रायपुर- जमीन विवाद से जुड़े करीब बीस साल पुराने एक प्रकरण की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने रायपुर पुलिस के खिलाफ फैसला दिया है. मामला सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे सुनील सिंह से जुड़ा है, जिनके खिलाफ 1999 में जमीन संबंधी एक मामले में धोखाधड़ी का केस दर्ज किया गया था. इस मामले में रायपुर पुलिस ने तब से अब तक सुनील सिंह को फरार घोषित कर कोर्ट में अभियोग पत्र दाखिल किया था. आरोपी पक्ष के वकील की ओर से दी गई तथ्यात्मक जानकारी को सही पाते हुए प्रथम न्यायिक मजिस्ट्रेट चेतना ठाकुर ने रायपुर पुलिस की जांच को दूषित करार दिया है. साथ ही सुनील सिंह को दोषमुक्त किया है.
साल 1999 में वीआईपी रोड स्थित जमीन की खरीदी-बिक्री में धोखाधड़ी किए जाने की शिकायत प्रार्थी बंशी यादव ने की थी. इस शिकायत के बाद ही प्रकरण दर्ज किया गया था. कोर्ट से मिली राहत के बाद तत्कालीन आईजी-डीआईजी स्तर के अधिकारियों की भूमिका पर सवाल उठाते हुए सुनील सिंह ने कहा है कि उनकी करोड़ों रूपए की जमीन हड़पने की नियत से साजिश रची गई थी. अब जब कोर्ट का फैसला पक्ष में आया है, तो वह जल्द ही उन अधिकारियों के विरूद्ध 10-10 करोड़ रूपए की मानहानि का परिवाद न्यायालय में दायर करेंगे. उन्होंने कहा कि आला अधिकारियों की मिलीभगत से उनके खिलाफ अपराध दर्ज होने के बाद फरार घोषित कर दिया गया. रायपुर पुलिस ने कोर्ट में अभियोग पत्र प्रस्तुत किया था, लेकिन फरार घोषित किए जाने के बाद साल 2011 से 2017 तक जमीन मामले से जुड़े एक अन्य प्रकरण में रायपुर पुलिस ने उनसे दस्तावेज हासिल किए थे. कोर्ट ने इस दलील को तथ्यात्मक मानते हुए रायपुर पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए.
सुनील सिंह ने कहा कि मैं दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में नियमित रूप से प्रैक्टिस कर रहा हूं. मेरे पिता आईपीएस अधिकारी रहे हैं. बावजूद इसके रायपुर पुलिस की ओर से इस तरह किया गया आपराधिक कृत्य बेहद शर्मनाक है. उन्होंने कहा कि पूर्व सरकार में कुछ ताकतवर पुलिस अधिकारियों ने उनके खिलाफ इस तरह से षडयंत्र रचा है. तब झूठे प्रकरण बनाकर जमीन हड़पने का खुला खेल खेला जा रहा था. राज्य में सत्ता बदलने के बाद यह सब कुछ बंद हुआ है. जिस तरह से मेरी जमीन हड़पने की कोशिश की गई थी, फर्जी विक्रय पत्र से पंजीयन कराया गया था. एक काल्पनिक मुख्ययारनामा के आधार पर राजस्व अधिकारियों की सांठगांठ से राजस्व अभिलेख में दर्ज कराया गया. जबकि भू राजस्व संहिता, स्टैम्प एक्ट कहीं भी ऐसा प्रावधान नहीं है.
इधर सुनील सिंह के वकील एन एन चतुर्वेदी ने कहा कि इसी रायपुर में पहले जग्गी मर्डर केस में अनुसंधान किया था. तीन पुलिस अधिकारियों को ट्रायल कोर्ट से सजा मिली थी. वे लोग हाईकोर्ट से जमानत पर है. यह बात समझ में आना चाहिए था कि गलत कार्रवाई पर पुलिस वाले भी दंडित होते हैं. पुलिस सुप्रीम नहीं है, न्याय सुप्रीम है. चतुर्वेदी ने कहा कि रायपुर में पहले पुलिस का एक गिरोह काम करता था, उस गिरोह के जरिए नुकसान पहुंचाने यह प्रकरण पेश किया गया था. डाक्यूमेंट्री एविंडेस यह थी कि उसी गोलबाजार पुलिस ने 2015 में जब्ती कर रही है, जबकि कह रही है कि 1999 से फरार है. न्यायालय ने यही कहा है कि पुलिस की कार्ऱवाई गलत थी. यह आगे के लिए भी नजीर होगी.