शिवा यादव, सुकमा। कभी लाल आतंक की गूंज से दहलने वाला गोगुंडा पहाड़ अब तेजी से बदल रहा है। चार दशकों तक माओवादियों के कब्जे में रहे इस इलाके में पहली बार सड़क निर्माण कार्य शुरू हुआ है। यह सड़क सिर्फ पत्थर और मिट्टी का रास्ता नहीं, बल्कि सरकार की पहुंच, सुरक्षा बलों की स्थायी मौजूदगी और बदलते हालात का जीता-जागता प्रमाण है, जहां कभी कदम रखना भी असंभव माना जाता था। जहां दशकों तक नक्सलियों ने इसे अपनी ट्रेनिंग और सुरक्षित ठिकाना माना था। जहां आम लोगों का आना-जाना पूरी तरह प्रतिबंधित था। चारों ओर ऊंची-ऊंची खड़ी ढलानों वाले इस पहाड़ पर कभी सड़क भी नहीं बनाई जा सकती थी। आज जिला पुलिस और सीआरपीएफ 74वीं बटालियन की मौजूदगी में पहाड़ को काटकर सड़क बनाया जा रहा है। और ऐसा आजादी के बाद पहली बार संभव हो पाया है।

माओवादियों का अभेद कमांड जोन हुआ करता था गोगुंडा

गोगुंडा दक्षिण बस्तर का वह इलाके है, जिसे कभी माओवादियों का सबसे मजबूत और अभेद कमांड जोन माना जाता था। घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ियों के बीच बसे इस क्षेत्र में सुरक्षा बलों की आवाजाही लगभग असंभव थी। यहां से वर्षों तक नक्सलियों ने हथियार सप्लाई, एंबुश प्लानिंग और कैडर ट्रेनिंग संचालित की। आपातकालीन स्थिति में यही पहाड़ी उनका सेफ जोन हुआ करता था।

650 मीटर ऊंची कठिन पहाड़ी पर सड़क निर्माण जारी

लेकिन अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं। लगातार ऑपरेशनों और रणनीतिक डॉमिनेशन के बाद सुरक्षा बलों ने इस इलाके पर नियंत्रण स्थापित किया। इसी के बाद यहां सड़क निर्माण की शुरुआत हुई है जो 650 मीटर ऊंची कठिन पहाड़ी ढलान पर बनाई जा रही है। वह स्थान जिसे कभी माओवादियों का अभेद किला माना जाता था, अब विकास के नक्शे पर दर्ज हो रहा है।

CRPF और इंजीनियरिंग टीम की संयुक्त कोशिश

इस निर्माण कार्य में सीआरपीएफ 74वीं बटालियन के जवान और इंजीनियरिंग टीम संयुक्त रूप से काम कर रहे हैं। हर दिन संभावित IED खतरे, फायरिंग के जोखिम और कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के बीच सड़क को आकार दिया जा रहा है। निर्माण स्थल पर हर कदम पहले सुरक्षा दस्ते द्वारा जांचा जाता है, उसके बाद ही मशीनरी आगे बढ़ती है।

सड़क से बदलेगी सात पारा वाले गोगुंडा की जिंदगी

गोगुंडा गांव की सबसे खास बात यह है कि यह एक साधारण गांव नहीं, बल्कि सात अलग-अलग पारा (टोला/बस्ती) का समूह है -जो इस पहाड़ की ऊपरी चोटी पर बसा है। आज भी यहां के ग्रामीण शिक्षा, स्वास्थ्य और बाजारों से कई किलोमीटर दूर हैं। लेकिन सड़क बनने के बाद पहली बार इन सात पारों तक सरकारी वाहन, एम्बुलेंस और जरूरी सेवाएं पहुंचने की उम्मीद जागी है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि पहले इस पहाड़ से बाहर जाना युद्ध जैसा था, अब सड़क बनने के बाद जिंदगी आसान होने की उम्मीद है।

सुरक्षा अधिकारियों का मानना है कि यह सड़क सिर्फ विकास का मार्ग नहीं, बल्कि माओवादी नेटवर्क को कमजोर करने और प्रशासन की पहुंच मजबूत करने का बड़ा कदम है।

जहां डर था, वहां अब उम्मीद है

अंत में गोगुंडा पहाड़ पर बन रही यह सड़क उस बदलाव की कहानी है, जहां कभी भय था, वहां आज विश्वास है जहां बारूदी सुरंगें थीं, वहां अब बुलडोजर चल रहा है और जहां लाल झंडे थे, वहां अब विकास का तिरंगा लहरा रहा है।