रायपुर। पंडित जवाहरलाल नेहरु स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय, रायपुर के सर्जरी विभाग द्वारा स्तन संबंधित बीमारियों के निदान व ईलाज पर आयोजित दो दिवसीय अधिवेशन के अंतिम दिन शनिवार को विशेषज्ञों ने प्रथम सत्र में मेटास्टैटिक ब्रेस्ट कैंसर तथा इसके फैलाव व निदान के विभिन्न पहलूओं पर चर्चा की। वहीं दूसरे सत्र में मोडिफाईड रेडिकल मेस्टैक्टॉमी, स्किन रिपेयरिंग मेस्टैक्टॉमी, ब्रेस्ट रिकंस्ट्रशन और कीमोपोर्ट इन्सर्शन के तरीकों को वीडियो के माध्यम से बताया गया। यह कार्यक्रम चिकित्सा महाविद्यालय स्थित स्व. अटल बिहारी बाजपेयी सभागार में सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम में सफदरजंग अस्पताल नई दिल्ली के वरिष्ठ सर्जन डॉ. चिंतामणी, एम्स नई दिल्ली के सर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ. अनुराग श्रीवास्तव, अजमेर मेडीकल कॉलेज की पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. कुमकुम सिंह, नई दिल्ली के यू.सी. एम.एस. अस्पताल की सर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ. नवनीत कौर तथा के. जी. एम. सी. लखनऊ के एंडोक्राईन सर्जरी के विभागाध्यक्ष डॉ. आनन्द मिश्रा विशेष तौर पर शामिल हुए।
डॉ. कुमकुम सिंह ने मेटास्टैटिक ब्रेस्ट कैंसर में सर्जरी की भूमिका पर जानकारी देते हुए कहा कि मेटास्टैटिक कैंसर जिसे चतुर्थ चरण का कैंसर भी कहा जाता है, रक्तप्रणाली और लसीका (लिम्फैटिक) प्रणाली के माध्यम से शरीर के अन्य हिस्सों में फैल जाता है। धीरे-धीरे शरीर के अन्य हिस्सों में मेटास्टैटिक के तौर पर नए ट्यूमर का निर्माण होने लगता है और शरीर के अंग जैसे लीवर, मस्तिष्क, हड्डी और फेफड़े को प्रभावित करने लगता है। इस प्रकार के स्तन कैंसर में उपचार के बाद भी कैंसर दूसरे हिस्से में वापस आ सकता है। इसे सर्जरी व दवाओं जैसे उपचार के जरिये नियंत्रित किया जा सकता है। ऐसे मामलों में उपचार के दौरान मरीज को सकारात्मक होना जरूरी है।
ब्रेस्ट आंकोप्लास्टी के बारे में जानकारी देते हुए डॉ. आनंद मिश्रा ने कहा कि यदि स्तन में कोई गांठ हो जाती है तो आंकोसर्जन की टीम स्तनों को सुरक्षित रखते हुए केवल गांठ वाले हिस्से को सावधानीपूर्वक निकालते हैं जिससे स्तनों के आकार में कोई परिवर्तन नहीं आता है। आजकल यह सर्जरी भी समय के साथ उन्नत हो चुकी है और बिना किसी बड़े निशान या धब्बे के शल्य क्रिया के जरिये गांठ को बाहर निकाल दिया जाता है। आंकोप्लास्टी ब्रेस्ट सर्जरी में कोशिश की जाती है कि पूरे स्तन को न निकालकर उसके रोगग्रस्त हिस्से को ही निकाला जाये।
डॉ. आशुतोष गुप्ता ने कीमोपोर्ट इन्सर्शन के तरीके पर वीडियो के माध्यम से जानकारी दी। कीमोथेरेपी के बाद जब नसें दिखनी या मिलनी बंद हो जाती है तो एक डिवाइस जिसे कीमोपोर्ट कहते हैं, को छाती पर इन्सर्ट करके नस तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। मोडिफाईड रेडिकल मेस्टेक्टॉमी के बारे में डॉ. चिंतामणि ने बताया कि स्तन कैंसर जो ऑपरेशन से निकाले जा सकते हैं, इसमें सबसे ज्यादा किये जाने वाले ऑपरेशन हैं मोडिफाईड रेडिकल मेस्टेक्टॉमी, जिसमें बीमारी पूरी जड़ से निकाल दी जाती है, उसके बाद रेडियेशन दी जाती है। डॉ. अनुराग श्रीवास्तव ने कहा कि स्किन स्पेरिंग मेस्टेक्टॉमी में चमड़ी को बचाते हुए स्तन को निकाला जाता है। इसी प्रकार ब्रेस्ट रिकंस्ट्रशन में पीठ की मांसपेशियों का इस्तेमाल करके स्तन को फिर से बनाया जा सकता है। कार्यक्रम में शामिल सभी विशेषज्ञों, प्रतिनिधियों और सदस्यों को सर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ. शिप्रा शर्मा ने स्मृति चिन्ह भेंट करके धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम में चिकित्सा महाविद्यालय के सर्जन डॉ. संदीप चंद्राकर, डॉ. मंजू सिंह, डॉ. अंजना निगम, डॉ. अमित अग्रवाल, डॉ. राजेन्द्र रात्रे के साथ एएसआई छत्तीसगढ़ चैप्टर के अध्यक्ष डॉ. एफ. एच. फिरदौसी, सचिव डॉ. संतोष सोनकर समेत सर्जिकल क्लब रायपुर के अध्यक्ष डॉ. सुभाष अग्रवाल, सचिव डॉ. वैभव जैन समस्त पदाधिकारी उपस्थित थे।