दिल्ली का प्रदूषण अब पैदल चलने वालों और मॉर्निंग-इवनिंग वॉक करने वालों पर सबसे ज्यादा असर डाल रहा है। एक नए पाँच साल के अध्ययन में यह सामने आया है कि जहरीली हवा का प्रभाव पुरुषों और महिलाओं पर समान नहीं होता, बल्कि यह इस बात पर निर्भर करता है कि वे किस समय और किस प्रकार की शारीरिक गतिविधि कर रहे हैं। अध्ययन के मुताबिक, सड़क किनारे चलने वाले पुरुष सबसे अधिक प्रदूषित हवा अपने फेफड़ों में लेते हैं, जिससे उनके स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ सकता है।
नेताजी सुभाष यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी द्वारा किए गए इस व्यापक अध्ययन में वर्ष 2019 से 2023 तक के प्रदूषण स्तर का विश्लेषण किया गया। शोधकर्ताओं ने इसमें रेस्पिरेटरी डिपोज़िशन डोज़ (RDD) की गणना की यानी हवा में मौजूद प्रदूषण के वे कण जो सांस के जरिए शरीर में प्रवेश कर वास्तव में फेफड़ों में जमा होते हैं। यह अध्ययन 28 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठित जर्नल नेचर में प्रकाशित हुआ, जिससे इसके निष्कर्षों को वैश्विक स्तर पर महत्व मिला।
अध्ययन का शीर्षक “दिल्ली में पार्टिकुलेट मैटर का श्वसन जमाव: जोखिम और स्वास्थ्य खतरों का पांच साल का आकलन” था। यह शोध नोएडा स्थित पर्यावरण परामर्श संस्था AARC के सहयोग से किया गया। अध्ययन में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा जारी PM2.5 और PM10 के आधिकारिक आंकड़ों का विश्लेषण किया गया। इन्हीं आंकड़ों की मदद से वयस्क पुरुषों और महिलाओं के फेफड़ों में हर 15 मिनट और पूरे दिन में जमा होने वाली प्रदूषण कणों की मात्रा (RDD) का अनुमान लगाया गया, जिससे यह समझा जा सके कि किस आयु और लिंग समूह पर इसका प्रभाव अधिक पड़ता है।
इस अध्ययन में कार्यरत वयस्कों और छात्रों के आवागमन के दौरान दो स्थितियों बैठकर और पैदल चलते हुए उनके प्रदूषण संपर्क स्तर का विश्लेषण किया गया। रिसर्च का प्रमुख फोकस सुबह और शाम के व्यस्त समय (ऑफिस एवं कॉलेज आवागमन अवधि) पर था। अध्ययन में खुलासा हुआ कि दिल्ली की सड़कों पर पैदल चलने वाले पुरुष, खासकर शाम के समय, महिलाओं की तुलना में अधिक प्रदूषित हवा सांस के माध्यम से अपने शरीर में ले रहे हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार इसके पीछे अनेक कारक ज़िम्मेदार हैं, जैसे लिंग और आयु में अंतर, वायु में मौजूद कणों का आकार, श्वसन नलिका की संरचना, और सांस लेने की प्रक्रिया जिसमें एक बार में अंदर ली जाने वाली हवा की मात्रा, सांस की आवृत्ति और गति शामिल हैं।
अध्ययन में पाया गया कि फेफड़ों में जमा होने वाले प्रदूषण (RDD) की मात्रा सबसे अधिक औद्योगिक क्षेत्रों में रही। इसके बाद कमर्शियल (व्यावसायिक), इंस्टिट्यूशनल (संस्थान) और आवासीय क्षेत्रों में क्रमशः कम स्तर दर्ज किया गया। बैठने की स्थिति में पुरुषों के फेफड़ों में जमा होने वाला प्रदूषण महिलाओं की तुलना में लगभग 1.4 गुना अधिक था, जबकि पैदल चलने की स्थिति में यह अंतर 1.2 गुना पाया गया। कुल मिलाकर, अध्ययन से यह भी स्पष्ट हुआ कि बैठने की तुलना में पैदल चलते समय फेफड़ों में अधिक प्रदूषण कण जमा होते हैं।
अध्ययन में औद्योगिक क्षेत्रों में PM2.5 के लिए फेफड़ों में जमा होने वाले प्रदूषण (RDD) की अधिकतम दैनिक मात्रा 2019 में दर्ज की गई थी। आंकड़ों के अनुसार, पुरुष और महिलाओं में यह मात्रा अलग थी। पैदल चलते समय पुरुषों में यह 13.13 µg/min थी, जबकि महिलाओं में 10.92 µg/min रही। बैठने की स्थिति में पुरुषों में यह 4.73 µg/min और महिलाओं में 3.38 µg/min पाई गई।
इसी तरह PM10, जो आकार में बड़े और खुरदरे कण होते हैं, के मामले में भी पैटर्न लगभग समान रहा। पैदल चलते समय पुरुषों के फेफड़ों में 15.73 µg/min और महिलाओं में 13.64 µg/min जमा हुआ। वहीं बैठने की स्थिति में पुरुषों में 5.66 µg/min और महिलाओं में 4.22 µg/min दर्ज किया गया। कुल मिलाकर, पैदल चलने पर पुरुषों के फेफड़ों में प्रदूषण का सबसे अधिक जमाव देखा गया।
अध्ययन में विशेष रूप से यह देखा गया कि पैदल चलते समय फेफड़ों में जमा होने वाला प्रदूषण, बैठने की तुलना में काफी अधिक था। पुरुषों में पैदल चलने पर बैठने की तुलना में 2.78 गुना अधिक प्रदूषण जमा हुआ, जबकि महिलाओं में यह अंतर 3.23 गुना दर्ज किया गया।
अध्ययन में पाया गया कि मध्य दिल्ली (Central Delhi) में प्रदूषण का स्तर अपेक्षाकृत कम है। इसका मुख्य कारण यहां सरकारी दफ्तरों की अधिकता, रिहायशी इलाके और हरियाली का होना बताया गया है। रिपोर्ट में यह भी उजागर किया गया है कि प्रदूषण का सबसे गंभीर प्रभाव उन लोगों पर पड़ता है जो लंबे समय तक बाहरी वातावरण में रहते हैं, जैसे:
सड़कों के किनारे काम करने वाले मजदूर
रेहड़ी-पटरी वाले (Roadside vendors)
दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी
शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि इन समूहों के लिए स्वास्थ्य जोखिम बहुत अधिक है और उन्हें विशेष सावधानी बरतने की आवश्यकता है।
अध्ययन में एक गंभीर चेतावनी दी गई है कि पैदल चलने वाले पुरुषों के फेफड़ों में जमा होने वाला प्रदूषण (RDD) राष्ट्रीय मानकों (NAAQS) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के दिशा-निर्देशों से 10 से 40 गुना अधिक पाया गया। शोधकर्ताओं का कहना है कि इतना उच्च स्तर फेफड़ों के स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक हो सकता है। अध्ययन के अनुसार, अधिक RDD सीधे तौर पर सांस की बीमारियों, जैसे अस्थमा (Asthma) और फेफड़ों की पुरानी बीमारी (COPD), के शुरू होने और उनकी गंभीरता बढ़ने से जुड़ा है।
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