मुंबई। कोरोना वायरस की वजह से देश-दुनिया में लॉकडाउन की स्थिति है. ऐसे में उद्योग-व्यापार के साथ-साथ खेल गतिविधियों पर भी विराम लगा है. ऐसी स्थिति में जहां कुछ खेल संगठन दिवालिया हो जाएंगे, तो कुछ खेल संगठन चांदी काटने वाले हैं. यह नजारा बहुत दूर नहीं बल्कि हमारे देश के अलग-बगल में ही दिखने वाला है.

दुनिया के तमाम क्रिकेट बोर्ड के लिए आय का सबसे बड़ा जरिया खेल श्रृंखलाओं के प्रसारण से मिलने वाली राशि है. इसके अलावा स्पांसर और आईसीसी इवेंट से मिलने वाली रकम होती है. और तीन में से दो मामलों में भारत के मुकाबले कोई देश नहीं टिकता है. एक तरफ जहां भारत की श्रृंखलाओं से न केवल भारत बल्कि आयोजक देश भी प्रसारण अधिकार के तौर पर टीवी कंपनियों से भारी-भरकम रकम पाता है, वहीं भारतीय टीम के स्पांसरशिप के लिए कंपनियों में होड़ मची रहती है.

लेकिन यह बात हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के साथ बांग्लादेश और श्रीलंका के लिए लागू नहीं होती. तीनों देशों की तुलना में पाकिस्तान की हालत सबसे ज्यादा खराब है क्योंकि कोरोना की वजह से हाल में पहली बार पूरी तरह से घरेलू मैदान में खेला जा रहा पाकिस्तान सुपर लीग (पीएसएल) बीच में ही रद्द करना पड़ा है, वहीं दूसरी ओर एशिया कप रद्द होने से भी आयोजक देश होने के नाते खामियाजा भुगतना पड़ेगा.

हालत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हाल ही में शोयब अख्तर ने कोरोना वायरस के होने वाले नुकसान से उबरने के लिए भारत के साथ एक दिवसीय मैचों की श्रृंखला की बात कही थी, जिस पर भारत की ओर से कोई आधिकारिक जवाब नहीं दिया गया. अब पाकिस्तान बोर्ड की हालत ऐसी है कि अगले पांच-छह महीने कोई मैच नहीं हुए तो क्रिकेटरों के साथ कोच और सपोर्टिंग स्टाफ को देने के लिए पैसा नहीं रहेगा.

अब बात बांग्लादेश की. बांग्लादेश ने 2014 में छह साल के लिए टीवी प्रसारण अधिकारी का सौदा 20 मिलियन यूएस डॉलर (140 करोड़ रुपए) में किया था. यह अवधि इसी अप्रैल माह में खत्म होने वाली है. इसके बाद कोरोना की वजह से श्रृंखलाओं को लेकर असमंजसता की स्थिति में नया सौदा होने में बड़ी समस्या आएगी. वहीं श्रीलंका क्रिकेट की भी हालत खस्ता है. हाल के महीनों में छह बार टीवी प्रसारण अधिकारी के लिए टेंडर जारी कर चुका है, लेकिन एक भी टीवी कंपनी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई है.

कुल मिलाकर भारत को छोड़कर पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड के लिए कोरोना वायरस वाकई में जीवन-मरण का सवाल पैदा कर दिया है. अगर इस संक्रमण काल से निपटने के लिए बेहतर रणनीति नहीं बनाई तो इसका असर सालों नहीं बल्कि पीढ़ियों तक नजर आएगा.