अमित पांडेय, खैरागढ़। जिले में बिजली का मीटर सभी जगह समान गति से घूम रहा है, लेकिन बिलों के भुगतान की रफ्तार अलग-अलग है। आम जनता से बिजली विभाग समय पर भुगतान की उम्मीद ही नहीं करता, बल्कि इसे अनिवार्य भी मानता है। एक-दो महीने का बिल बकाया रहने पर सीधे कनेक्शन कट जाना आम बात है। वहीं, सरकारी विभागों के मामले में हालात पूरी तरह उलट हैं।

आंकड़े बताते हैं कि खैरागढ़ संभाग के लगभग 50 सरकारी विभागों पर 20 करोड़ रुपये से अधिक का बिजली बिल लंबित है। इसके विपरीत, खैरागढ़ क्षेत्र के लगभग 33 हजार निजी उपभोक्ताओं पर केवल 4 करोड़ रुपये से अधिक की राशि बकाया है। फर्क सिर्फ इतना है कि दबाव और कार्रवाई आम जनता पर है, सरकारी विभागों पर नहीं।

विभागवार देखें तो सबसे अधिक बकाया नगरीय निकायों और पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग का है। नगरीय निकायों पर करीब 8.33 करोड़ रुपये और ग्राम पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग पर 10.50 करोड़ रुपये का बिजली बिल लंबित है। इसके अलावा शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला एवं बाल कल्याण, आदिम जाति कल्याण, वन और जल संसाधन जैसे विभाग भी पीछे नहीं हैं। इन सभी का जोड़ 20 करोड़ रुपये से अधिक का बकाया बनाता है।

हैरानी की बात यह है कि वही सरकारी व्यवस्था, जो आम जनता को समय पर बिल भरने की सीख देती है, खुद भुगतान करने में पीछे नजर आ रही है। बिजली विभाग का कहना है कि संबंधित विभागों से लगातार संपर्क किया जा रहा है, नोटिस भेजे जा रहे हैं और वसूली के प्रयास किए जा रहे हैं। लेकिन बीते एक साल में शासकीय विभागों के बकाया में कोई खास कमी नहीं आई है।

सवाल यह है कि क्या नियम केवल आम जनता के लिए हैं? अगर एक आम आदमी का कनेक्शन कट सकता है, तो करोड़ों का बकाया रखने वाले सरकारी विभागों पर कार्रवाई क्यों नहीं होती? बिजली विभाग और खैरागढ़ प्रशासन के लिए यह एक चुनौती बन चुकी है कि वह न केवल बकाया वसूलने में सक्रिय हों, बल्कि आम जनता के प्रति समानता और न्याय सुनिश्चित करें।

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