रायपुर। आम धारणा है कि घुटनों की समस्याओं में संपूर्ण घुटना प्रत्यारोपण करना पड़ता है, यह अब गलत सिद्ध हो चुकी है, पार्शियल नी रिसर्फेसिंग में पूरे घुटने को नहीं बदला जाता बल्कि सिर्फ खराब हुए हिस्से की सतह को बदल देते हैं. इससे मरीज की रिकवरी तेज हो जाती है, और वह रोजमर्रा के जीवन में जल्दी लौट जाता है. यह बात नी और ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जन डॉ प्रीतम अग्रवाल ने ऑर्थोपेडिक कॉन्फ्रेंस में कही.
छत्तीसगढ़ ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन और पं जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल मेडिकल हॉस्पिटल के संयुक्त सौजन्य से आयोजित कांफ्रेंस में इंदौर से आए डॉ हेमंत मंडोवरा ने बताया कि पार्शियल नी रिसर्फेसिंग में तुलनात्मक रूप से काफी कम चीरा लगाया जाता है, और 25 से 30 प्रतिशत इस तरह के मरीज इलाज से पूर्ण स्वस्थ हो सकते हैं.
पोश्चर सही नहीं होने से भी होती है दिक्कत
इंदौर के ही डॉ. केदार अग्रवाल एवं डॉ. आलोक सी अग्रवाल ने कहा कि 50 प्रतिशत तक की आर्थोपेडिक समस्याएं शरीर के उपयोग नहीं, बल्कि दुरुपयोग करने के कारण होती हैं जैसे कि पोश्चर सही ना होना, बिस्तर से सो कर उठते समय एकदम सीधा होकर उठना आदि. उन्होंने बताया कि सदैव करवट लेकर ही बिस्तर से सो कर उठना चाहिए, इससे हड्डी रोगों से संबंधित समस्याएं होने की आशंकाएं कम होंगी.
टाइट बेल्ट पहनने से होती है कमर में समस्याएं
उन्होंने कहा कि टाइट बेल्ट भी कमर में नहीं पहनना चाहिए, इससे कमर में समस्याएं हो सकती हैं. जीवन शैली एवं खानपान में आवश्यक बदलाव कर विटामिन डी एंड विटामिन B12 तथा कैल्शियम आदि के सेवन की कमी के कारण होने वाली हड्डी की बीमारियों से 90 प्रतिशत तक आसानी से बचा जा सकता है. मात्र 10% प्रकरण ही ऐसे होते हैं, जिसमें सर्जरी की आवश्यकता होती है.
कॉन्फ्रेंस में डॉ. के सुदर्शन, डॉ. मनीष बुधिया, डॉ. नितिन जुनेजा, डॉ. विकास गुप्ता ने बताया कि जो नई-नई तकनीकें इस कॉन्फ्रेंस में बताई गई, उससे उनका आत्मविश्वास काफी बढ़ा है. आने वाले समय में आधुनिक चिकित्सा सुविधाएं सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों, जिला अस्पतालों एवं चिकित्सा महाविद्यालयों से संलग्न बड़े अस्पतालों में भी मरीजों के लिए उपलब्ध होंगी.