वैभव बेमेतरिहा। छत्तीसगढ़ म जब ले मुख्यमंतरी भूपेश बघेल ह भौंरा ल रट्ट मार के चलाय हे…अपन हाथ म वोला नचाय हे…ये भौंरा ह छत्तीसगढ़ के चारो मुड़ा छाए हे. फेर कतको झन ये पूछत हे कि सरकार खाली भौंरा चलात रइही का ? भौंरा चलाय के अलावा सरकार ल अउ का आथे ? किसिम-किसिम के सवाल ? फेर इन सब सवाल के जवाब इही हे…ये भौंरा म गाँव-गँवई के माटी के सुगंध हे साहेब. ये भौंरा म छत्तीसगढ़िया रंग हे. ये भौंरा म अपन नान पन के सुरता हे. ये भौंरा म सिरिफ छत्तीसगढ़ ही नहीं, बल्कि वो पूरा भारत देश के रंग हे जेन गाँव कहाथे.
मुख्यमंतरी भौंरा चला के ये दिखाना नइ चाहत होही कि वोला कतका बढ़िया भौंरा चलाय ल आथे ? सीएम तो भौंरा के संग शहर म उपेक्छा के भाव ले देखें जाने वाला गाँव-गँवई के खेल ल दिखाना चाहथे. वो शहरिया मन ल दिखाना चाहथे कि न गाँव-गँवई नंदाय, न गाँव-गँवई के खेल-कूद, न तीज-तिहार. जेन मन बांटी-भौंरा ल झुग्गी-झोपड़ी, बस्ती के खेल समथे, जेन मन गोटा खेलना, फुगड़ी नाचना ल देहाती समझथे. दरअसल उही खेल मन ल खेल के, खेला के बघेल दाऊ ह छत्तीसगढ़ ही नहीं पूरा देस ल ये दिखाना चाहथे कि ये तो हमर मान-अभिमान हरय. हमर गाँव-गँवई के सम्मान हरय. ये हमर संस्कृति अउ परंपरा के जड़ हरय. ये भुलाना अपन संस्कृति अउ परंपरा ले कट जाना होही.
इही पाय के मुखिया ल जब भी जेन मंच म अपन छत्तीसगढ़ियापन ल, अपन देहातीपन ल, अपन गाँव-गँवई के रंग ल देखाय के मउका मिलथे वो गरब के संग, सम्मान के संग वोला देखाय, शहर वाला मन ल बताय अउ समझाय ले पाछू नइ हटय. फेर चाहे हरेली तिहार मना के गेड़ी चढ़े के बात होवय, लइका मड़ई म नोनी म संग गोटा खेले के बात होवय, अपन जनमदिन म बैगा लइका ल हाथ म उठाय के बात होवय, कातिक पुन्नी म गुलाटी मार मुंदरहा नहाना होवय या अभी युवा महोत्सव म रस्सीखींचना या पिट्ठुल मारना होवय. ये सब जिनिस ल जब कोनो सरकार के मुखिया ह करथे त वोखर असर शासन-परशासन, अधिकारी-करमचारी संग जम्मों जनमानस म होथे.
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंतरी के ये नेक भाव अउ परयास बर बेमेतरिहा ह अभार तो जताबे करही. उँखर परयास ले आज सिरिफ गाँव-गँवई के हमर भौंरा शहर-शहर चारो मुड़ा ही नइ चलत, बल्कि छत्तीसगढ़ी संस्कृति के रंग, छत्तीसगढ़िया देशीपन घलोक बगरत हे. सिरतोन म मुख्यमंतरी के भौंरा म गाँव-गँवई के माटी के सुगंध हे…येमा हमर संस्कृति-परंपरा के रंग हे.