दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) अपने एक फैसले में स्पष्ट किया कि बिजली तक पहुंच संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का हिस्सा है। अदालत ने कहा कि किसी व्यक्ति को मकान मालिक-किरायेदार विवाद के कोर्ट में लंबित होने के कारण बिजली से वंचित नहीं किया जा सकता। जस्टिस मिनी पुष्कर्णा ने एक किरायेदार की याचिका पर सुनवाई करते हुए निर्देश दिया कि बिजली वितरक कंपनी मकान मालिक से एनओसी की मांग किए बिना भी बिजली आपूर्ति बहाल करे, ताकि किरायेदार को जीवन और रोजमर्रा की गतिविधियों में बाधा न हो।

दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि बिजली जीवन की मूलभूत आवश्यकता है और यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का हिस्सा है। अदालत ने टिप्पणी की कि जब तक याचिकाकर्ता के पास संबंधित संपत्ति है, उसे बिजली से वंचित नहीं किया जा सकता।

लंबित विवाद बिजली से वंचित करने का आधार नहीं

दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि बिजली जीवन के मूलभूत अधिकारों में से एक है और यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित है। कोर्ट ने फैसला सुनाया कि किसी नागरिक से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह बिजली जैसी मूलभूत जरूरतों के बिना जीवन जिए। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि मकान मालिक और किरायेदार के बीच लंबित विवाद बिजली बंद करने का आधार नहीं बन सकता, क्योंकि यह एक आवश्यक सुविधा है।

दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता और मकान मालिक के बीच विवाद लंबित हैं, लेकिन याचिकाकर्ता विवादित संपत्ति पर वैध रूप से कब्जा किए हुए हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब तक कोई बेदखली का आदेश नहीं होता, याचिकाकर्ता का कब्जा अवैध नहीं माना जाएगा। ऐसे में किसी भी नागरिक को बिजली जैसी मूलभूत सुविधा से वंचित करना उचित नहीं है।

किरायेदार और मकान मालिक के बीच विवाद चल रहा

दिल्ली हाई कोर्ट में याचिकाकर्ता ने याचिका दाखिल की कि बिजली वितरक कंपनी को मकान मालिक से एनओसी की मांग किए बिना उसके किराए के मकान में बिजली आपूर्ति बहाल करने का निर्देश दिया जाए। याचिकाकर्ता ने बताया कि वह वर्ष 2016 से कई पंजीकृत पट्टा विलेखों के तहत परिसर पर वैध कब्जा किए हुए हैं, लेकिन मकान मालिक और किरायेदार के बीच कुछ विवाद चल रहा है। जानकारी के मुताबिक, 2025 में मकान मालिकों में से एक ने याचिकाकर्ता के खिलाफ तीस हजारी कोर्ट में दीवानी मुकदमा दायर किया, जिसमें कब्जे की वसूली, किराए का बकाया और याचिकाकर्ता के खिलाफ स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की गई है।

मकान मालिकों ने जानबूझकर काट दी थी बिजली

दिसंबर में याचिकाकर्ता ने बिजली वितरक कंपनी के खिलाफ प्रतिदावा दायर किया है। इसमें याचिकाकर्ता ने मांग की है कि उन्हें अनिवार्य और स्थायी निषेधाज्ञा जारी कर निरंतर बिजली आपूर्ति बहाल करने का निर्देश दिया जाए, जिसे मकान मालिकों ने कथित रूप से जानबूझकर काट दिया था। प्रतिदावे में याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि बिजली एक मूलभूत आवश्यकता है और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का अभिन्न हिस्सा है।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता विशाल सक्सेना, मीनाक्षी गर्ग और राशि अग्रवाल ने बताया कि अस्थायी आर्थिक तंगी के कारण याचिकाकर्ता सितंबर-अक्टूबर 2025 के बकाया बिजली बिल का भुगतान नहीं कर सके। इसके परिणामस्वरूप, बिजली वितरक ने 28 नवंबर 2025 को बिजली आपूर्ति काट दी और बिजली मीटर हटा लिया।

मीटर लगाकर बिजली बहाल करने का अनुरोध

याचिकाकर्ता ने बताया कि 28 नवंबर 2025 को बकाया बिजली बिल का भुगतान कर दिया गया, और अब बिजली वितरक कंपनी को कोई राशि देय नहीं है। इसके बाद याचिकाकर्ता ने बिजली वितरक से बिजली बहाल करने और मीटर लगाने का अनुरोध किया, लेकिन कंपनी ने मकान मालिक से एनओसी की मांग की।

बिजली वितरक की ओर से पेश अधिवक्ता शारिक हुसैन और कीर्ति गर्ग ने कोर्ट को बताया कि मकान मालिक ही बिजली के रजिस्टर्ड उपभोक्ता हैं। बिल का भुगतान न करने पर बिजली कनेक्शन काटा गया था। इसके बाद मकान मालिक ने तीसरी मंजिल पर बिजली कनेक्शन दोबारा न जोड़ने की सूचना दी, इसलिए बिजली बहाल नहीं की जा रही है।

मकान मालिक बाधा न पहुंचाए

दिल्ली हाई कोर्ट ने बिजली वितरक कंपनी को निर्देश दिया है कि वह मौजूदा मीटर से संबंधित संपत्ति का बिजली कनेक्शन बहाल करे और मकान मालिक से किसी भी प्रकार की एनओसी की मांग न करे। साथ ही कोर्ट ने मकान मालिकों को निर्देश दिया है कि वे किरायेदार के साथ सहयोग करें और बिजली कनेक्शन बहाल करने में याचिकाकर्ता के मार्ग में कोई बाधा न डालें।

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