India-Russia Friendship Special Report: रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) का भारत का दो दिवसीय दौरा आज से शुरू हो रहा है। पुतिन 4 और 5 दिसंबर को भारत दौरे पर रहेंगे। इस दौरान डिनर के टेबल पर दोनों देशों के बीच कई कूटनीति पटकथा लिखी जाएगी। भारत-रूस का संबंध सिर्फ व्यापारिक या राजनीति तक ही सीमित नहीं है। भारत-रूस का संबंध सदियों पुरानी सांस्कृतिक भी है। रूस की लगभग सभी सड़कों और गलियों में आपको हरे रामा-हरे कृष्णा की गूंज सुनाई देगी। एक कहावत कहा जाता है कि मौसम का तापमान माइनस से कितना भी नीचे क्यों न चला जाए, भारत-रूस की दोस्ती का तापमान हमेशा ‘प्लस’ में रहा है। जब पूरी दुनिया भारत का साथ छोड़ देती है तो भी रूस भारत के साथ हमशा कदम से कदम मिलाकर खड़ा रहा है। तो चलिए भारत-रूस की ‘जिगरा वाली दोस्ती’ पर ये विशेष रिपोर्ट पढ़ते हैंः-
बात है वर्ष 1971, भारत-पाकिस्तान युद्ध की, जिसे बांग्लादेश मुक्ति संग्राम युद्ध भी कहा जाता है। 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान, जब अमेरिका-ब्रिटेन समेत कई दिग्गज देशों ने पूर्वी पाकिस्तान में पाक आर्मी के अत्याचार पर आंखें मूंद ली थी। ये युद्धविराम चाहते थे और सेनाओं की वापसी चाहते थे। वहीं भारत ने जब इस युद्ध में प्रवेश किया तो ये देश कथित शांति बहाली के नाम पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के खिलाफ एक के बाद एक प्रस्ताव लाया। 4 दिसंबर 1971 से 13 दिसंबर 1971 के बीच सुरक्षा परिषद में भारत के खिलाफ 3 प्रस्ताव लाए गए। हालांकि लेकिन सोवियत रूस ने हर वार इन पर वीटो लगा दिया। इस युद्ध का नतीजा 16 दिसंबर को पाकिस्तान का सरेंडर और बांग्लादेश के निर्माण के रूप में सामने आया था।
आइए समझते हैं कि कूटनीति की इस मुश्किल घड़ी में तत्कालिन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कैसे दुनिया की शक्तियों को साधा और किन परिस्थितियों में सोवियत रूस ने भारत के खिलाफ आए न प्रस्तावों पर वीटो लगा दिया था।

ढाका से दिल्ली तक डिप्लोमैटिक एंडगेम
25 मार्च 1971 की रात को पाकिस्तानी फौजों ने ढाका में नरसंहार शुरू किया। उन्होंने ऑपरेशन सर्चलाइट शुरू किया और पूर्वी पाकिस्तान में हिंसा और मारकाट का बदस्तूर सिलसिला शुरू कर दिया। हजारों लोग मारे गए, विश्वविद्यालयों पर हमला हुआ, बुद्धिजीवियों को चुन-चुनकर मारा गया। लाखों-करोड़ों बंगाली जान बचाकर भारत भाग आए। दस महीने में करीब एक करोड़ शरणार्थी भारत पहुंचे। भारत पर आर्थिक और सामाजिक बोझ बहुत बढ़ गया। इंदिरा गांधी ने दुनिया भर में घूम-घूमकर बताया कि ये समस्या पाकिस्तान की है, उसे वहीं सुलझाए, लेकिन कोई देश दबाव नहीं डाल रहा था।
इसी बीच भारत ने गुप्त रूप से मुक्ति बाहिनी को ट्रेनिंग, हथियार और ठिकाना दिया। इस बीच इंदिरा गांधी ने कूटनीति की तेज और बोल्ड चालें चली। अगस्त में सोवियत रूस के विदेश मंत्री एंड्रेई ग्रोम्यको (Andrei Gromyko) दिल्ली पहुंचे। उनके साथ इंदिरा गांधी ने मैत्री संधि ( Indo-Soviet Treaty of Peace, Friendship and Cooperation) कर ली। हालात को समझते हुए इंदिरा सितंबर में स्वयं मास्को पहुंची और सोवियत नेता लियोनिद ब्रेज़्नेव से लंबी मुलाकात की। ये समझौता एक तरह से भारत के लिए सुरक्षा की गारंटी थी।
लड़ाई में भारत की एंट्री
तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान और आज के बांग्लादेश में पाकिस्तान की सेनाओं का निर्दोश बंगालियों पर कहर जारी था। 3 दिसंबर को इसमें निर्णायक मोड आया। इस दिन पाकिस्तान ने भारत के 11 एयरबेस पर बमबारी की। इंदिरा और फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के नेतृत्व में भारत की तैयारी पूरी की। भारतीय सेना तीन तरफ से पूर्वी पाकिस्तान में घुस गई. इसी के साथ पाक आर्मी इतिहास की सबसे बड़ी हार के लिए तैयार हो रही थी।
4 दिसंबर को UNSC में पहला प्रस्ताव
3 दिसंबर 1971 को भारत पाकिस्तान के उकसावे के बाद सक्रिय रूप से युद्ध में कूद चुका था। द वॉयर ने 2013 से 15 तक संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत रहे अशोक मुखर्जी के हवाले से लिखा है कि 3 दिसंबर को ही थांट ने UN सिक्योरिटी काउंसिल में प्रस्ताव रखा कि UN को भारत और पाकिस्तान में ऑब्ज़र्वर तैनात करने चाहिए। उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान से भारतीय सैनिकों को हटाने की मांग की। US ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया था। 4 दिसंबर 1971 को अर्जेंटीना, बेल्जियम, बुरुंडी, इटली, जापान, निकारागुआ, सोमालिया, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका द्वारा UNSC में प्रस्ताव लाया था। इस प्रस्ताव में सीजफायर, एक दूसरे के क्षेत्र से सेनाओं की वापसी, यूएन ऑब्जर्वर की नियुक्ति की मांग की गई थी। इस प्रस्ताव को UNSC में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में UN में अमेरिका के दूत जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने पेश किया था। ये वही बुश थे जो बाद में अमेरिका के 41वें राष्ट्रपति बने।
अमेरिका, चीन और UNSC के 9 चुने हुए सदस्यों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया, फ्रांस और ब्रिटेन वोटिंग से गायब रहे। जबकि भारत के साथ दोस्ती निभाते हुए सोवियत रूस ने याकोव मलिक ने इस ड्राफ्ट पर वीटो लगा दिया। रूस ने कहा कि अमेरिका का ड्राफ्ट रेजूलेशन पूर्वी पाकिस्तान में राजनीतिक समाधान की समस्या का हल प्रस्तुत नहीं करता है। पोलैंड ने रेजूलेशन के खिलाफ वोट दिया। अगर ये प्रस्ताव पास हो जाता तो संभव है कि भारत को उस दिन युद्धविराम करना पड़ता और युद्ध के नतीजे कुछ दूसरे होते। ये बड़ा संयोग है कि ये घटना आज से ठीक 54 साल पहले आज के दिन ही हुई थी।
5 दिसंबर को UNSC में दूसरा प्रस्ताव
पूर्वी पाकिस्तान में जंग रफ्तार पकड़ रही थी। भारत को बढ़त हासिल थी। भारत, रूस समेत दुनिया के देश इस समस्या का राजनीतिक समाधान चाहते थे। लेकिन सुरक्षा परिषद में जोर आजमाइश जारी थी। 5 दिसंबर 1971 को इस ग्रुप ने एक और प्रस्ताव लाया। इसमें भी युद्धविराम की मांग की थी गई, लेकिन पूर्वी पाकिस्तान में जारी हिंसा का राजनीतिक समाधान प्रस्तुत नहीं किया गया था। सोवियत रूस ने इस प्रस्ताव पर भी वीटो लगा दिया। USSR ने एक बार फिर कहा कि ये प्रस्ताव राजनीतिक समाधान प्रस्तुत नहीं करता है।
13 दिसंबर 1971 को UNSC में अमेरिका ने लाया तीसरा प्रस्ताव
जंग को शुरू हुए 10 दिन गुजर चुके थे। पूर्वी पाकिस्तान में भारत की आर्मी तेजी से आगे बढ़ रही थी। इस बीच संयुक्त राष्ट्र का मंच कूटनीति का अखाड़ा बना हुआ था। भारत के विदेश मंत्री सरदार स्वर्ण सिंह और पाकिस्तान के डिप्टी पीएम जुल्फिकार अली भुट्टो UN में डेरा डाले हुए थे। 6 से 12 दिसंबर 1971 के बीच संयुक्त राष्ट्र महासभा में युद्ध को रोकने की आखिरी कोशिशें हुईं, क्योंकि सुरक्षा परिषद में सोवियत वीटो के कारण कोई प्रस्ताव पास नहीं हो पा रहा था। 7 दिसंबर को महासभा का आपात सत्र बुलाया गया, इसी दिन महासभा ने भारी बहुमत से एक प्रस्ताव पारित कर दिया, जिसमें तत्काल युद्धविराम और दोनों देशों की सेनाओं को अपनी-अपनी अंतरराष्ट्रीय सीमा के पीछे वापस जाने की मांग की गई थी। भारत सहित 11 देशों ने इसके खिलाफ वोट किया। सोवियत खेमे के देशों ने परहेज किया। इस प्रस्ताव को खारिज करते हुए विदेश मंत्री सरदार स्वर्ण सिंह ने कहा कि जब तक पूर्वी पाकिस्तान में राजनीतिक समाधान नहीं होगा और शरणार्थी वापस नहीं लौटेंगे युद्धविराम बेमानी है। भारत ने 6 दिसंबर 1971 को ही बांग्लादेश को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दे दी थी।

12 दिसंबर को अमेरिका ने एक और प्रस्ताव पेश करने के लिए UNSC की मीटिंग बुलाने को कहा।13 दिसंबर को US का पेश किया गया प्रस्ताव, USSR ने इस प्रस्ताव पर फिर से वीटो कर दिया, क्योंकि एक बार फिर से इस प्रस्ताव में पूर्वी पाकिस्तान का राजनीतिक समाधान नहीं दिया गया था।
जब 16 दिसंबर को काउंसिल दोबारा बैठी तो भारत के विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह ने काउंसिल को बताया कि ढाका में पाकिस्तानी सेना ने सरेंडर कर दिया है। इसी के साथ लड़ाई रुक गई है।
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