लेखक- तारन प्रकाश सिन्हा
इस लॉक डाउन के दौरान रोज कमाने खाने-वालों, प्रवासी मजदूरों और बेघरों के लिए प्रबंधन देशभर में चुनौती बनकर उभरा है। सात पड़ोसी राज्यों से सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से जुड़े छत्तीसगढ़ में भी ओडिशा, उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड आदि राज्यों के प्रवासी मजदूर बड़ी संख्या में निवासरत हैं। गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश समेत अनेक राज्यों में छत्तीसगढ़ के मजदूर प्रवास करते हैं। इन मजदूरों का प्रबंधन यहां भी एक चुनौती हो सकती थी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। देश के दिगर इलाकों जैसी भगदड़ यहां नजर नहीं आई।
कोविड-19 के फैलाव के शुरुआती दिनों में ही छत्तीसगढ़ शासन ने इस स्पष्ट समझ के साथ काम करना शुरू कर दिया था कि यदि विदेशों से आ रहे संक्रमित लोगों को आइसोलेट कर उपचार करने के साथ-साथ दिहाड़ी मजदूरों को सुरक्षित नहीं किया गया तो जल्द ही स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाएगी। दो चीजें जरूरी थीं, एक तो इन मजदूरों को इस वायरस के खतरों के बारे में ठीक से समझाया जाए, दूसरी यह कि उन्हें उनकी दैनिक जरूरतों की पूर्ति को लेकर आश्वस्त किया जाए। इन दोनों ही मोर्चों पर सफलता हाथ लगी।
लॉक-डाउन के दौरान देश के दिगर शहरों की तरह छत्तीसगढ़ के गांवों-शहरों में पुलिस को बल-प्रयोग की जरूरत नहीं पड़ी। लॉक-डाउन के महत्व को शासन ने इतने सफल तरीके से कम्युनिकेट किया गांव के गांव अपनी-अपनी सुरक्षा के उठ खड़े हुए। उन्होंने अपने नियम कायदे खुद तय किये और अपने तौर-तरीके भी। किसानों के ब्यारों के ‘राचर’ गांवों के मुख्यमार्गों के बैरियर बन गए। यह जागृति सरगुजा से लेकर बस्तर के सुदूर अबुझमाढ़ और सुकमा तक नजर आई।
शासन को अपनी जिम्मेदारियां तो निभानी ही थीं, सो पीडीएस के तहत दो माह के मुफ्त राशन का इंतजाम करने के साथ-साथ हर ग्राम पंचायत में जरूरतमंदों के लिए दो क्विंटल चांवल की अतिरिक्त व्यवस्था भी कर दी। खेती-किसानी कम से कम प्रभावित हो इसके लिए यह सुनिश्चित किया गया कि लॉक-डाउन के दौरान खाद, बीज और कीटनाशकों की दुकानें खुली रहें। किसानों को जरूरी ऐहतियात के साथ अपनी बाड़ियों और खेतों में काम करने दिया जाए, ताकि शहरी इलाकों में भी सब्जियों और दिगर जरूरी चीजों की आपूर्ति बनी रहे। मनरेगा के कार्यों में तेजी लाई जाए, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए। इन इंतजामों ने गांवों को रोटी और रोजगार के प्रति आश्वस्त किया।
शहरी क्षेत्रों के कल-कारखानों में काम करने वाले मजदूरों को रहने और भोजन की व्यवस्था की जिम्मेदारी कारखाना मालिकों को दी गई। साथ ही यह भी तय किया गया कि यदि मालिकों द्वारा अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन नहीं किया जाता है तो फिर जिला प्रशासन के माध्यम से मजदूरों के भोजन आदि का इंतजाम किया जाए। इस लॉक-डाउन के दौरान छत्तीसगढ़ ने न केवल अपने गांवों और शहरों में मजदूरों को थामे रखा, बल्कि अन्य राज्यों में फंसे छत्तीसगढ़ के मजदूरों को वहीं पर बेहतर से बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए संबंधित मुख्यमंत्रियों से बात की। उन मजदूरों के खातों में नकद का इंतजाम किया। दूसरे राज्यों के जो मजदूर छत्तीसगढ़ में फंसे थे, उनके लिए भी यहां बेहतर से बेहतर इंतजाम किए गए।
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने इन मजदूरों से अपील करते हुए कहा कि कोविड-19 के संकट से उबरने के लिए लॉक-डाउन को सफल बनाने के अलावा और कोई उपाय नहीं है। इसलिए जो जहां है वह वहीं रहे। छत्तीसगढ़ के जो मजदूर अन्य प्रदेशों में वह अपनी चिंता हम पर छोड़ दें। अन्य प्रदेशों के जो मजदूर छत्तीसगढ़ में हैं, वे हमारे मेहमान हैं, हम उन्हें कोई कठिनाई नहीं आने देंगे। शासन द्वारा आम लोगों के साथ किए जा रहे निरंतर संवाद से ही यह संभव हो पाया कि इस व्यापक मुहिम में खासा जन सहयोग मिला। मजदूरों, बेघरों और भिक्षुओं की सेवा के लिए अनेक स्वयं सेवी संस्थाएं आगे आईं, अनेक लोगों ने व्यक्तिगत तौर पर भी बड़ी मदद की। पेंड्रा में एक सेवानिवृत्त शिक्षक लोगों को मुफ्त में मास्क बांटते नजर आए तो नवागढ़ के लोग सौंरा जनजाति के लोगों के रहवास, राशन आदि की व्यवस्था में सक्रिय दिखे। गीदम के डेयरी संचालक दिनेश शर्मा ने तो अपने डेयरी उत्पादों के दाम 30 प्रतिशत तक घटा दिए, ताकि ऐसे समय में बुजुर्गों और बच्चों को सेहतमंद आहार सस्ते में, आसानी से सुलभ हो सके।
जकात फाउंडेशन नाम की रायपुर की संस्था ने राशन के पैकेट बनाकर जरूरतमंदों को उपलब्ध कराए। नगरीय निकायों ने अपने स्तर पर भोजन आदि का इंतजाम किया। इन निकायों के प्रतिनिधियों ने भी अद्भुत सक्रियता दिखाई। इसी कड़ी में रायपुर नगर निगम ने 30 हजार जरूरतमंदों तक भोजन पहुंचाने की व्यवस्था की। बिलासपुर में फूड सप्लाई सेंटर की स्थापना की गई। पहले ही दिन इस सेंटर के लिए दान दाताओं ने लगभग 2 लाख रुपए का दान दिया।
मुख्यमंत्री जी ने जब प्रदेश के सहायता कोष में योगदान की अपील की तो देखते ही देखते खासी रकम जमा होने लगी। सांसदों, विधायकों, मंत्रियों, शासकीय अधिकारियों, कर्मचारियों, शिक्षकों से लेकर गांवों के कोटवारों तक ने अपना आर्थिक योगदान दिया। कोटवार प्रशासन की सबसे अतिम कड़ी होते हैं। गांवों को सचेत करते रहने के साथ-साथ उन्होंने अपनी न्यून आय भी कोविड-19 पीड़ितों के लिए समर्पित कर दी।