रायपुर। विश्व भर में कोहराम मचाने वाले कोरोना वायरस ने देश के कई राज्यों को अपने चपेट में ले लिया है. दिन-प्रतिदिन इसके मरीजों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है. इस खतरनाक वायरस के संपर्क में आने मात्र से यह संक्रमित कर दे रहा है. जब इस वायरस के खौफ की वजह से लोग अपने घरों में खुद को कैद कर रहे हैं ऐसे समय में देश के डॉक्टर्स, नर्स और पैरामेडिकल स्टाफ इस खतरनाक वायरस से लोगों का जीवन बचाने अस्पतालों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं, यह भूलकर कि उन्हें भी खतरा हो सकता है. बावजूद इसके मेडिकल स्टाफ को अनेकों समस्याओं से जूझना भी पड़ रहा है. खासतौर पर जो दूसरे शहरों या अन्य राज्यों से आकर रह रहे हैं, ऐसे मेडिकल-पैरामेडिकल स्टॉफ को अनेको चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. सरकार और खास तौर पर मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री ने ऐसी समस्याओं को बेहद गंभीरता से लिया है. वे उन्हें दूर करने का प्रयास भी कर रहे हैं लेकिन ऐसे समय में आम जनता के साथ ही स्वयं सेवी संस्थाओं को भी मदद के लिए सामने आना होगा.

 अस्पताल में कोरोना संक्रमित-संदिग्ध आते हैं इसलिए घर खाली करो

हॉस्पिटल बोर्ड के चेयरमैन डॉ राकेश गुप्ता ने बताया कि डॉक्टर्स सहित मेडिकल और पैरा-मेडिकल स्टाफ जो कि किराए के मकान में, हॉस्टल या पीजी में रहते हैं, इनके संचालक-मालिक उन पर घर या रुम खाली करने का दबाव बना रहे हैं. इन संचालकों-मालिकों का तर्क था कि वे हॉस्पिटल में कोरोना के मरीजों या संदिग्धों का इलाज कर रहे हैं लिहाजा उन्हें भी इस वायरस से ग्रसित होने का खतरा है. प्रदेश भर से इस तरह की शिकायतें मिलने के बाद डॉ गुप्ता और संघ के पदाधिकारियों ने सरकार और स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों के सामने इन शिकायतों को रखा. जिस पर स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने कलेक्टर और एसपी पर ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिये हैं जो कि मकान खाली करने का दबाव बना रहे हैं. कलेक्टर-एसपी ने विश्वास दिलाया है कि अगर उन्हें इसकी शिकायत मिली तो वे सख्त कार्रवाई करेंगे.

लॉक डाउन में बंद परिवहन बना चुनौति

दूसरे राज्यो या शहरों से आकर रह रहे मेडिकल स्टॉफ के लिए लॉक डाउन की स्थिति में बंद परिवहन भी चुनौति के रुप में सामने आ रहा है. लॉक डाउन होने की वजह से बस-टैक्सी, ओला-उबर सभी बंद हैं वहीं जिनके पास खुद की गाड़ियां हैं उन्हें सड़क में पुलिस का सामना करना पड़ रहा है. डॉ राकेश गुप्ता ने बताया कि समस्त समस्याओं के साथ ही इसके संबंध में स्वास्थ्य विभाग के आला-अधिकारियों से चर्चा करने पर उन्होंने कलेक्टर को परिवहन की व्यवस्था के निर्देश दिये हैं. कलेक्टर ने अब मेडिकल-पैरा मेडिकल स्टाफ के लिए एंबुलेंस या शटल बस के द्वारा स्टाफ को लाया-ले जाया जाएगा.

सेनिटाइजर और मॉस्क की कमी

डॉ राकेश गुप्ता ने बताया कि डब्ल्यूएचओ और आईसीएमआर की गाइडलाइंस के मुताबिक मेडिकल और पैरा-मेडिकल स्टॉफ के लिए मास्क और सेनिटाइजर की व्यवस्था होनी चाहिए. लेकिन कोरोना की दहशत की वजह से बड़ी मात्रा में लोगों द्वारा खरीदी की जा रही है जिसकी वजह से इसकी शार्टेज हो गई है. राज्य सरकार ने इसे गंभीरता से लिया है, लोकल स्तर पर खरीदी की जा रही है. सीजीएमएससी के पास डेढ़ लाख मास्क स्टॉक में है और चालीस हजार दान में मिले हैं जो कि एक दो दिन में वितरित किये जाएंगे. वहीं सेनिटाइजर के लिए सरकार ने डिस्लरी वालों को बनाने का आदेश दिया है. अकेले केडिया डिस्लरी में 18 हजार लीटर प्रति दिन बनाए जा रहे हैं, अन्य डिस्लरी वालों को भी बनाने का आदेश दिया गया है.

भोजन की आ रही समस्या

लॉक डाउन की वजह रेस्टोरेन्ट होटल और मेस भी बंद कर दिये गए हैं, जिसकी वजह से बाहर से आकर रहने वालों के लिए भोजन भी एक समस्या के रुप में सामने आया है. डॉ गुप्ता ने बताया कि इस तरह की शिकायत आने के बाद ऐसे मेडिकल स्टाफ के लिए अस्पताल या मेस में ही अब व्यवस्था की जा रही है.

PPE की कमी

कोरोना के मरीजों का इलाज करने वाले डॉक्टरों, मेडिकल-पैरा मेडिकल स्टाफ को संक्रमण से बचाने के लिए एक विशेष तरह का लिबास दिया जाता है, जिसमें गाउन, ग्लोव्स और विशेष तरह का चश्मा रहता है. जो कि मेडिकल स्टाफ को इस खतरनाक वायरस के संक्रमण से बचाता है. इसे ही पीपीई यानी कि पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट कहा जाता है. इसकी प्रदेश के साथ ही देश में भारी कमी है. कोरोना के मरीजों का इलाज करने वालों के लिए यह बेहद जरूरी है. डॉ राकेश गुप्ता बताते हैं कोरोना का संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है, इलाज करने वाले तमाम स्टाफ के लिए यह आवश्यक है. बगैर इसके अगर कोई रोगी के पास आता है तो वह भी संक्रमित हो जाएगा. इसकी कमी की वजह से डेथ रेट यानि कि मौत का आंकड़ा बढ़ सकता है. डॉ गुप्ता ने बताया कि रेल मंत्रालय ने मंगलवार को आदेश जारी किया है कि रिजनल रेलवे वर्कशॉप में बैडसाइड लॉकर, पीपीई इत्यादि का उत्पादन करेंगे.