बांग्लादेश की निर्वासित पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने मंगलवार को बांग्लादेश राष्ट्रवादी पार्टी (बीएनपी) की अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री बेगम खालिदा जिया के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए उनके निधन को देश के राजनीतिक जीवन के लिए एक बड़ी क्षति बताया। बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री और सबसे प्रभावशाली राजनीतिक हस्तियों में से एक, 80 वर्षीय खालिदा जिया का आज सुबह लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। बीएनपी ने सोशल मीडिया पर उनके निधन की घोषणा करते हुए बताया कि फज्र की नमाज के कुछ ही समय बाद, सुबह करीब 6 बजे उनका निधन हुआ। अवामी लीग ने अपने एक्स अकाउंट पर हसीना का शोक संदेश साझा किया। बयान में कहा गया “मैं बीएनपी अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री बेगम खालिदा जिया के निधन पर अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करती हूं। शेख हसीना ने खालिदा जिया के निधन पर दुख जताते हुए कहा कि उनका जाना बांग्लादेश की राजनीति और बीएनपी के लिए बहुत बड़ी क्षति है.
पोस्ट में शेख हसीना के हवाले से लिखा गया, ‘बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री और बीएनपी अध्यक्ष बेगम खालिदा जिया के निधन पर अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करती हूं. बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में और लोकतंत्र की स्थापना में उनके संघर्ष और देश के प्रति उनका महत्वपूर्ण योगदान था, जो हमेशा याद रखा जाएगा. उनका जाना बांग्लादेश की राजनीति और बीएनपी के नेतृत्व के लिए बहुत बड़ी हानि है.’
खालिदा जिया बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री थीं और दो बार पीएम रहीं. पहले 1991 में प्रधानमंत्री बनीं और 1996 तक पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. दूसरी बार वह 2001 से 2006 तक पीएम रहीं. वहीं, शेख हसीना पांच बार प्रधानमंत्री बनीं और पिछले साल तख्तापलट के बाद उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी. देश में उग्र विरोध प्रदर्शनों के चलते उन्हें बांग्लादेश छोड़ना पड़ा और वह इस्तीफा देकर भारत आ गई थीं.
शेख हसीना और खालिदा जिया बांग्लादेश की राजनीति के दो अहम चेहरे हैं, जिनके बीच दशकों तक कट्टर सियासी दुश्मनी रही. बांग्लादेश की राजनीति में इसे बैटल ऑफ बेगम्स भी कहा जाता है. दोनों मिलकर तानाशाही के खिलाफ लड़ती भी नजर आईं, लेकिन सत्ता की कुर्सी ने उन्हें धुर विरोधी बना दिया. खालिदा जिया और शेख हसीना जब-जब प्रधानमंत्री रहीं, दोनों की विदेश नीति में अंतर देखा गया. खासतौर पर भारत को लेकर. खालिदा जिया के कार्यकाल में चीन और पाकिस्तान को ज्यादा तवज्जो दी गई, जबकि शेख हसीना के प्रधानमंत्री रहते भारत बांग्लादेश के ज्यादा करीब रहा.
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