नरेश शर्मा, रायगढ़। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में मानव-हाथी संघर्ष के बीच एक अनोखी परंपरा देखने को मिली। तमनार वन परिक्षेत्र के ग्राम गौरमुड़ी में करीब दस दिन पहले हाथी के एक शावक की तालाब में डूबने से मौत हो गई थी। घटना के बाद हाथियों का दल लगातार गांव के आसपास मंडरा रहा था और खेतों में नुकसान पहुंचा रहा था। हाथियों की आवाजाही से ग्रामीणों में डर और तनाव बढ़ गया था। इसी संकट को दूर करने के लिए बुधवार को पूरे गांव के लोगों ने न केवल तालाब के पास पूजा-पाठ के साथ हवन करते हुए बकायदा दशकर्म की परंपरा निभाई, बल्कि पूजा के बाद तालाब का शुद्धिकरण कर उसके पानी का फिर से उपयोग शुरू किया।

पूजा पाठ और हवन के बाद किया दशकर्म

गांव के लोगों ने तालाब के किनारे एकजुट होकर पूरी परंपरा के साथ हवन और भोज करते हुए तालाब का उपयोग फिर शुरू करने की घोषणा की। इस जगह हाथी शावक की मौत के 10 दिन बाद ग्रामीणों ने शुद्धि हवन, यज्ञ और दशकर्म का आयोजन किया। ग्रामीणों का मानना है कि यह धार्मिक प्रक्रिया गांव और तालाब दोनों की शुद्धि के लिए आवश्यक थी, जिससे आगे हाथियों का प्रकोप कम होगा और गांव सुरक्षित रहेगा।

घटना के बाद से दस दिन तक तालाब नहीं किया उपयोग

जिस तालाब में हाथी शावक की मौत हुई थी, ग्रामीण पिछले 10 दिनों से उसका उपयोग नहीं कर रहे थे। वहीं आज हवन और पूजा-पाठ के बाद ग्रामीणों ने तालाब का पुनः उपयोग शुरू करने की घोषणा की। तालाब किनारे पारंपरिक दशकर्म भोज का भी आयोजन किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में ग्रामीण शामिल हुए।

ग्रामीण उम्मीद कर रहे हैं कि धार्मिक अनुष्ठान के बाद हाथियों की आवाजाही कम होगी और खेतों की फसलें तथा गांव दोनों सुरक्षित रहेंगे। पूजा करवाने वाले बातचीत करने से दूरी बनाते हुए इस अनोखी पूजा में दिन भर जुटे रहे। बताया जाता है कि आदिवासी इलाके के लोग ऐसे निदान बैगा के आदेश पर करते हैं और हवन, दशकर्म के मामले में किसी से चर्चा तक नहीं करते।