिस जारी कर दिया था ? आखिर कलेक्टर के द्वारा जारी आदेश को इतने दिनों तक दबा कर क्यों रखा गया। पूरे प्रकरण ने कर्मचारियों की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। रिश्वत, धमकी, आदेश तामीली में लापरवाही और कई परतों वाले इस मामले की जांच अब तेज हो गई है।
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