नितिन नामदेव, रायपुर। सर्व समाज, बस्तर एवं जनजाति सुरक्षा मंच ने राजधानी रायपुर में प्रेसवार्ता कर कांकेर जिले के आमाबेड़ा क्षेत्र में 15 से 18 दिसंबर 2025 के बीच हुई घटनाओं को अत्यंत गंभीर, संवैधानिक और कानून-व्यवस्था से जुड़ा मामला बताया। संगठन ने कहा कि यह घटनाक्रम न केवल स्थानीय शांति व्यवस्था का प्रश्न है, बल्कि जनजातीय आस्था, परंपरा, ग्राम सभा के मूल्यों तथा प्रशासनिक निष्पक्षता की गंभीर परीक्षा भी है।


ऐसे शुरू हुआ विवाद
सर्व समाज ने जानकारी दी कि घटना की कहानी 15 दिसंबर 2025 को बड़ेतेवड़ा गांव निवासी चमरा राम सलाम की मृत्यु से जुड़ी है। मृतक का पुत्र राजमन सलाम, जो वर्तमान में गांव का सरपंच है, उसी रात लगभग 10 बजे शव को गांव लेकर पहुंचा। 16 दिसंबर की सुबह ग्राम समाज के परंपरागत पदाधिकारी एवं वरिष्ठ ग्रामीण शव के अंतिम संस्कार के विषय में चर्चा के लिए एकत्रित हुए। इस दौरान ग्राम सभा की अनुमति के बिना बाहरी व्यक्तियों, भीम आर्मी से जुड़े पदाधिकारी एवं पास्टर-पादरी की उपस्थिति पाई गई।
ग्रामीणों द्वारा स्पष्ट रूप से यह कहा गया कि गांव का श्मशान स्थल जनजातीय आस्था, पेन-पुरखा परंपरा एवं सामाजिक नियमों के अनुसार संचालित होता है और अंतिम संस्कार उसी विधि से किया जाना चाहिए। इसके बावजूद सरपंच राजमन सलाम एवं उसके परिजनों द्वारा धमकीपूर्ण भाषा का प्रयोग करते हुए निजी भूमि में ईसाई रीति-रिवाज से शव दफन करने की घोषणा की गई, जिससे गांव में भय और तनाव का वातावरण उत्पन्न हुआ।
सुबह लगभग 9 बजे पुलिस के जवान मौके पर पहुंचे, किंतु उनके समझाने के बावजूद निजी भूमि में कब्र खोदने की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गई। पुलिस के साथ धक्का-मुक्की की घटनाएं भी सामने आईं। इसके बाद भी शव को ईसाई रीति से निजी भूमि में दफन कर दिया गया, जो पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में ग्राम सभा और विधि-नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है।
घटना के पश्चात तहसीलदार एवं अन्य अधिकारी मौके पर पहुंचे, परंतु ग्रामीणों द्वारा दिए गए आवेदन को लेने से उनके द्वारा इनकार किया गया। प्रशासनिक उदासीनता के चलते सर्व समाज द्वारा शांतिपूर्ण धरना प्रारंभ किया गया। इसके बावजूद न तो समय पर बातचीत की गई और न ही स्थिति को नियंत्रित करने के लिए प्रभावी कदम उठाए गए।
17 दिसंबर 2025 की सुबह प्रशासन द्वारा दिए गए आश्वासन के विपरीत, कब्र स्थल पर पक्का चबूतरा निर्मित पाया गया। इसी दौरान बड़ी संख्या में बाहरी लोगों द्वारा संगठित रूप से निहत्थे ग्रामीणों पर हमला किया गया, जिसमें लगभग 25 ग्रामीण घायल हुए, जिनमें 11 को गंभीर चोटें आईं। इस दौरान पुलिस द्वारा हमलावरों के विरुद्ध आवश्यक कार्रवाई नहीं की गई।
18 दिसंबर को स्थिति और अधिक गंभीर हो गई। भीम आर्मी से जुड़े व्हाट्सएप संदेशों एवं वीडियो के माध्यम से भीड़ जुटाने के प्रमाण सामने आए, इसके बावजूद जिला पुलिस अधीक्षक द्वारा कोई निवारक कार्रवाई नहीं की गई। हजारों ग्रामीण शव हटाने की मांग को लेकर एकत्र हुए। अंततः दबाव में शव को निकाला गया, किंतु पुलिस द्वारा बल प्रयोग मुख्यतः सर्व समाज के ग्रामीणों पर किया गया, जिससे अनेक लोग घायल हुए।
इस पूरे घटनाक्रम में गंभीर प्रश्न उत्पन्न होते हैं कि पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में बिना ग्राम सभा की अनुमति शव दफन-कफन कैसे किया गया एवं तथाकथित चर्च किस प्रकार संचालित हो रहे थे? स्थानीय विरोध के बावजूद प्रशासन ने समय रहते कार्रवाई क्यों नहीं की? संगठित हिंसा के बावजूद आरोपियों पर कठोर धाराएं क्यों नहीं लगाई गईं? अस्पताल में गंभीर घायलों की चोटों को सामान्य बताकर चिकित्सकीय दस्तावेज़ों को कमजोर क्यों किया गया?
सर्व समाज ने की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की मांग
सर्व समाज, बस्तर की यह स्पष्ट मांग है कि इस संपूर्ण घटनाक्रम की उच्च स्तरीय, स्वतंत्र एवं निष्पक्ष जांच कराई जाए। जनजातीय आस्था और परंपरा पर हमला करने वालों के विरुद्ध कठोरतम कानूनी कार्रवाई की जाए। साथ ही इस पूरी घटना में पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने वाले जिला पुलिस अधीक्षक, अंतागढ़ एसडीएम, तहसीलदार पर भी जांच बिठाई जाए, ताकि इस पूरे घटनाक्रम में उनकी संदिग्ध भूमिका भी उजागर हो सके। यह सर्व समाज की ओर से संवैधानिक अधिकारों और न्याय की रक्षा की एक जिम्मेदार अपील है। लेकिन यदि शासन-प्रशासन सर्व समाज के अधिकारों एवं संस्कृति की रक्षा करने में असफल होता है, तो समाज अपने अधिकारों की लड़ाई सड़क से लेकर अदालत तक संघर्ष करने को बाध्य होगा और इसमें समाज की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी।
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