हरिओम श्रीवास, मस्तूरी। ग्राम पंचायत आरक्षण को लेकर बनी असमंजसता से मस्तूरी ब्लॉक में अफरा-तफरी का माहौल नजर आ रहा है. कहीं विरोध हो रहा है, तो कहीं समर्थन मिल रहा. कुछ सरपंचों ने आरक्षण को लेकर मस्तूरी विधायक डॉ कृष्ण मूर्ति बांधी चर्चा की. उन्होंने शासन-प्रशासन के इस कदम को समझ से परे बताते हुए आरक्षण को लेकर अपनी शिकवा-शिकायत की.
मस्तूरी क्ष्रेत्र के कुछ ग्राम पंचायतों के प्रतिनिधियों ने शिकायत की कि उनकी सीट से लगातार उनके वर्ग को छोड़कर आरक्षित होती चली आ रही है. इस बार कहीं पिछड़ा वर्ग, कहीं अनुसूचित जाति तो कहीं अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित किया है, लेकिन इसके लिए जो प्रक्रिया अपनाई गई है, वह गलत है. मस्तूरी सीट की बात कहें तो सरपंच पद अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है, तो पंच के लिए एक भी जनजाति के लिए आरक्षित नहीं किया गया है. ऐसे शिकायत मस्तूरी की 131 ग्राम पंचायतों में से केवल एक ही पंचायत की नहीं, कई पंचायतों से निकलकर सामने आ रही है.
आरक्षण को लेकर प्रशासनिक अधिकारी भी स्पष्ट नहीं हैं. इस संबंध में मस्तूरी एसडीएम मोनिका वर्मा मिश्रा ने बताया कि आरक्षण पॉलिसी गांव की आबादी से और 2011 की जनगणना के आधार पर किया गया है. ऐसे में यह संभव है कि किसी जाति की संख्या गांव में कम हो और आरक्षण उसी जाति का हो जाए. इसके अलावा आरक्षण लॉटरी सिस्टम से निकाला गया है. आरक्षण प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी है. वहीं मस्तूरी जनपद के सीईओ डीआर जोगी ने भी चुनाव में बने आरक्षण के संबंध में जानकारी देने से बचते नजर आए.
मस्तूरी विधायक डॉ. कृष्णमूर्ति बांधी ने भी प्रशासनिक अधिकारियों से आरक्षण के नियमों की जानकारी मांगी तो उन्हें भी दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराया गया. डॉ. बांधी ने कहा कि गांव की जनसख्या के आधार पर आरक्षण मिलना था, लेकिन जिस तरह मस्तूरी, किसान परसदा, चकरबेढ़ा गांव का आरक्षण 10 सालों के लिए हो गया, जिससे गांव का विकास नहीं हो सकता. वहीं अधिकारियों के पास इस आरक्षण प्रक्रिया का कोई भी प्रकार से लिखित गाइडलाइन नहीं है, तो फिर इस आधार पर लॉटरी निकालना पूर्णत: गलत है.
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