रायपुर। भगवान दत्तात्रेय त्रिदेवों के संयुक्त स्वरूप माने जाते हैं. इनके अंदर गुरु और ईश्वर, दोनों का स्वरुप निहित माना जाता है. तो वहीं कुछ मान्यताओं के अनुसार इन्हें भगवान शिव का स्वरूप माना गया है. माना जाता है कि मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा के दिन दत्तात्रेय जयंती पर पूजा करने पर विष्णु और शिव की कृपा मिलती है. भगवान दत्तात्रेय के संबंध में यह माना जाता है कि इनके तीन सिर और छ: भुजाएँ हैं. भगवान विष्णु के अंश से इनकी उत्पत्ति मानी जाती है. दत्तात्रेय जयन्ती के दिन दत्तात्रेय के बालरुप की पूजा की जाती है.
महत्व
मान्यताओं के अनुसार दत्तात्रेय जी ने 24 गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की थी और इन्हीं के नाम पर ही दत्त समुदाय का उदय हुआ. दक्षिण भारत में इनका प्रसिद्ध मंदिर भी है। मान्यता है कि इस जयंती पर जो व्यक्ति व्रत रख इनकी विशेष पूजा अर्चना करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान दत्तात्रेय ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों के एक स्वरूप हैं. इसलिए इनकी पूजा से त्रिदेव प्रसन्न हो जाते हैं.
पूजा विधि
भगवान दत्तात्रेय की उपासना करने के लिए घर के मंदिर या फिर किसी पवित्र स्थान पर इनकी प्रतिमा स्थापित करें. उन्हें पीले फूल और पीली चीजें अर्पित करें. इसके बाद इनके मन्त्रों का जाप करें.
इन मन्त्रों के जाप से सभी मनोकामनाएं होती है पूर्ण…
– ॐ द्रां दत्तात्रेयाय स्वाहा
– ॐ महानाथाय नमः
भगवान दत्तात्रेय के जन्म की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, ग्रंथों के अनुसार एक बार तीनों देवियों पार्वती, लक्ष्मी तथा सावित्री को अपने पतिव्रत धर्म पर बहुत घमण्ड होने लगा. देवऋर्षि नारद को जब उनके घमण्ड के बारे में पता चला तो वह उनका घमण्ड चूर करने के लिए बारी-बारी से तीनों देवियों के पास पहुँचे. सर्वप्रथम नारद जी पार्वती के पास पहुँचे और अत्रि ऋषि की पत्नी देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म का गुणगान करने लगे. देवी ईर्ष्या से भर उठीं और नारद जी के जाने के पश्चात् भगवान शंकर से अनुसूया का सतीत्व भंग करने की जिद करने लगीं. इसके बाद नारद देवी लक्ष्मी के पास गए और उनके समक्ष भी देवी अनुसूया के सतीत्व की बात आरम्भ करके उनकी प्रशंसा करने लगे. लक्ष्मी को भी अनुसूया की प्रशंसा सुनना बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा. नारद जी के जाने के बाद वह भी विष्णु से अनुसूया देवी का सतीत्व भंग करने की जिद करने लगीं. विष्णुलोक से नारद सीधे ब्रह्मलोक जा पहुँचे और देवी सावित्री के सामने देवी अनुसूया की प्रशंसा का राग अलापने लगे. देवी सावित्री को उनकी प्रशंसा सुनना क़तई भी रास नहीं आया. नारद जी के चले जाने के बाद वह भी देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म को भंग करने की बात ब्रह्मा जी से करने लगीं.
ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश तीनों को अपनी पत्नियों के सामने हार माननी पडी़ और वह तीनों ही पृथ्वी पर देवी अनुसूया की कुटिया के सामने एक साथ भिखारी के वेश में जाकर खडे़ हो गए. तीनों का एक ही मकसद होने से अनुसूया के द्वार पर एक साथ ही समागम हुआ। जब देवी अनुसूया इन्हें भिक्षा देने लगीं, तब इन्होंने भिक्षा लेने से मना कर दिया और भोजन करने की इच्छा प्रकट की. देवी अनुसूया ने अतिथि सत्कार को अपना धर्म मानते हुए उनकी बात मान ली और उन्हें स्नान करने के लिए बोलकर स्वयं भोजन की तैयारी में लग गईं। तीनों देव जब नहाकर आए, तब अनुसूया श्रद्धा तथा प्रेम भाव से भोजन की थाली परोस लाईं। लेकिन तीनों देवों ने भोजन करने से इन्कार करते हुए कहा कि जब तक आप हमें अपनी गोद में बिठाकर भोजन नहीं करायेंगी, तब तक हम भोजन नहीं करेंगे। देवी अनुसूया यह सुनते ही पहले तो स्तब्ध रह गईं और गुस्से से भर उठीं, लेकिन अपने पतिव्रत धर्म के बल पर उन्होंने तीनों की मंशा जान ली। देवी अनुसूया ने ऋषि अत्रि के चरणों का जल तीनों देवों पर छिड़क दिया. जल छिड़कते ही तीनों ने बालरुप धारण कर लिया. बालरुप में तीनों को भरपेट भोजन कराया. देवी अनुसूया उन्हें पालने में लिटाकर अपने प्रेम तथा वात्सल्य से उन्हें पालने लगीं.
धीरे-धीरे दिन बीतने लगा जब काफ़ी दिन बीतने पर भी ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश नहीं लौटे, तब तीनों देवियों को अपने पतियों की चिन्ता सताने लगी. एक दिन उन तीनों को नारद से पता चला कि वह तीनों देव माता अनुसूया के घर की ओर गए थे. यह सुनते ही तीनों देवियाँ अत्रि ऋषि के आश्रम में पहुँची और माता अनुसूया से अपने-अपने पति के विषय में पूछने लगीं. अनुसूया माता ने पालने की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह रहे तुम्हारे पति! अपने-अपने पतियों को पहचानकर उन्हें अपने साथ ले जाओ. देवी लक्ष्मी ने चतुरता दिखाते हुए विष्णु को पहचानकर उठाया, लेकिन वह भगवान शंकर निकले. इस पर सभी उनका उपहास करने लगे
तीनों देवियों को अपनी भूल पर पछतावा होने लगा. वह तीनों ही माता अनुसूया से क्षमा मांगने लगीं। तीनों ने उनके पतिव्रत धर्म के समक्ष अपना सिर झुकाया. देवी अनुसूया ने भी अपने पतिव्रत से तीनों देवों को पूर्वरूप में कर दिया. इस प्रकार प्रसन्न होकर तीनों देवों ने अनुसूया से वर मांगने को कहा तो देवी बोलीं- “आप तीनों देव मुझे पुत्र रूप में प्राप्त हों.” तथास्तु कहकर तीनों देव और देवियाँ अपने-अपने लोक को चले गए. कालांतर में ये ही तीनों देव अनुसूया के गर्भ से प्रकट हुए. ब्रह्मा के अंश से चंद्रमा, शिव के अंश से दुर्वासा तथा विष्णु के अंश से दत्तात्रेय का जन्म हुआ, जो विष्णु भगवान के ही अवतार हैं. इन्हीं के आविर्भाव की तिथि ‘दत्तात्रेय जयंती’ कहलाती है.