संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान लोकसभा में शुक्रवार को तमिलनाडु से DMK सांसद टीआर बालू ने कोलकाता हाई कोर्ट के जज को RSS जज कह दिया जिसके बाद संसद में बवाल मच गया। DMK सांसद के इस बयान के बाद उनकी और केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू के बीच तीखी बहस हो गई। DMK सांसद ने एक मुद्दे पर बोलते हुए एक हाईकोर्ट के जज को ‘RSS जज’ कह दिया। किरेन रिजिजू ने इस पर तुरंत आपत्ति जताई। रिजिजू ने कहा- आप एक जज को RSS का जज कैसे कह सकते हैं। यह संसद की मर्यादा का उल्लंघन है। आप एक जज के लिए असंसदीय भाषा का इस्तेमाल नहीं कर सकते। आप माफी मांगिए। न्यायपालिका पर कलंक लगाने की आपकी हिम्मत कैसे हुई।
क्या है पूरा मामला ?
दरअसल, हाल ही में कोलकाता हाईकोर्ट के न्यायाधीश पद से रिटायर हुए न्यायमूर्ति चित्तरंजन दास ने बड़ा खुलासा किया था। उन्होंने कहा था कि वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सदस्य थे। उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों और बार के सदस्यों की उपस्थिति में अपने विदाई समारोह को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति दास ने कहा कि यदि संगठन उन्हें किसी भी सहायता या किसी ऐसे काम के लिए बुलाता है जिसमें वह सक्षम हैं तो वह ‘संगठन में वापस जाने के लिए तैयार हैं’। बता दें कि, उनके पूर्व सहयोगी अभिजीत गंगोपाध्याय के बीजेपी में शामिल होने और तामलुक लोकसभा सीट से पार्टी के उम्मीदवार बनने के दो महीने बाद कही है।
फिर से आरएसएस के लिए काम करने के लिए स्वतंत्र
उन्होंने अपने विदाई समारोह में कहा- अब मैं फिर से आरएसएस के लिए काम करने के लिए स्वतंत्र हूं। मुझे अपने काम की वजह से 37 वर्षों तक खुद को संगठन से अलग रखना पड़ा, जबकि वैचारिक रूप से मैं अभी भी इससे जुड़ा हुआ हूं… उन्होंने कहा कि कुछ लोगों को भले ही यह अच्छा न लगे, लेकिन मुझे यह स्वीकार करना होगा कि मैं आरएसएस का सदस्य था और हूं। उनके इसी बयान के बाद सियाईस पारा आसमान में पहुंच गया।
मैंने अपने करियर की किसी भी उन्नति के लिए अपनी (आरएसएस) सदस्यता का कभी भी उपयोग नहीं किया, जो मेरे संगठन के सिद्धांतों के खिलाफ है। मुझमे यह कहने का साहस था कि मैं संगठन (आरएसएस) से जुड़ा हुआ हूं, क्योंकि यह गलत नहीं है। अगर मैं अच्छा इंसान हूं तो मैं किसी बुरे संगठन से नहीं जुड़ सकता।
दास बोले मैंने सभी का माना समान
अपने विदाई भाषण में दास ने कहा कि मैंने सभी को समान माना है, चाहे वे अमीर हों, गरीब हों, कम्युनिस्ट हों या भाजपा, कांग्रेस या तृणमूल से जुड़े हों। मेरे सामने सभी बराबर थे। बता दें कि न्यायमूर्ति दाश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ की एक नाबालिग के यौन शोषण से संबंधित मामले में अपनी टिप्पणियों ने विवाद खड़ा कर दिया था। जिसे बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने गलत और समस्याग्रस्त करार दिया था।
किशोरियों को लेकर टिप्पणी ने मचाया था बवाल
पीठ ने कहा था कि किशोरियों को दो मिनट के आनंद के लिए समर्पित होने के बजाय अपनी यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायाधीशों को उपदेश देने के बजाय कानून और तथ्यों के आधार पर मामले का फैसला करना चाहिए। दाश ने कहा कि मेरे मन में किसी के प्रति कोई पूर्वाग्रह नहीं है। न्याय के अनुकूल कानून को तोड़ा जा सकता है लेकिन न्याय को कानून के अनुकूल नहीं तोड़ा जा सकता। हो सकता है कि मैंने गलत किया हो, मैंने सही भी किया हो सकता है।
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