रायपुर। राजधानी रायपुर में आयोजित आदिवासी अस्मिता संगोष्ठी में दूसरे दिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल शामिल हुए. उनके साथ उद्योग मंत्री कवासी लखमा, संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत, स्कूल शिक्षामंत्री प्रेमसाय सिंह शामिल हुए. इस मौके पर मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारी सरकार ने बीते एक साल में आदिवासी हितों की रक्षा के लिए काम किया है. हमने बस्तर में आदिवासियों की जमीन वापसी, तेंदूपत्ता में चार हजार रुपये समर्थन मूल्य, तृतीय और चतुर्थ वर्ग में आदिवासियों की सीधी भर्ती. शिक्षामित्र के रूप में आदिवासियों का पहली प्राथमिकता, दंतेवाड़ा से सुपोषण अभियान की शुरुआत, हाट-बजार क्लिनिक सहित कई कार्य शामिल है. वहीं सुकमा के जगरगुंडा में 13 साल बाद स्कूल को फिर से खोल दिया गया है. बस्तर में लगभग 105 स्कूल खोले गए हैं.
मुख्यमंत्री ने कहा कि आदिवासी अजायब घर की वस्तु नहीं है. छत्तीसगढ की सबसे बड़ी समस्या नक्सलवाद नहीं कुपोषण और गरीबी है. इसके लिए सरकार ने सुपोषण योजना शुरु कर आदिवासियों के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए पौष्टिक भोजन दिया जा रहा है. लोहांडीगुड़ा में आदिवासियों की जमीन वापस किया गया. वहीं सालों से खेती करने वाले आदिवासियों को जमीन का पट़टा दिया गया. और चारामा के पास जर्बरा ग्राम में आदिवासियों को सैकड़ों एकड़ जमीन का पट़टा प्रदान किया गया जहां इको टूरिज्म से रोजगार मिल रहा है. जेलों में निर्दोष आदिवासियों की रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की कमेटी बनाकर प्रकरणों का अध्ययन किया जा रहा है.
आदिवासी समुदाय हजारों वर्षों से अपना पारंपरिक जीवन सुखी पूर्वक जीता रहा है. उनके जीवन में नृत्य और त्यौहारों का बहुत महत्तव पूर्ण स्थान रहा है. आम का त्यौहार, महुआ का त्यौहार, माटी का त्यौहार आदि पारंपरिक त्यौहार हर माह मनाते हैं जो उनके जीवन शैली में शामिल है। मातृ भाषा को बढावा देने के लिए सरकार ने प्रायमरी स्कूल में गोंडी भाषा में पढाई शुरु कराया है. छत्तीसगढ में कुडकू को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है. यहां की आदिवासी बोली व भाषा में इतना विविधता है कि सरगुजा और बस्तर में बोली जाने वाली भाषा को दूसरे क्षेत्र के आदिवासी नहीं जान पाते हैं. आजादी के आंदोलन में भी आदिवासियों की भूमिका सर्वोपरि रही है. शहीद वीरनारायण सिंह , राजा गेंद सिंह और गुंडाधुर जैसे योद्धा शामिल है.
मुख्यमंत्री बघेल ने एनआरसी और सीएए का विरोध करते हुए कहा कि उनकी माताजी के स्कूल रिकार्ड में दो-दो जन्म तिथियां दर्ज और तो ऐसे में उनकी जन्म तिथि का निर्धारण मालूम नहीं है, तो फिर उनको नागरिकता कैसे मिलेगी ? वहीं इस कानून के लागू होने से आदिवासी अपनी पहचान कैसे साबित कर सकेंगे ?
शनिवार को द्वितीय दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के प्रथम सत्र में आदिवासी प्रतिनिधित्व अस्मिता के स्वर – विषय को लेकर मुख्य वक्ता के रुप में महात्मा गांधी हिंदी विवि वर्धा के बौद्ध अध्ययन केंद्र के प्रभारी निदेशक डॉ सुरजीत कुमार सिंह ने कहा कि आदिवासियों की जनसंख्या पूरे भारत में 8 से 10 प्रतिशत है, लेकिन उनका प्रतिनिधित्व कहीं नजर नहीं आता है. छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की आबादी 32 प्रतिशत और यहां भी आदिवासी नहीं दिखते हैं. आदिवासी दिखते हैं दूर दराज के दुर्गम इलाकों में और छत्तीसगढ़ के रायपुर, बिलासपुर जैसे महानगरों में आदिवासी मुख्यधारा से दूर ही हैं। जबकि छत्तीसगढ़ का हर तीसरा आदमी जनसंख्या के अनुसार आदिवासी है. डॉ. सिंह ने आगे कहा कि ये कहा जाता है आदिवासियों के राजे महाराजे हुए हैं और गोंडवाना में तो आदिवासियों का शासन था, लेकिन कोई दूरदृष्टि न होने के कारण आदिवासियों को शोषण रुक नहीं पाया, बल्कि वे और अधिक अत्याचार बढ़ता चला गया, क्योंकि जो कौम शासन करती है उसका शोषण नहीं होता है. लेकिन आदिवासियों के मामले में उल्टा हुआ है। जबकि ब्रिटिश मुट्ठीभर थे लेकिन उन्होंने पूरी दुनिया पर शासन किया उनका कभी भी शोषण नहीं हुआ। आज आदिवासियों के अस्मिता के साथ सबसे बड़ा खिलवाड़ किया जा रहा है. उनकी कला, संस्कृति और भाषा को नष्ट किया जा रहा है, साथ ही उन्हें जबरन हिंदू बताया जा रहा है.
दिल्ली विवि के पूर्व प्रोफेसर वर्जिनियस खाखा ने कहा कि भूमंडलीयकरण से आदिवासियों का विकास नहीं हुआ। विकास के नाम पर आदिवासियों की सांस्कृतिक व आर्थिक उन्नति नहीं हो सकी, बल्कि प्राकृतिक संपदा का दोहन कर आदिवासियों को जल, जंगल और जमीन से बेदखल किया गया.
लोक अभियोजन संयुक्त संचालक एम.आर. ध्रुव ने कहा कि ऐतिहासिक महापुरुषों में रघुनाथ शाह, शंकर शाह, रानीदुर्गावती, बिरसा मुंडा और डॉ भीमराव अंबेडकर का महत्तवपूर्ण प्रतिनिधित्व रहा है, लेकिन वर्तमान समय में आदिवासियों के प्रतिनिधित्व में गिरावट आई है. जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासियों के हित के लिए अनेक कानून बने हैं, लेकिन अशिक्षा के कारण उनका उपयोग नहीं कर पाते हैं. आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिए लिगल सेल बनाकर मदद करना चाहिए.
वहीं अध्यक्षता करते हुए स्वास्थ्य विभाग के डिप्टी डायरेक्टर डॉ आरके सुखदेवे ने कहा कि समाज में पढ़े लिखे लोग शहरों में घर परिवार तो बसा लेते हैं। लेकिन नौकरी पेशा करते हुए समाज के प्रति समर्पित नहीं रहते है। समाज को आगे बढ़ाने के लिए आज पे बैकटू सोसायटी की सोच शून्य है. डॉ सुखदेवे ने कहा कि आज समाज में सामाजिक लोकतंत्र और शैक्षणिक लोकतंत्र की स्थापना की जरुरत है। हमारे समाज से चुने हुए सांसद दलाल की तरह हैं जो प्रतिनिधित्व की बात नहीं कर सत्ता के चाटुकार बने हुए हैं.
मानव वैज्ञानिक डॉ पियूष रंजन साहू ने कहा कि अंडमान निकोबार द्वीप समूह में निवासरत् आदिवासियों के रहन-सहन और उनके जीवन के अनुकूल परिस्थितियों का अध्ययन करने की जरुरत है. इसके लिए आदिवासियों के सहभागी अवलोकन के बिना उनकी संस्कृति, समाज व्यवस्था व नजरिया को समझा नहीं जा सकता है.
रविवार को संगोष्ठी का अंतिम दिन समापन अवसर पर संगोष्ठी में तीन सत्र का आयोजन किया जाएगा. तीन दिवसीय शोध संगोष्ठी का समापन समारोह का मुख्य अतिथि के रुप में राज्यपाल अनुसुईया उइके होंगे. इस अवसर पर सभी शोधार्थीयों को प्रमाण पत्र का वितरण किया जाएगा.