रायपुर। प्रदेश के बहुचर्चित शराब घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने 26 दिसंबर को एक और सप्लीमेंट्री प्रॉसिक्यूशन शिकायत दायर की है, जिसमें राज्य के आबकारी विभाग में 2019 और 2023 के बीच किए गए एक बड़े भ्रष्टाचार का खुलासा किया गया है. जांच में एक सुनियोजित आपराधिक सिंडिकेट का खुलासा हुआ है जिसने अवैध कमीशन और बिना हिसाब वाली शराब की बिक्री से जुड़े एक बहु-स्तरीय तंत्र के माध्यम से व्यक्तिगत लाभ के लिए राज्य की शराब नीति को खराब किया.

ED ने अपने सप्लीमेंट्री प्रॉसिक्यूशन शिकायत में बताया कि सिंडिकेट ने चार अलग-अलग तरीकों से अवैध कमाई की. इसमें पहला अवैध कमीशन था, जिसमें शराब आपूर्तिकर्ताओं से आधिकारिक बिक्री पर रिश्वत ली गई, जिसे राज्य द्वारा भुगतान की जाने वाली “लैंडिंग कीमत” को कृत्रिम रूप से बढ़ाकर सुविधाजनक बनाया गया, जिससे प्रभावी रूप से राज्य के खजाने से रिश्वत का वित्तपोषण किया गया. दूसरा बिना हिसाब की बिक्री की गई, इसमें एक समानांतर सिस्टम ने सरकारी दुकानों के ज़रिए डुप्लीकेट होलोग्राम और कैश में खरीदी गई बोतलों का इस्तेमाल करके “बिना हिसाब की” देसी शराब बेची, जिससे सभी एक्साइज ड्यूटी और टैक्स से बचा जा सका.
इसके अलावा कार्टेल कमीशन तय किया गया. इसमें डिस्टिलर्स ने बाज़ार में अपनी हिस्सेदारी बनाए रखने और राज्य में ऑपरेशनल लाइसेंस हासिल करने के लिए सालाना रिश्वत दी. इसके अलावा FL-10A लाइसेंस के जरिए भी घोटाला किया गया. इसमें विदेशी शराब बनाने वालों से कमीशन वसूलने के लिए एक नई लाइसेंस कैटेगरी शुरू की गई, जिसमें 60% मुनाफ़ा सिंडिकेट को दिया जाता था.
ED द्वारा दायर अभियोजन शिकायत से पता चला है कि तत्कालीन राज्य के प्रशासनिक और राजनीतिक पदानुक्रम में अवैध वित्तीय लाभ के लिए एक गहरी साज़िश रची गई थी. ED द्वारा दायर नवीनतम अभियोजन शिकायत में, 59 नए आरोपियों को आरोपी बनाया गया है, जिससे अब तक कुल आरोपियों की संख्या 81 हो गई है.
अधिकारियों में रिटायर्ड I.A.S और तत्कालीन संयुक्त सचिव अनिल टुटेजा के अलावा तत्कालीन एक्साइज कमिश्नर आईएएस निरंजन दास की भूमिका सामने आई. जैसे वरिष्ठ अधिकारी नीति में हेरफेर करने और सिंडिकेट के निर्बाध संचालन को सुनिश्चित करने में मुख्य थे. CSMCL के मैनेजिंग डायरेक्टर अरुण पति त्रिपाठी (I.T.S.) को अवैध वसूली को ज़्यादा से ज़्यादा करने और भाग-B के ऑपरेशन्स को कोऑर्डिनेट करने का काम सौंपा गया था. इसके अलावा, जनार्दन कौरव और इकबाल अहमद खान सहित 30 फील्ड-लेवल एक्साइज अधिकारियों को “प्रति केस तय कमीशन” के बदले बिना हिसाब की शराब की बिक्री को सुविधाजनक बनाने के लिए आरोपी बनाया गया था.
इनके अलावा राजनीतिक अधिकारी: तत्कालीन आबकारी मंत्री कवासी लखमा और चैतन्य बघेल (तत्कालीन मुख्यमंत्री के बेटे) सहित उच्च पदस्थ राजनीतिक हस्तियों पर नीतिगत सहमति देने और अपने व्यापार में इस्तेमाल करने में उनकी भूमिका के लिए आरोप लगाए गए हैं. मुख्यमंत्री कार्यालय में तत्कालीन उप सचिव सौम्या चौरसिया को अवैध नकदी संभालने और आज्ञाकारी अधिकारियों की नियुक्तियों के प्रबंधन के लिए एक प्रमुख समन्वयक के रूप में पहचाना गया.
इसके अलावा निजी व्यक्ति और संस्थाएँ की भी भूमिका सामने आई है. इस सिंडिकेट का नेतृत्व अनवर ढेबर और उनके सहयोगी अरविंद सिंह ने किया. निजी निर्माताओं, जिनमें M/s छत्तीसगढ़ डिस्टिलरीज लिमिटेड, M/s भाटिया वाइन मर्चेंट्स, और M/s वेलकम डिस्टिलरीज शामिल हैं, ने जानबूझकर शराब के पार्ट-B अवैध निर्माण में भाग लिया और पार्ट-A और पार्ट-B कमीशन का भुगतान भी किया. सिद्धार्थ सिंघानिया (नकदी संग्रह) और विधु गुप्ता (डुप्लीकेट होलोग्राम आपूर्ति) जैसे सुविधादाताओं को भी उक्त धोखाधड़ी में प्रमुख निजी कर्ता के रूप में पाया गया.
मामले में PMLA 2002 की धारा 19 के तहत कुल नौ प्रमुख व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया है. जिनमें अनिल टुटेजा (पूर्व-IAS); अरविंद सिंह; त्रिलोक सिंह ढिल्लों; अनवर ढेबर, अरुण पति त्रिपाठी (ITS); कवासी लखमा (विधायक और छत्तीसगढ़ के तत्कालीन आबकारी मंत्री); चैतन्य बघेल (पूर्व-CM के बेटे): सौम्या चौरसिया (CM कार्यालय में उप सचिव) और निरंजन दास (IAS) शामिल हैं. जबकि कुछ वर्तमान में जमानत पर हैं, अन्य न्यायिक हिरासत में हैं.
ED ने कई अस्थायी कुर्की आदेश जारी किए हैं. जिसमें कुल 382.32 करोड़ रुपए की चल और अचल संपत्तियों को जब्त किया गया है. इन कुर्की में नौकरशाहों, राजनेताओं और निजी संस्थाओं से जुड़ी 1,041 संपत्तियां शामिल हैं, जैसे रायपुर में होटल वेनिंगटन कोर्ट और ढेबर और बघेल परिवारों से संबंधित सैकड़ों संपत्तियां शामिल है.
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