राजकुमार पाण्डेय की कलम से
नेताजी को मुद्दा नहीं उठा पाने का रह गया मलाल
हाल ही में संपन्न हुए मध्य प्रदेश विधानसभा के सत्र में विपक्ष के साथ सत्तापक्ष के नेताओं ने अपने-अपने पसंदीदा मुद्दे जमकर उछाले. विधानसभा की चौथी और अंतिम दिन की बैठक के लिए विपक्ष के नेताजी ने बड़ी तैयारी की थी. नेताजी अपना पसंदीदा मुद्दा उठाने के लिए लंबे समय से प्लानिंग भी कर रहे थे. लेकिन विधानसभा परिसर के साथ सदन के अंदर तस्वीर ऐसी बनी कि मुद्दा उछालने के लिए नेताजी को मौका ही नहीं मिल पाया. मन ही मन में मायूस हुए नेताजी विधानसभा परिसर में इस बात की चर्चा करते हुए दिखाई दिए.
सुनवाई के बराबर गिनाई सीनियरिर्टी
मध्य प्रदेश बीजेपी ने मंत्रियों को पार्टी कार्यालय में बैठाकर कार्यकर्ता और संगठन के बीच दूरी कम करने का अनूठा प्रयोग शुरू किया है. पार्टी के निर्देश पर मंत्री तय दिनांक के अनुसार उपस्थिति दर्ज करा भी रहे हैं. पार्टी कार्यालय में बैठक का एक मंत्रीजी का वाक्या बड़ा दिलचस्प रहा. मंत्रीजी जिनती कार्यकर्ताओं की सुनवाई कर रहे थे, उतनी ही अपनी सीनियरिर्टी भी गिनाते रहे. बताते रहे कि उनके समय के फलां नेता फलां व्यवस्था या कामकाज संभालते थे.
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सर, मैंने करवा दिया
विधानसभा में विधायक जिस तैयारी के साथ आते हैं, वो चाहते हैं कि सदन के साथ जनता के बीच भी उनकी बात जोर से पहुंचे. इसके लिए कई मंत्री और विधायकों ने बकायदा टीमें रखी हुई हैं. टीमों के सदस्य भी पूरा जोर लगा देते हैं कि नेताजी की मंशा पूरी हो सके. विधानसभा सत्र के तीसरे दिन एक नेताजी की मंशा वाला मुद्दा जोर-शोर से गूंज गया. सदन की कार्यवाली समाप्त होने के बाद नेताजी बाहर निकले तो टीम के सदस्य पूरे जोश के साथ नेताजी के पास पहुंचे और जोर से कहा सर मैंने करवा दिया. इस पूरे घटनाक्रम में बड़ी बात ये रही कि मुद्दे के गूंजने में टीम के सदस्य का कोई योगदान ही नहीं था.
बड़े चर्चे हैं इनके साहब
इन दोनों मंत्रालय में एक मंत्री जी के रिश्तेदार का किस्सा सुर्खियों में है. दरअसल, साली साहब अपने मंत्री जीजा के कहने पर नई विद्या में उतरे. पंचायत स्तर पर सोलर लाइट लगाने का काम कर रहे है. बीते दिनों मंत्री जी ने मालवा के बड़े अफसरों को फटकारा. दरअसल मंत्री जी अपने साले साहब को बड़ा काम दिलाना चाहते थे. बड़ा तो ठीक अफसरों ने छोटा काम भी नहीं दिया. साले साहब चक्कर काट काटकर परेशान हो गए. जब बात नहीं बनी तो जीजा ने मंत्री को फोन लगाया. हालांकि इस मामले की खबर ऊपर तक पहुंच चुकी है. छोटे कामों की आड़ में बड़ा खेल किया जा रहा है.
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यह तो हद है
दरअसल, यहां बात हो रही है एक योजना और उसके भुगतान की. योजना के तहत गांव के हर घर तक जल उपलब्ध कराया जा रहा है. योजना के तहत पाइपलाइन भी बिछाई गई. सप्लाई के लिए पूरा सिस्टम तैयार किया गया. वाटर सप्लाई टेस्टिंग भी हुई और लोगों को पानी भी मिला. यह दावा हमारा नहीं बल्कि जिम्मेदार अधिकारियों की सरकारी रिपोर्ट का है. लिहाजा प्रदेश के आठ जिलों में भुगतान भी बड़ी फुर्ती से कर दिया गया लेकिन, वास्तविकता तो यह है कि आठ जिलों के लगभग 30% गांव में अधिकारियों के तमाम दावों के बाद एक बूंद पानी आज तक नहीं पहुंचा. पानी का जुगाड़ तो गांव वाले जैसे तैसे कर ही रहे हैं लेकिन कंपनी ने अधूरे काम का 100% भुगतान का जुगाड़ गजब का जमाया. मामला शिष्टाचार का था तो भुगतान भी कर दिया गया. गजब की बात है… अधिकारियों ने माननीय मंत्री जी और माननीय सांसद जी के गृह ग्राम तक को नहीं छोड़ा और दोनों माननीय सब कुछ जानने के बावजूद भी चुप है. यह चुप्पी भी शिष्टाचार की बड़ी परिभाषा है.
बीजेपी में कास्ट कटिंग
बीजेपी में नए प्रदेश अध्यक्ष के घोषणा के बाद भारतीय जनता पार्टी प्रदेश कार्यालय में काम करने वाले गार्ड और छोटे कर्मचारी को खाने के लिए जो पैसे दिए जाते थे वह बंद कर दिए गए हैं. जिसका सीधा असर कार्यालय में काम करने वाले कई सारे लोगों पर पड़ा है. अब बात यह चल रही है कि आने वाले समय में कई सारे और लोगों की भी छटनी की जा सकती है. जिससे कई लोग जो बीजेपी के लिए सालों से छोटे-मोटे काम करते थे, उनको निकालने की तैयारी की जा रही है. ऐसे में अंत्योदय की बात करने वाली बीजेपी ही अपने पुराने और छोटे कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाना चाहती है. अब देखने वाली बात होगी कि इन लोगों के लिए आगे क्या फैसला लिया जाता है.
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