हेमंत शर्मा, इंदौर। मध्य प्रदेश के इंदौर के आजाद नगर थाने की कार्यप्रणाली पर हाई कोर्ट ने बेहद सख़्त टिप्पणी करते हुए इसे सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अवमानना करार दिया है। एक नवयुवती की आत्महत्या से जुड़े इस संवेदनशील मामले में पुलिस की गंभीर लापरवाही सामने आने के बाद हाई कोर्ट ने इंदौर पुलिस कमिश्नर को 12 जनवरी 2026 को व्यक्तिगत रूप से पेश होकर स्पष्टीकरण देने के आदेश दिए हैं।
मानसिक प्रताड़ना से आहत होकर युवती ने किया था सुसाइड
मामला आजाद नगर थाना क्षेत्र का है, जहां एक नवयुवती ने अपने प्रेमी विकास द्वारा शादी से इनकार किए जाने और लगातार मानसिक प्रताड़ना से आहत होकर आत्महत्या कर ली थी। मृतका के माता-पिता के बयानों में स्पष्ट रूप से आरोप लगाए गए थे कि युवती और आरोपी के बीच करीब दो साल से संबंध थे। जब परिजन शादी की बात करने आरोपी के घर पहुंचे, तो विकास के माता-पिता ने कथित तौर पर 50 लाख रुपये की मांग की और बेहद आपत्तिजनक टिप्पणी करते हुए शादी से इनकार कर दिया। इसी मानसिक आघात के चलते युवती ने आत्महत्या जैसा कदम उठाया। इतने गंभीर आरोपों के बावजूद पुलिस की जांच पर सवाल खड़े हो गए। न तो आरोपी का मोबाइल फोन जब्त किया गया और न ही आरोपी के माता-पिता को प्रकरण में आरोपी बनाया गया।
पुलिस कमिश्नर इंदौर तलब
मृतका पक्ष का आरोप है कि यह सब जानबूझकर किया गया ताकि आरोपी को बचाया जा सके। मामले में आरोपी की ओर से जमानत अर्जी दायर की गई। सुनवाई के दौरान मृतका के माता-पिता की ओर से अधिवक्ता मनीष यादव, संतोष यादव और करण बैरागी ने कोर्ट के सामने पुलिस की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने तर्क रखा कि मोबाइल फोन जब्त न करना और माता-पिता को आरोपी न बनाना जांच को कमजोर करने का सीधा प्रयास है। इन तर्कों पर न्यायमूर्ति सुबोध अभंकर की एकलपीठ ने तीखी नाराजगी जताई थी और अनुसंधान अधिकारी को तलब भी किया था। पिछली सुनवाई के बाद अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसे अब जारी कर दिया गया है।
आजाद नगर पुलिस की कार्यप्रणाली पर कड़ा प्रहार
हाई कोर्ट ने आरोपी और मृतका के बीच हुई चैट को आधार मानते हुए आरोपी को फिलहाल 12 जनवरी 2026 तक अंतरिम जमानत की राहत दी है, लेकिन साथ ही आजाद नगर पुलिस की कार्यप्रणाली पर कड़ा प्रहार किया है। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि जिस तरह से जांच की गई, वह सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किए गए मानकों के विपरीत है। इसी आधार पर हाई कोर्ट ने इसे सुप्रीम कोर्ट की अवमानना मानते हुए इंदौर पुलिस कमिश्नर को 12 जनवरी 2026 को हाई कोर्ट में पेश होकर जवाब देने के निर्देश दिए हैं।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अनदेखी कैसे हुई?
अदालत का यह आदेश साफ संकेत देता है कि अब पुलिस की लापरवाही पर पर्दा डालने का दौर खत्म हो चुका है। यह मामला केवल एक आत्महत्या तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सवाल खड़ा करता है कि जब पीड़ित पक्ष के बयान स्पष्ट हों, तब भी क्या प्रभावशाली आरोपियों को बचाने के लिए जांच को कमजोर किया जाता है। हाई कोर्ट की सख़्त टिप्पणी ने एक बार फिर पुलिस की जवाबदेही को कटघरे में खड़ा कर दिया है। अब सबकी निगाहें 12 जनवरी 2026 पर टिकी हैं, जब इंदौर पुलिस कमिश्नर को हाई कोर्ट में यह बताना होगा कि आखिर एक गंभीर मामले में बुनियादी जांच क्यों नहीं की गई और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अनदेखी कैसे हुई।
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