लेखक- सुशील आनंद शुक्ला (छत्तीसगढ़ कांग्रेस के मुख्यप्रवक्ता)

ऐसी घटनाएं हमारे आपके साथ अनेको बार हुई होगी भले ही आप पहले न हो लेकिन दूसरे तीसरे पांचवे दसवें तो जरूर रहे होंगे। आप सड़क पर बाइक या कार से किसी भी साधन से जाते हुए रुक जाइये और किनारे लगे बिजली के खम्भे को देखना शुरू कर दीजिए. कुछ देर में कोई और पक्का रुकेगा वह भी देखेगा धीरे-धीरे एक एक करके दर्जनों लोग रुक कर ऊपर उसी खम्भे को देखने लगेंगे।भले ही किसी को कुछ समझ नहीं आये। किसी ने दूसरे से पूछ लिया कि भाई क्या है तो वह जबाब देगा पता नहीं कुछ तो है ऊपर यह सारा क्रम काफी देर चल सकता है। यह मनुष्य की कौतूहल वाली प्रवित्ति का नतीजा है।

कभी कभी आप घर मे महिलाओं को अचानक किसी अजीबोगरीब क्रिया कलाप में सलंग्न देखते है मसलन पीपल के पेड़ पर सात दिया जलाना या फिर सुहागन को पांच बिंदी दान देना या जिसके जितने बच्चे है उतना फल खाओ या दान करो ।पूछने पर पता चलता है फला दीदी ,भाभी, बुआ ,मामी का फोन आया था वह बता रही थी ऐसा करना है नही तो वो अपशगुन होगा सब कर रहे हैं मैं भी कर लेती हूं टोका टाकी मत करना इस प्रकार के तमाम प्रपंच हिंदुस्तान के कोने कोने में वर्षो से चल रहे है ।हम सबके लिए यह सामान्य बात है।

यह किस्सा मैं आप सबको इसलिए बता रहा हूं कुछ दिन पहले कोरोना से बचाव के लिए देश भर ने ,थाली पीटा, मोमबत्तियां जलाई ।कुछ लोग इसे मोदी जी के आह्वान का प्रभाव मान बड़े खुश हो रहे मोदी जी ने आह्वान किया देश ने उनका समर्थन किया यह उनका जनाधार है।अरे भइया जिस देश में समान्य अफवाह पर लोग गणेश जी को दूध पिलाने लोग मंदिरों में दूध ले लाईन लगा लेते है जिस देश मे महिलाएं बिना किसी ठोस जानकारी के टोटके कर लेती है यह सोच कर ऐसा करने में हमारा जाता क्या है ।जहाँ लोग एक आदमी के सड़क पर ऊपर देखते देख कर कौतूहल में खुद भी ऊपर देखने लगते है उस देश मे यदि प्रधानमंत्री नेशनल टीवी पर दैवीय आपदा के समय कोई टोटका करने का आह्वान करते है तो लोगो को उसको मानना सामान्य बात है। इस घटना को नेता की महिमा और प्रभाव बता कर मगन रहने वाले जान ले यह संक्रमण काल नोटबन्दी के समान नही है कि लोग पर पीड़ा से खुश होंगे हमारा क्या गया ।पैसे वालो का गया जिसने जमा कर के रखा था उसका गया ।कोरोना महामारी है बीमारी अमीर गरीब देख कर नही आती ।वैसे भी कोरोना की मार में देश का गरीब जादा बेहाल है।

लॉक डाउन से उनको कोई फर्क नही पड़ने वाला जो साधन संपन्न है या जिनके पास घर मे खाने पीने की कुछ महीने कोई दिक्कत नही आने वाली ।इसका सबसे ज्यादा प्रभाव उन पर पड़ रहा जिन्हें रोज कमाना है तभी उनके घरों में चूल्हे जल पाते हैं जब वे दिन भर में कुछ कमा लें। सब्जी फल का ठेला लगाने वालों को छोड़ दिया जाय तो आज सड़क पर व्यवसाय करने वाला तथा मजदूरी कर जीवन यापन करने वाला हर आदमी बेबस और मजबूर है ।उसे या सरकार का सहारा चाहिए या फिर समाज के समृद्ध तबके की मदद की ।इस अनिश्चितता के माहौल में समाज मे भी बहुत बड़ा तबका मदद की स्थिति में खुद को नही पाता , उसे खुद नही मालुम कि वह अपने परिवार की व्यवस्थाओं को कितने दिन पूरी कर पायेगा।अपनी तमाम संवेदनाओं के वावजूद स्वम को असहाय पा रहा है। लॉक डाउन के 21 दिन बाद भी चलने पर दिहाड़ी मजदूरी से ऊपर जो लोग छोटी मोटी नौकरियां दुकानों ,छोटे कार्यालयों में काम करते है छोटे निजी संस्थानों में काम करते है , भृत्य मुंशी आदि की नौकरी कर होने वाली आमदनी से अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करते है उनके पास भी अब पैसे और राशन दोनो खत्म होने को है.

इस वर्ग ने भी अपने प्रधानमंत्री के आह्वान पर अपने परिवार की कुशलता के लिए थाली भी पीटा ,और दिया भी जलाया रैलियां निकलने पर जिंदाबाद के नारे भी लगाया अब जरूरत है प्रधानमंत्री भी थाली मोमबत्ती के प्रपंच से ऊपर उठ कर इन निम्न और मध्यम तबके के लोगो की परेशानियों को दूर करने की कवायद करें। एक शहर से दूसरे शहर एक राज्य से दूसरे राज्य जाने की आपाधापी शौकिया नही थी ।इसके पीछे भूख भय और असुरक्षा की भावना थी ।हजार पांच सौ किलोमीटर पैदल चलने निकलने वाले लोगो ने इसे अंतिम रास्ते के रूप में चुना था।

निसन्देह यह एक वैश्विक महामारी है इससे दुनिया के तमाम ताकतवर देशों मे कोइ नही बचा है।भारत मे इस महामारी ने जनवरी में दस्तक दिया और काफी धीरे धीरे विस्तार किया कह सकते है कि कोरोना ने भारत को बचाव का पूरा अवसर दिया था ।दुर्भाग्य से हमने इस अवसर का सदुपयोग नही किया ।प्रधानमंत्री जी अमीरों को हवाई अड्डो पर रोकने का साहस जब दिखाना था तब तो आप इच्छा शक्ति सुसुप्त थी।यदि कुछ लाख लोगों को आइसोलेशन में रखने का कदम उठाया गया होता तो आज देश के लिए 135 करोड़ लोगों को घरों के अंदर रहने की नौबत नहीं आती और न ही देश के करोङो लोगो को भूख से लड़ने की जद्दोजहद करने की मजबूर होना पड़ता।फरवरी में वेंटिलेटर और पीपीई जैसे आवस्यक चिकित्सीय उपकरणों के निर्यात की अनुमति देने के अदूरदर्शी निर्णयों का जबाब भी कालांतर में जनता को देना ही पड़ेगा।