अमित पांडेय, डोंगरगढ़ | छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ में पूर्व प्रधानमंत्रियों के मूर्तियों के रख रखाव और सुरक्षा को लेकर स्थानीय प्रशासन की प्राथमिकता पर सवाल खड़े हो गए हैं. एक तरफ भारत रत्न और पूर्व PM अटल बिहारी वाजपेयी की प्रतिमा, चमक रही है. वहीं दूसरी ओर देश की पूर्व PM इंदिरा गांधी की प्रतिमा महीनों से खंडित हो रखी है. इसे लेकर शहर ब्लॉक कांग्रेस कमेटी विजयराज सिंह चौहान ने प्रशासन पर सत्ताधारी पार्टी देखकर प्राथमिकता तय करने का आरोप लगाया है.

विजयराज सिंह चौहान ने बताया कि इस मामले की शिकायत नगर पालिका से की गई थी लेकिन उनकी उदासीनता के चलते प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की प्रतिमा का लगातार अपमान हो रहा है. हाई स्कूल मैदान में रात होते ही असामाजिक तत्वों का जमावड़ा लग जाता है, फिर भी प्रशासन इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है. बार बार पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का अपमान किया जा रहा है जो कि निंदनीय है. 

25 दिसंबर को अटल बिहारी वाजपेयी की प्रतिमा के लोकार्पण को लेकर पूरा प्रशासन सक्रिय नजर आया. कार्यक्रम स्थल को सजाया गया, सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए और सीसीटीवी कैमरे लगाए गए. आयोजन को लेकर राजनीतिक स्तर पर भी खास तैयारियां देखने को मिलीं. इसके उलट, शहर के हृदय स्थल स्थित हाई स्कूल परिसर में लगी इंदिरा गांधी की प्रतिमा को शरारती तत्वों द्वारा कई बार क्षतिग्रस्त किया गया, लेकिन न तो प्रशासन ने स्थायी समाधान किया और न ही संबंधित राजनीतिक संगठन की ओर से कोई ठोस विरोध सामने आया.

इस स्थिति को लेकर अब आमजन सवाल उठा रहे हैं कि यदि अटल जी की प्रतिमा के लिए इतनी तत्परता दिखाई जा सकती है, तो इंदिरा गांधी की प्रतिमा के मामले में चुप्पी क्यों है. स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रतिमा को लेकर कई बार शिकायतें की गईं, लेकिन हर बार केवल आश्वासन ही मिला. न सुरक्षा व्यवस्था की गई और न ही समय पर मरम्मत कराई गई.

इस संबंध में थाना प्रभारी संतोष जायसवाल ने बताया कि शहर के प्रमुख स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे लगाना आवश्यक है और पुलिस नियमित गश्त कर रही है. वहीं हाई स्कूल के प्रभारी प्राचार्य जागेश्वर चंदेल ने कहा कि प्रतिमा के क्षतिग्रस्त होने की जानकारी नगर पालिका को दे दी गई है. नगर पालिका अधिकारी खिलेंद्र भोई ने मरम्मत कराने का भरोसा दिलाया है, हालांकि जमीनी स्थिति में अभी तक कोई बदलाव नजर नहीं आया है.

यह मामला अब सिर्फ एक प्रतिमा तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि यह सवाल बन गया है कि क्या राष्ट्रीय नेताओं के सम्मान का पैमाना राजनीतिक सुविधा के आधार पर तय किया जा रहा है. डोंगरगढ़ में एक ओर चमकती प्रतिमा जहां सत्ता की सक्रियता दिखा रही है, वहीं दूसरी ओर टूटी हुई प्रतिमा प्रशासनिक संवेदनहीनता की तस्वीर पेश कर रही है. स्थानीय लोगों का कहना है कि सवाल यह नहीं कि किसकी प्रतिमा बड़ी है, बल्कि यह है कि क्या देश के दोनों पूर्व प्रधानमंत्रियों का सम्मान समान रूप से नहीं होना चाहिए.