Lalluram Desk. रुपया आज, 4 दिसंबर को डॉलर के मुकाबले अपने सबसे निचले लेवल पर पहुंच गया है. PTI के मुताबिक, रुपया आज डॉलर के मुकाबले 28 पैसे गिरकर 90.43 पर आ गया. कल, 3 दिसंबर को यह 90.15 पर बंद हुआ था.

लगातार विदेशी फंड के बाहर जाने से रुपये पर दबाव पड़ा है. 2025 में अब तक रुपया 5.5% कमजोर हो चुका है. 1 जनवरी को रुपया डॉलर के मुकाबले 85.70 पर था, और अब 90.41 पर पहुंच गया है.

और महंगा हो जाएगा इंपोर्ट

रुपये के गिरने का मतलब है कि भारत के लिए इंपोर्ट और महंगा हो जाएगा. इसके अलावा, विदेश में घूमना और पढ़ाई करना भी महंगा हो गया है.

मान लीजिए, जब रुपया डॉलर के मुकाबले 50 था, तो US में भारतीय स्टूडेंट्स को 50 रुपये में 1 डॉलर मिल जाता था. अब, स्टूडेंट्स को 1 डॉलर के लिए 90.21 रुपये खर्च करने होंगे. इससे स्टूडेंट्स के लिए फीस से लेकर रहने और खाने तक सब कुछ महंगा हो जाएगा.

रुपये के गिरने के तीन कारण

US प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय इंपोर्ट पर 50% टैरिफ लगाया है, जिससे भारत की GDP ग्रोथ 60-80 बेसिस पॉइंट्स कम हो सकती है और फिस्कल डेफिसिट बढ़ सकता है. इससे एक्सपोर्ट कम हो सकता है और फॉरेन एक्सचेंज इनफ्लो कम हो सकता है. इसी वजह से रुपया दबाव में है.

फॉरेन इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स (FIIs) ने जुलाई 2025 से अब तक ₹1.03 लाख करोड़ से ज़्यादा के भारतीय एसेट्स बेचे हैं. ऐसा US ट्रेड टैरिफ को लेकर चिंताओं के कारण है. इससे डॉलर की डिमांड बढ़ी है (बिक्री को डॉलर में बदला जाता है), जिससे रुपया नीचे जा रहा है.

तेल और सोने की कंपनियां हेजिंग के लिए डॉलर खरीद रही हैं. दूसरे इंपोर्टर्स भी टैरिफ की अनिश्चितता के कारण डॉलर जमा कर रहे हैं. इससे रुपये पर दबाव बना हुआ है.

इस बार RBI का दखल बहुत कम रहा

LKP सिक्योरिटीज के VP रिसर्च एनालिस्ट जतिन त्रिवेदी ने कहा, “रुपये के 90 के पार जाने का मुख्य कारण यह है कि भारत-US ट्रेड डील पर कोई पक्की खबर नहीं है, और टाइमलाइन को बार-बार टाला जा रहा है. इसी वजह से पिछले कुछ हफ्तों में रुपये में भारी बिकवाली देखी गई है.”

त्रिवेदी ने आगे बताया कि मेटल और सोने की रिकॉर्ड-ऊंची कीमतों ने इंपोर्ट बिल बढ़ा दिया है. US के ऊंचे टैरिफ ने भारतीय एक्सपोर्ट की कॉम्पिटिटिवनेस को नुकसान पहुंचाया है. उन्होंने आगे कहा, इस बार RBI का दखल भी बहुत कम रहा है, जिससे गिरावट और बढ़ गई है.

RBI की पॉलिसी शुक्रवार को आनी है, और मार्केट को उम्मीद है कि सेंट्रल बैंक करेंसी को स्टेबल करने के लिए कुछ कदम उठाएगा. टेक्निकली, रुपया काफी ओवरसोल्ड है.

करेंसी की कीमत कैसे तय होती है?

अगर डॉलर के मुकाबले किसी दूसरी करेंसी की वैल्यू कम होती है, तो इसे करेंसी डेप्रिसिएशन कहते हैं.

हर देश के पास फॉरेन करेंसी रिज़र्व होता है, जिसका इस्तेमाल वह इंटरनेशनल ट्रांज़ैक्शन करने के लिए करता है. फॉरेन रिज़र्व के बढ़ने या घटने का असर करेंसी की वैल्यू पर दिखता है.

अगर भारत के फॉरेन रिज़र्व में डॉलर रिज़र्व US के रुपया रिज़र्व के बराबर है, तो रुपये की वैल्यू स्टेबल रहेगी. अगर डॉलर घटता है, तो रुपया कमज़ोर होगा; अगर डॉलर बढ़ता है, तो रुपया मज़बूत होगा.