“हम टूट सकते हैं, झुक नहीं सकते” अटल बिहारी वाजपेयी जी पर यह उक्ति सटीक बैठती है जब आपातकाल (इमरजेन्सी) के दौरान उन्होंने अपने गम्भीर पीट दर्द के चलते चिकित्सीकीय लाभ और जेल से रिहा होने के लिए इंदिरा जी के संदेश को स्वीकार नहीं किया था। आपातकाल के अनेक प्रसंग त्रासदायी है उसमें भी अटल जी ने अपनी रचनाधर्मी सोच को लोकत्रांत्रिक कलेवर देकर सबको झझकोरा और आशावादी अंतर्धारा को प्रवाहित कर इस उक्ति को राष्ट्रीय धरातल पर चरितार्थ किया। तभी परिवर्तन दुनिया के सामने एक नई राजनीतिक संस्कृतिक का उदय जनता पार्टी के रूप में सन् 1977 में हुआ।
मुख्य तौर पर अटल जी के दीर्घ संसदीय जीवन आज भी लोकतंत्र की आईना के रूप में है, जिसे वर्तमान से लेकर अतीत के राजनीतिक प्रतिबिम्बों को निहारने के साथ ही परखा जा सकता है। अनेक विषयों पर उनका भाषण कालजयी तो है ही सामाजिक जीवन में उम्मीदों का अध्याय भी है। बारहवीं लोकसभा में एक सदस्य के तौर पर यद्यपि मुझे 13 महीने ही कार्य करने का अवसर मिला, परंतु इतने ही कालखण्ड में उनकी संसदीय विधाओं के प्रयोग को मैंने नये आकार लेते हुए देखा। संसद में बहस के दौरान मनुष्य की अदम्य लालसा तथा राजनैतिक महत्वाकांक्षा पर उनके व्यंग्य वाक्य आज भी राजनीतिक कोहरे में इन्द्रधनुष के लकीर की तरह है, जहाँ भारतीयता की पहचान अपनी चमक अलग दिखाई देती है। तीन
आज से दशक पहले ही अटल बिहारी वाजपेयी जी ने एक साक्षात्कार में स्वराज और धर्मनिरपेक्षता पर बेवाक विचार व्यक्त करते हुए कहा था कि स्वदेशी और विदेशी में फर्क काफी संकरा हो गया है। इण्डिया और भारत में अन्तर को भी पाटना इसी पृष्ठभूमि में आज की जरूरत है। भारतीय बने रहने के प्रति अधिक सचेत हो सकते हैं। उनके धुर विरोधी भी स्वीकारते हैं कि अटल जी इस कालखण्ड के सबसे समावेशी राष्ट्रवादी नेता है, जिन्होंने भारतीय अस्मिता को जाग्रत करने के लिए वैश्विक मंच का उपयोग किया और संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिन्दी में भाषण देने का प्रथम राजनेता होने का गौरव हासिल किया।
आर्थिक सुधारों के लिए भी अटल जी ने जो राजनैतिक दर्शन और अपना आधार बनाया वह था “सर्वानुमिति का मंत्र” जैसे आज भारत के शीर्ष राजनैतिक नेतृत्व ने भी सबका विकास, सबका साथ’को मूलमंत्र की मान्यता दी है।
तेजी से बदलते आर्थिक-सामाजिक ताना-बाना को उन्होंने केवल आर्थिक सुधार का हिस्सा नहीं माना बल्कि उसके लिए सांस्कृतिक मुड़भेड़ (कल्चरल इनकाउण्टर) को कारण बताया है और नब्बे की दशक से शुरू हुये आर्थिक सुधारों में अवरोधों को दूर करने में नया नजरिया को स्वीकार्य बनाया। इसी दो दशक में ‘आर्थिक मंदी का असर वैश्विक पटल पर दृष्टिगोचर हो रहा था तब भी भारत के आम आदमी तथा भारत भूमि के असली ताकत का अहसास उन्होंने विश्व के महाशक्तिायों को समय रहते कराया था।
इसका सबसे बड़ा उदाहरण था पोखरण का परमाणु विष्फोट भारत के इस कदम से अमेरिका सहित कई विकसित राष्ट्र अचंभित एवं किंककर्तव्यविमूढ़ थे। आज भी अमेरिका के नीति-नियंता वर्ग को इस बात का मलाल है कि उनके पास इसकी जानकारी पहले कैसे नहीं आ पाई। परमाणु विष्फोट के बाद की परिस्थितियों में सबने देखा कि भारत के परमाणु शक्ति सम्पन्न होते ही अमेरिका ने आर्थिक प्रतिबंध का ऐलान कर दिया। तत्काल अटल जी ने संसद में और देशवासियों का अपने सम्बोधन में कहा था कि भारतीय लोकतंत्र के असली ताकत यहाँ के किसान, मजदूर, युवा, महिला हैं। इसलिए आर्थिक प्रतिबंध (इकॉनामिक संक्शन) का असर भारत के अर्थव्यस्था में नहीं पड़ने वाला है, और न ही हम किसी के आगे झुकने वाले हैं। उनकी पक्ति अब फिर से प्रासंगिक हो गई है कि दाँव पर सब कुछ लगा है रूक नहीं सकते।
अटल जी जन-जन से प्रेम करने वाले जननायक हैं। वे एक अप्रतिम वक्ता, संवेदनशील कवि और विचारवान लेखक के साथ भारत के महान नेता है। उनका समग्र व्यक्तित्व अभ्यर्थना और अवमानना के मोह पाश से मुक्त है। वे काव्य व्यक्तित्व के छंद बन गये हैं जिसमें उत्साह का प्रवाह निरंतर होता रहता है। हम यह कह सकते हैं कि अपनी स्वच्छ एवं निष्ठा प्रधान विचारधारा के कारण वे उपमेय से उपमान बन गये हैं। आकाश के सप्तर्षि मण्डल को हम आप देखते ही होंगे वह एक नक्षत्र की परिकमा किया करता है। अटल जी मेरी दृष्टि में भारतीय राजनैतिक गगन के नक्षत्र बन गये हैं।
गुंज उठी गीता की वाणी, मंगलमय जन-जन कल्याणी। अपढ़ अजान विश्व ने पाई, शीश झुकाकर एक धरोहर ।।


