रायपुर। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में बदल रहा है छत्तीसगढ़ का बस्तर। कभी अपने जंगल, आदिवासी संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए पहचाने जाने वाले बस्तर में एक लंबा दौर ऐसा भी आया था, जब यह क्षेत्र नक्सलवाद, बुनियादी सुविधाओं के अभाव और भय के माहौल के लिए पहचाना जाने लगा। वर्षों तक यहां विकास की रफ्तार थम सी गई थी। स्कूल वीरान हो गए थे, सड़कें या तो नहीं थी या तोड़ डाली गईं थी। अस्पतालों में सन्नाटा पसर चुका था और बिजली केवल सपनों की वस्तु बनकर रह गई, लेकिन अब तस्वीर तेजी से बदल रही है।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में बस्तर एक बार फिर विकास की मुख्यधारा से जुड़ रहा है। इस बात को पूरी शिद्दत से महसूस किया गया कि “बस्तर को भय नहीं, विश्वास चाहिए; हिंसा नहीं, विकास चाहिए”— यह केवल एक नारा नहीं बल्कि आज की शासन-नीति का मूल मंत्र बन चुका है। सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, रोजगार और पुनर्वास के क्षेत्र में जो भी ठोस कार्य किए जा रहे हैं, वे आने वाले वर्षों में बस्तर की पहचान ही बदल देने वाले हैं।

शांति की ओर निर्णायक कदम: पुनर्वास नीति 2025

प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृहमंत्री ने 31 मार्च 2026 तक सशस्त्र नक्सलवाद समाप्त करने का लक्ष्य तय किया है। इसी दिशा में छत्तीसगढ़ सरकार ने “पुनर्वास नीति 2025” लागू की है। बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा और नारायणपुर जैसे जिलों में सैकड़ों माओवादी आत्मसमर्पण कर चुके हैं। हाल ही में 210 माओवादियों ने हथियार छोड़कर समाज की मुख्यधारा में लौटने का संकल्प लिया है। सरकार ने इन्हें “रेड कार्पेट” स्वागत नीति के तहत प्रशिक्षण, आवास, रोजगार और शिक्षा की सुविधाएं देने का निर्णय लिया है। पुनर्वास केंद्रों में उन्हें कौशल विकास सिखाया जा रहा है, ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट कहा है कि “जो हिंसा छोड़ेगा, उसे सम्मानजक जीवन और सुरक्षित भविष्य दिया जाएगा।”

अंधेरे से उजाले की ओर: बस्तर में बिजली का सफर

बस्तर के कई गांव ऐसे थे जहां कभी बिजली का नाम-निशान तक नहीं था। शाम ढलते ही घना अंधेरा पूरे गांव को अपनी गिरफ्त में ले लेता था। पढ़ाई, इलाज, छोटा-मोटा काम सब बाधित हो जाता था, लेकिन अब स्थिति बदल रही है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में शुरू किए गए व्यापक विद्युतीकरण अभियान के तहत दूर-दराज के गांवों तक बिजली पहुंचाई जा रही है। लाइन विस्तार, नए ट्रांसफार्मर, सोलर माइक्रो-ग्रिड और मिनी पावर प्लांट्स के माध्यम से अब गांव-गांव रोशनी पहुंच रही है। बस्तर में अब बच्चे रात में भी पढ़ाई कर पा रहे हैं, महिलाएं सिलाई- कढ़ाई, लघु उद्योग और अन्य कार्य कर रही हैं, किसान सिंचाई के लिए इलेक्ट्रिक पंप का उपयोग कर पा रहे हैं और गाँवों में सुरक्षा व्यवस्था भी बेहतर हुई है।
“पहले सूरज ढलते ही सब काम बंद हो जाता था, अब बिजली आई है तो ज़िंदगी में रोशनी आ गई है।”

सड़कों का जाल बन रही बस्तर की जीवन रेखाएं

बस्तर में बदलाव की सबसे बड़ी पहचान बन रही हैं यहाँ की सड़कें। टूटी-फूटी सड़कों में ही चलना अब तक बस्तर के ग्रामीणों की मजबूरी थी। इन ख़स्ता हाल सड़कों की वजह से यहाँ से मरीज खाट पर उठाकर कई किलोमीटरों दूर अस्पताल पहुँचाए जाते थे, बच्चे स्कूल नहीं जा पाते थे और वन उत्पाद बाजार तक नहीं पहुँच पाते थे।प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) के तहत वर्ष 2000-01 से अब तक कुल 2388.24 किलोमीटर सड़कों का निर्माण हो चुका है, जिस पर 856.80 करोड़ रुपये से अधिक की राशि खर्च की गई है। इन सड़कों ने 1420 से अधिक बसाहटों को पहली बार शहरों और मुख्य मार्गों से जोड़ा है।साथ ही बस्तर में 42.30 करोड़ रुपए की लागत से 16 बड़े पुलों का निर्माण हुआ है। ये पुल आज कई गांवों के लिए जीवनरेखा साबित हो रहे हैं।बाढ़ के समय जिन नदी-नालों के कारण गाँव कट जाते थे आज वही पुल गाँव की सुरक्षा कवच बन गए हैं। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के निर्देश पर वर्ष 2025-26 में पीएम-जगुआ और पीएमजीएसवाई फेज-4 के तहत 295 नई बसाहटों का ड्रोन और GEO रोड ऐप से सर्वे किया गया है। 87 सड़कों की डीपीआर तैयार कर केंद्र सरकार को भेजी जा चुकी है। इन सड़कों में जलवायु-अनुकूल डिजाइन, सौर स्ट्रीट लाइट और वर्षा जल संचयन की व्यवस्था भी की जा रही है। यह व्यवस्था बस्तर को टिकाऊ विकास की ओर ले जाने वाली है।

शिक्षा का पुनर्जागरण: स्कूलों से भविष्य की रोशनी

एक समय था जब बस्तर के अनेक गाँवों में स्कूल बंद पड़े रहते थे। कुछ जगहों पर भवन तो थे, लेकिन शिक्षक नहीं थे; कहीं शिक्षक थे तो बच्चे पहुँच ही नहीं पाते थे। नक्सलवाद के कारण भय का माहौल बना रहता था। मगर अब हालात बदल रहे हैं। सरकार द्वारा बंद पड़े स्कूलों को फिर से खोला जा रहा है, शिक्षक नियुक्त किए जा रहे हैं और डिजिटल शिक्षा के लिए स्मार्ट क्लास, टैबलेट, इंटरनेट जैसी सुविधाएँ पहुंचाई जा रही हैं। सड़कों के निर्माण से आवागमन आसान हुआ है, जिससे बच्चों की नियमित उपस्थिति बढ़ी है। दरभा, बास्तानार और लोहंडीगुड़ा जैसे क्षेत्रों में अब नए माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक विद्यालय खुल रहे हैं। छात्रावासों का विकास किया जा रहा है ऐसा भी कहा जा सकता है बस्तर में अब सड़क है, सुरक्षा है और सरकार का भरोसा है।”

बस्तर के स्वास्थ्य व्यवस्था को मिल रहा नया जीवन

पहले बस्तर के ग्रामीण इलाकों में बीमार व्यक्ति का इलाज एक बड़ी चुनौती हुआ करता था। अस्पताल दूर, रास्ते खराब, वाहन नहीं और भय का माहौल। लेकिन अब एम्बुलेंस गांव तक पहुंच रही है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, उप-स्वास्थ्य केंद्र और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों को नए संसाधनों से लैस किया जा रहा है। मोबाइल मेडिकल यूनिट अब हाट-बाजारों में कैंप लगाकर लोगों का इलाज कर रही हैं। गर्भवती महिलाओं की नियमित जांच, बच्चों का टीकाकरण, और बीमारियों की जल्द पहचान जैसी सेवाएं अब पहले से कहीं बेहतर हुई हैं।

वन उत्पाद और कृषि से हो रहा आर्थिक सशक्तिकरण

सड़क और बिजली ने सिर्फ आवागमन नहीं बदला, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी नया जीवन दिया है। अब महुआ, इमली, चार, शहद, बांस और हस्तशिल्प सीधे बाजार तक पहुंचाए जा रहे हैं। बिचौलियों की भूमिका कम हुई है और किसानों तथा संग्राहकों को उचित मूल्य मिल रहा है।कृषि और उद्यानिकी उपज आसानी से शहरों तक पहुँच रही है। महिलाएं स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से लघु उद्योग चला रही हैं। मनरेगा और राज्य की अन्य योजनाओं के तहत गांवों में रोज़गार सृजन बढ़ा है।

पर्यटन की नई संभावनाएं

बस्तर के ऐतिहासिक और प्राकृतिक स्थल – चित्रकोट जलप्रपात, तीरथगढ़, कुटुमसर गुफाएं, कांगेर घाटी – अब बेहतर सड़कों से जुड़ गए हैं। इससे पर्यटन को नई गति मिली है। होमस्टे, ईको-टूरिज्म, स्थानीय गाइड, हस्तशिल्प बाजार, आदिवासी नृत्य-संगीत अब रोज़गार के साधन बन रहे हैं। सरकार पर्यटन को सुरक्षित और सुविधाजनक बनाने के लिए निरंतर प्रयास कर रही है।

जनभागीदारी से विकास का संकल्प

साय सरकार ने जनप्रतिनिधियों, पंचायत प्रमुखों और परंपरागत मुखियाओं से आह्वान किया है कि वे गांव-गांव जाकर भटके हुए युवाओं को सही राह दिखाएं। सरकार यह मानती है कि जब तक जनता की सहभागिता नहीं होगी, तब तक विकास अधूरा रहेगा। छत्तीसगढ़ की साय सरकार की योजनाओं का लक्ष्य अंतिम व्यक्ति तक लाभ पहुंचाना है – चाहे वह सड़क हो, शिक्षा हो, बिजली हो या स्वास्थ्य सेवा।

विश्वास की जीत, विकास की कहानी

आज बस्तर में केवल बंदूकों की आवाज नहीं, बल्कि स्कूल की घंटी, एम्बुलेंस का सायरन, मशीनों की गूँज और बच्चों की हंसी सुनाई दे रही है। यह परिवर्तन एक दिन में नहीं हुआ, बल्कि सशक्त नेतृत्व, जन-सहयोग और दूरदर्शी नीतियों का परिणाम है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में बस्तर अब अंधेरे से उजाले की ओर बढ़ चुका है। यह बदलाव केवल भौतिक नहीं, मानसिक भी है। एक नई पीढ़ी अब डर नहीं, सपने देख रही है; हथियार नहीं, किताबें उठा रही है। यह केवल विकास की कहानी नहीं, बल्कि एक नए विश्वास, नई उम्मीद और नए भारत के निर्माण की गाथा है। बस्तर अब एक उदाहरण बन रहा है – शांति, साहस और समावेशी विकास का।