रवि गोयल,जांजगीर-चांपा। जिले से 40 किलोमीटर दूर बसे पंतोरा गांव में होली की एक अनोखी परंपरा है. पिछले 200 सालों से यहां लट्ठमार होली खेलने की परंपरा चली आ रही है. इस लट्ठमार होली का विशेष महत्व है. गांव से दूर पहाड़ियों में स्थित मां मड़वारानी मंदिर के पहाड़ से ग्रामीण बांस की लाठियां लाकर मां भवानी के मन्दिर में रखते है. उसे बैगा पूजा कर अभिमंत्रित करता है और फिर पूरा का पूरा गांव इसी लाठी से दूसरे दिन लट्ठमार होली की शुरूआत हुई. कुंवारी लड़कियां गांव घूम-घूमकर पुरुषों को लाठी मारती नजर आई.
दरअसल होली के पांच दिन बाद शनिवार को रंग पंचमी के अवसर पर ग्राम पंतोरा के भवानी मन्दिर में गांव के लोग एकत्रित होकर इस लट्ठमार होली की शुरूआत करते हैं. गांव में स्थित मां भवानी मन्दिर के बैगा के द्वारा गांव के नौ कुंवारी कन्याओं को पूजा कर अभिमंत्रित की हुई लाठियां थमाई जाती है और फिर कुंवारी कन्याएं और महिलाएं घूम घूमकर पुरूषों पर लाठियां बरासाती हैं. इस मौके पर गांव से गुजरने वाले हर शख्स को लाठियों की मार झेलनी पड़ती है. इस गांव में यह परम्परा बर्षों से चली आ रही है. इस परम्परा के पीछे गांव के लोगों का कहना है कि मथुरा के तर्ज पर ही गांव में लट्ठमार होली खेली जाती है.
इस होली को खेलने के पीछे गांव वालों की मान्यता है कि देवी मन्दिर के बैगा के द्वारा गांव के नौ कुंवारी कन्याओं को पूजा कर अभिमंत्रित की हुई. लाठियां से मार खाने पर गांव में आने वाली महामारी और बीमारी दूर होती है और गांव में खुशियां बनी रहती है. इसमें सबसे खास बात यह है कि इस दिन लाठी से मार खाने के दौरान अगर किसी को चोट लग भी जाती है या खून निकल जाता है तो दर्द नहीं होता है और वह रातों-रात ठीक हो जाता है.
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि लगभग 200 वर्ष पूर्व गांव में महामारी फैल गई थी जिसके चलते लोगों की मौत होनी शुरू हो गई थी. तब उस समय के एक बैगा के सपने में देवी मां ने आकर यह रास्ता गांव वालों को बताया था. जिसके बाद गांव वालों ने इस अनोखी परंपरा की शुरुआत की थी. जिसके बाद से गांव में महामारी खत्म हो गई थी और आज भी गांव वाले देवी मां के प्रति अपनी आस्था को लेकर इस परंपरा का पालन कर रहे हैं. इस मौके पर रंग गुलाल का भी जमकर प्रयोग किया जाता है.