प्रयागराज. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि यदि किसी महिला की पहली शादी कानूनी रूप से समाप्त नहीं हुई है, तो वह लिव-इन पार्टनर से धारा 125 CrPC के तहत भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती. जस्टिस मदन पाल सिंह की पीठ ने स्पष्ट किया कि भले ही महिला किसी व्यक्ति के साथ करीब 10 साल तक विवाह जैसे रिश्ते में रही हो और समाज में उसे पत्नी के रूप में स्वीकार किया गया हो, लेकिन जब तक पहली शादी जीवित है, तब तक ऐसा रिश्ता कानूनी विवाह नहीं माना जा सकता.

न्यायालय ने कहा कि ऐसे मामलों में भरण-पोषण की अनुमति देने से विवाह संस्था की कानूनी और सामाजिक गरिमा कमजोर होगी. इसी आधार पर हाईकोर्ट ने जिला अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए महिला की याचिका खारिज कर दी.

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महिला ने कुटुम्ब न्यायालय कानपुर नगर के 12 फरवरी 2024 के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. फैमिली कोर्ट ने उसका भरण‑पोषण आवेदन खारिज कर दिया था. हाईकोर्ट में उसने इस आदेश को रद्द करने की मांग की. हालांकि यहां भी न्यायालय ने इसे खारिज कर दिया है.