भारत जैसे विकासशील देश की अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान ह। कोरोना वायरस के संक्रमण ने इस अर्थव्यवस्था को पूर्ण रूप से झकझोर कर रख दिया है। भारत में अधिकांश क्षेत्रों में स्थापित उद्योग कृषि पर आधारित हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था ग्रामीण अर्थव्यवस्था है। इसलिए ‘ भारत गांवों में बसता है ‘। कृषि भारत की आत्मा है। कृषि कार्य में लगे हुए अन्नदाताओं के लिए इस संकटकालीन परिस्थितियों में जूझने के अलावा और कुछ नहीं है।
इसी तरह छत्तीसगढ़ एक कृषि प्रधान राज्य है। कोरोना संक्रमण के चलते लाकडाउन मे भी इस राज्य ने तेजी से आर्थिक वृद्धि दर्ज की है। रिजर्व बैंक आफ इंडिया के गवर्नर डॉ.शशिकांत दास ने राज्य की प्रशंसा की है। छत्तीसगढ़ की 80% जनसंख्या कृषि व कृषि आधारित उद्योगों से अपना आजीविका कमाते हैं। इस राज्य की 37.46 लाख कृषक परिवारों में से 76% सीमांत व लघु कृषकों का है। कृषि संगणना रिपोर्ट 2010-11 के आकंड़ों के आधार पर 21.82 लाख परिवार सीमांत कृषकों का है, जिनके द्वारा 9.53 लाख हे. भूमि पर कृषि कार्य किया जाता है। 8.31 लाख परिवार लघु कृषकों का है जिनके द्वारा 11.79 लाख हेक्टेयर भूमि पर एवं वृहद् कृषक परिवारों की संख्या केवल 28 हजार परिवार है जिनके द्वारा 4.51 लाख हे.भूमि पर कृषि कार्य किया जाता है। इससे स्पष्ट है कि छत्तीसगढ़ पूर्ण रूप से कृषि प्रधान राज्य है और इस समय भारत मे फैले कोरोना संक्रमण से बचने के लिए राज्य सरकार ने अनेक ठोस कदम उठाया है जो प्रशंसनीय है। इसलिए अन्य राज्यों की तुलना में छत्तीसगढ़ में कोरोना नियंत्रण में है। इस प्रदेश में कोरोना संक्रमण के साथ प्राकृतिक आपदाएं जिसमें ओलावृष्टि होने के कारण रबी व अन्य फसलों को शत प्रतिशत नुकसान हुआ है जिसके चलते यहां के कृषकों के उपर कर्ज की बादल मंडरा रहा है। ऐसे समय में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना खरीफ फसलों की राहत राशि का वितरण कर दिया गया है, जो इन कृषक परिवारों के लिए कुछ राहत की बात है। खरीफ फसलों की तैयारी इस प्रदेश के किसान पहले से करते हैं। लिहाजा छत्तीसगढ़ सरकार ने किसानों को 900 करोड़ रूपये का भुगतान लॉकडाउन में किया है। वहीं राजीव गांधी न्याय योजना के अंतर्गत धान की अंतर की राशि भी मई से मिलने लगेगी। इन सबके बीच प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना रबी फसलों पर हुए नुकसान की राशि शीघ्र जारी करता है तो इतने लंबे समय तक लाकडाउन के बाद भी यहां के कृषि उत्पादन को नियंत्रित रखा जा सकता है।
सरकार द्वारा रबी सीजनों मे चना, गेहूं पर हुए नुकसान का नहीं, बल्कि अन्य फसलों फल व सब्जियों की खेती करने वाले किसानों को जो बैंकों से केसीसी लेकर खेती करते हैं उनको भी राहत प्रदान करने की योजना तैयार करें। छत्तीसगढ़ राज्य में इस बार सब्जी, खरबूजा, केला, पपीता, फूल व अन्य फसलों की खेती करने वाले किसानों को भारी नुकसान हुआ है। साथ ही साथ कृषि क्षेत्रों में रबी फसलों का शत-प्रतिशत नुकसान के चलते ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को अन्य वर्षों की तुलना में बेरोजगारी का सामना करना पड़ रहा है। लॉकडाउन के चलते कृषि मजदूरी करके जीवन यापन करने वाले लोगों को जीवन से जूझना पड़ रहा है। विकास की विभिन्न योजनाएँ खासकर नरवा, गरवा, घुरवा और बारी को संचालित कर ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने का प्रयास करें।
इस प्रदेश में कृषि साख समितियों, सेवा सहकारी समितियों के माध्यम से खरीफ सीजन में खाद के साथ-साथ प्रमाणित बीजों का वितरण यहां के किसानों को किया जाता है। इस प्रदेश में लगभग बीस हजार धान की प्रजाति है, जिनमें से बहुत सी प्रजाति उपलब्ध होने के बाद भी कृषकों को ज्यादातर सरना (स्वर्णा), महामाया, आदि धान के बीज सेवा सहकारी समितियां उपलब्ध कराती है। आज प्रदेश के कृषकों मे जागरूकता आ गयी है। फसल परिवर्तन कर उन लोग भी अधिक उत्पादन करना चाहते हैं। छत्तीसगढ़ पूरे भारत में धान का समर्थन मूल्य 2500 रुपये देने वाला पहला राज्य है, जिसके चलते यहां धान की रकबा मे वृद्धि हुई है। अधिकांश कृषक रोपा पद्धति से खेती करते हैं इसलिए हाईब्रीड धान भी जो यहाँ के मिट्टी के अनुकूल हो किसानों को उपलब्ध कराना चाहिए जिससे निजी कृषि केन्द्रों से उनकी निर्भरता कम हो सके और समय से पहले बीज किसानों को मिल जाए। साथ ही यहाँ के कृषकों का कृषि ऋण लिमिट बढ़ाकर कृषि ऋण प्रदान किया जाए, ताकि बढ़ते कृषि उत्पादन लागत के चलते अधिकांश कृषक खेती नहीं कर पाते हैं। उनको थोड़ी राहत मिलेगी साथ ही आवश्यक कृषि उपकरणों को सही समय पर कम लागत में प्रदेश के सभी क्षेत्रों में कृषि विभाग द्वारा उपलब्ध सुनिश्चित किया जाए, जिससे कृषि कार्य व कृषि मजदूरी करने वालों के लिए सुविधा हो।
छत्तीसगढ़ के मैदानी क्षेत्र में कृषि प्रधान दो फसली व सब्जी उत्पादन वाला जिला बेमेतरा जो प्रदेश के कृषि मंत्री जी का गृह जिला है, रबी उत्पादन में खासकर चना उत्पादन में सभी 28 जिलों की तुलना में सर्वाधिक उत्पादक जिला है। इस बार प्राकृतिक आपदाओं के कारण यह जिला शत-प्रतिशत नुकसान मे है। प्रदेश के कृषि प्रधान जिले के आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अन्य जिलों की भी यही स्थिति है। अतः प्रदेश के अलग-अलग जिलों में समस्या के आधार पर किसानों के लिए विस्तृत कार्य योजना तैयार कर रबी सीजन में जिन किसानों के उपर कर्ज है उनको खरीफ सीजन के लिए बिना कर्ज अदायगी किये खाद बीज उपलब्ध कराकर आने वाले वर्ष में कर्ज वसूली कर व कृषि विभाग एवं राजस्व विभाग द्वारा सही सही जानकारी बनाकर सभी पात्र कृषकों को लाभ पहुंचाकर इस संकटकालीन परिस्थितियों से निकला जा सकता है।
लेखक- अर्थशास्त्री
पं.रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर ( छ.ग. )