रायपुर। स्कूल शिक्षा सचिव आलोक शुक्ला ने कलेक्टरों को लिखा है. पत्र में छत्तीसगढ़ के स्थानीय भाषाओं के साथ-साथ उड़िया भाषा में शिक्षा देने की बात कही गई है. इस पत्र में स्कूल शिक्षा सचिव ने कहा है कि मुख्यमंत्री के घोषणा के अनुरूप छत्तीसगढ़ के स्थानीय भाषाओं में शिक्षा दी जानी है. इसके साथ ही उन्होंने यह भी लिखा है कि उच्च न्यायलय में एक याचिका दायर की गई है जिसमें उड़िया पढ़ाने की मांग की गई है. अतः किस इलाके में उड़िया पढ़ने वाले जो लोग उनकी जानकारी दीजिए. साथ ही उन्होंने यह भी लिखा है कि जिस बोली-भाषा में बच्चें पढ़ना चाहते हैं उसकी जानकारी भी दे.

पाँचवीं तक पूर्ण माध्यम में ही पढ़ाएं- नंदकिशोर शुक्ल 

मातृभाषा में शिक्षा के लिए बीते 20 वर्षों से अनवरत आंदोलन कर छत्तीसगढ़ी राजभाषा मंच के संयोजक नंदकिशोर शुक्ल ने मुख्यमंत्री की घोषणा का स्वागत करते हुए कहा कि पाँचवीं तक अनिवार्य रूप से पूर्ण माध्यम में ही मातृभाषा में शिक्षा दी जाए. उन्होंने छत्तीसगढ़ी में अपनी प्रतिक्रिया कुछ इस तरह से दी है-

“ए ह सही हे, मगर एकदम सही नइ हे ! ‘बोली-भाषाओं में’ के बजाय ‘बोली-भाषाओं के माधियम ले’ लिखाय रइतिस त एकदम सही होतिस ! ‘प्राथमिक शालाओं में’ के संग-संग ‘पाँचमी कक्छा तक’ लिखाय रइतिस त एकदम सही होतिस ! वइसे जउन ‘सिक्छा के अधिकार अधिनियम-२००९’ के जिकर मुखमन्तरी जी करे हें तेमा तो आठमी कक्छा तक महतारी-भासा के माधियम ले सिक्छा-बेवस्था करे के कानून हे ! ‘छत्तीसगढ़़ी भाषा की पढ़ाई की व्यवस्था सभी क्षेत्रों में करने का प्रयास किया जाएगा’, ए सोच घलाव ह एकदम सही हे ! काहेके, ‘छत्तीसगढ़़ी’ ह खाली महतारी-भासा भर नोहय त ओ ह छत्तीसगढ़़ के ‘इस्थानीय, छेतरीय जनभासा के संगेसंग राजभासा’ घलाव ए ! तेखरे-सेती सिक्छा-नीति के मुताबिक ‘छत्तीसगढ़़ी-महतारीभासी’ लइकामन लs पाँचमी कक्छा तक के सबो बिसयमन के ‘पराथमिक-सिक्छा’ छत्तीसगढ़़ी के माधियम ले ही देना चाही ! एखर संगेसंग एक अलगा बिसय के रूप मँ कक्छा पइहिली ले दसमी तक छत्तीसगढ़़ी लs पढ़ाय जाना चाही ! अइसनहा होही तव सम्बिधान के अनुच्छेद ३५०क, नि:सुल्क अउ अनिवार्य बाल सिक्छा के अधिकार अधिनियम –२००९ के धारा २९(२)(च) अउ नवा रास्टीय सिक्छा नीति के अनुसार एकदम सही होहय !”

ये है स्कूल शिक्षा सचिव का पत्र-