भुवनेश्वर। ओडिशा सरकार कटक के लोकप्रिय स्ट्रीट फूड दहीबड़ा आलूदम को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए कदम बढ़ा रही है. राज्य सरकार इस व्यंजन की विज़िबिलिटी बढ़ाने और इसे जियोग्राफिकल इंडिकेशन (GI) टैग दिलाने की दिशा में आवश्यक सहायता देने के लिए तैयार है.

“वन डिस्ट्रिक्ट, वन कुज़ीन” में शामिल हुआ दहीबड़ा आलूदम

सरकार ने कटक के प्रसिद्ध दहीबड़ा आलूदम को “वन डिस्ट्रिक्ट, वन कुज़ीन” योजना के तहत जिले की आधिकारिक डिश के रूप में प्रस्तावित किया है. इसका उद्देश्य स्थानीय व्यंजनों को ब्रांड बनाकर उन्हें व्यापक पहचान दिलाना है.

GI आवेदन के लिए प्रोड्यूसर ग्रुप को करना होगा पहल

विधानसभा में MLA सोफिया फिरदौस के सवाल का जवाब देते हुए मंत्री मल्लिक ने स्पष्ट किया कि MSME विभाग सीधे GI आवेदन दाखिल नहीं कर सकता. जियोग्राफिकल इंडिकेशन्स ऑफ गुड्स एक्ट, 1999 के तहत यह अधिकार केवल योग्य समूहों—जैसे प्रोड्यूसर कलेक्टिव, एसोसिएशन या उद्यमियों—को है.

मंत्री ने कहा कि यदि स्टेकहोल्डर समूह औपचारिक रूप से प्रस्ताव जमा करते हैं, तो विभाग उन्हें तकनीकी मार्गदर्शन और हर संभव सहयोग उपलब्ध कराएगा.

राष्ट्रीय-वैश्विक बाजार में बढ़ेगी पहचान

मंत्री ने बताया कि दहीबड़ा आलूदम को जिला प्रतिनिधि व्यंजन के रूप में डिपार्टमेंट फॉर प्रमोशन ऑफ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड को भेजा गया है. इस पहल का लक्ष्य क्षेत्रीय व्यंजनों को नए बाजार उपलब्ध कराना, उनके ब्रांड वैल्यू को बढ़ाना और स्थानीय व्यवसायों के लिए आर्थिक अवसर पैदा करना है.

GI टैग से मजबूत होगा ब्रांड, स्थानीय विक्रेताओं को मिलेगा लाभ

सरकार का मानना है कि GI स्टेटस मिलने पर दहीबड़ा आलूदम की मार्केट प्रेज़ेंस और मजबूत होगी. इससे संगठित उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा और स्थानीय वेंडर्स के लिए नए व्यापारिक अवसर खुलेंगे.

ओडिशा में पहले से 27 उत्पादों को मिल चुका है GI टैग

ओडिशा में वर्तमान में कुल 27 GI उत्पाद हैं—जिनमें 16 हैंडीक्राफ्ट, 7 कृषि उत्पाद और 4 खाद्य पदार्थ शामिल हैं. खाद्य श्रेणी में ओडिशा रसगुल्ला, केंद्रापड़ा रसाबली, ढेंकानाल मगजी और सिमिलिपाल काई चटनी प्रमुख हैं.

इसके अलावा नौ नए उत्पाद GI मूल्यांकन की प्रक्रिया में हैं, जिनमें शामिल हैं—
भद्रक का पालुआ लड्डू, बलांगीर का धान शिल्प, ढेंकानाल के आदिवासी आभूषण, पुरी का सोलापीठ कार्य, नीलगिरी के पत्थर के बर्तन, मयूरभंज का डोकरा शिल्प, बालासोर के लाख के खिलौने, ढेंकानाल का पुआल शिल्प और पुरी के पेपर-मैचे मास्क.

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