रायपुर- राज्य गठन के बाद यह पहला मौका रहा, जब नक्सलियों की मांद में घुसकर त्रि स्तरीय पंचायत चुनाव के लिए मतदान कराया गया. चुनाव बहिष्कार की घोषणा करने वाले नक्सली छिटपुट घटनाओं को छोड़कर मतदान के दौरान अपनी उपस्थिति तक दर्ज नहीं करा सके, जबकि साल 2015 में हुए पंचायत चुनाव के आंकड़ें की माने तो तब नक्सलियों के हौसले बुलंद थे और धमकी देकर चुनावी प्रक्रिया में शामिल होने जाने वाले आदिवासियों को रोका जाता था. फोर्स पर हमले बोले जाते थे. मतदान के प्रतिशत में भारी गिरावट आती थी.
पुलिस मुख्यालय की ओर से जारी किए गए आंकड़ें बताते हैं कि साल 2015 में त्रि स्तरीय पंचायत चुनाव में बस्तर में नक्सलियों ने तांडव मचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. दंतेवाड़ा, कांकेर, कोंडागांव औऱ सुकमा जैसे घुर नक्सल प्रभावित जिलों में कुल 53 घटनाएं घटी थी. दंतेवाड़ा में जहां 2 मतपेटी लूट ली गई थी, तो वहीं चुनाव में हिस्सा लेने वाले एक प्रत्याशी की नक्सलियों ने हत्या कर दी थी. कांकेर में मतपेटी लूटने के दस मामले सामने आए थे, वहीं सुरक्षा बल पर फायरिंग के 3 मामले दर्ज किए गए थे. कोंडागांव में मतपेटी लूटने के 5 मामलों का खुलासा हुआ था, जबकि सुकमा जिले में मतदान दल पर हमले के 2 मामले, मतपेटी लूटने के 47 मामले, सुरक्षा बलों पर फायरिंग के 3 और चुनाव में हिस्सा लेने वाले प्रत्याशी की हत्या किए जाने का एक मामला सामने आया था.
डीजीपी डी एम अवस्थी का कहना है कि विधानसभा, लोकसभा, नगरीय निकाय और अब पंचायत चुनाव में नक्सल घटनाओं में आई कमी पुलिस के लिए गर्व की बात है. किसी भी चुनाव में ऐसी कोई घटना नहीं घटी, जिसमें बड़ा नुकसान उठाना पड़ा हो. जाबांज पुलिस कर्मियों ने लोकतंत्र की बहाली का जो बीड़ा उठाया था, उसमें सफलता मिली. बुलेटतंत्र पर लोकतंत्र हावी रहा. उन्होंने कहा कि केंद्रीय चुनाव आयोग ने भी विधानसभा चुनाव के समीक्षा के दौरान छत्तीसगढ़ पुलिस की पीठ थपथपाई थी. राज्यों के साथ हुई वीडियो कांफ्रेंसिंग में मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा था कि नक्सल चुनौतियों के बावजूद छत्तीसगढ़ ने कैसे बेहतर काम किया, दूसरे राज्यों को यह जाकर जरूर देखा जाना चाहिए.