सुप्रिया पांडे,रायपुर। राजधानी रायपुर में लॉकडाउन की वजह के कुम्हार काफी परेशान नजर आ रहे है. सुबह से वे इस इंतजार में बैठे रहते है कि कोई तो उनके पास मटके खरीदने आएगा. जिससे उनकी आमदनी बढ़े, लेकिन ऐसा कतई नहीं हो रहा है. कुम्हार बताते है कि एकमात्र यही हमारे आमदनी का जरिया है. बता दें कि गर्मियों के मौसम में मिट्टी के बर्तनों की बेतहासा बिक्री होती है. भारी संख्या में लोग मटका, सुराही के साथ ही अन्य मिट्टी से बनी हुई सामाग्री खरीदने आते है.

कुम्हार राजू चक्रधारी ने बताया कि हम सालों से मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करते है और उसे बेचते है, लेकिन कोरोना की वजह से खरीद्दार नहीं आ रहे है. हम सुबह से ही खाली बैठे रहते है. 2 बजे के बाद प्रसाशन की तरफ से ये कहा जाता है कि दुकाने बंद कर दीजिए.

लीलाबाई चक्रधारी ने बताया कि सुबह से ही ये सोचकर दुकान लगाते है कि कोई तो हमारे पास से मिट्टी के बर्तनों की खरीद्दारी कर ले, लेकिन आते भी है तो 100 में से 5 फीसदी लोग ही आते है. पहले के मुकाबले आमदनी काफी कम हो गई है. सरकार चावल तो दे रही है, लेकिन उससे क्या हो जाएगा. खर्च करने के लिए कुछ पैसे भी तो होने चाहिए.

कुम्हार घनेश्वरी चक्रधारी ने बताया कि हम शुरू से ही मिट्टी के बर्तन बनाते है और उसी से ही हमारा घर चलता है. इस उम्र में दूसरा कोई काम हमें नहीं मिलेगा. हम कैसे अपना गुजारा करेंगे ये हमें सोचना पड़ रहा है.

बड़ा सवाल यही है कि आम लोग जब घरों से बाहर निकलेंगे ही नहीं, तो कुम्हारों के मटके खरीदेगा कौन ? जब कोई खरीदेगा ही नहीं तो पैसे कहा से आएंगे ? मुफलिसी की मार सिर्फ कुम्हार ही नहीं झेल रहे है, बल्कि वो तमाम गरीब तबके के लोगों को लॉकडाउन का दंश झेलना पड़ रहा है. घर से बाहर निकले, तो पुलिस की मार और घर में रहे, तो पेट की मार झेल रहे हैं. रोजमार्रा की जिंदगी जीने वालों के लिए अभी बड़ी दुख की घड़ी है.

हालांकि कोरोना माहामारी से निपटने के लिए लॉकडाउन का पालन करना जरूरी है. यदि जिंदगी रही तो कल इससे कहीं ज्यादा कमा सकते हैं. इसलिए बेवजह घरों से बाहर न निकलें.