रायपुर। पूरे देश मे एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश और एक ज़िले से दूसरे ज़िले में जाने पर पाबंदी है। विशेष अनुमति के बाद ही लोगों को एक ज़िले से दूसरे ज़िले में जाने की अनुमति लेनी पड़ी रही है। पुलिस हर जिले में तैनात है ताकि कोई बिना अनुमति के बॉर्डर ने पार कर ले।

लेकिन छत्तीसगढ़ की पुलिस पैदल चलकर बॉर्डर पर करने वाले मज़दूरों को सिर्फ रोक नही रही है बल्कि उन्हें खाना खिलाते हुए हिदायत भी दे रही है- ”बाबू धीरे – धीरे निकल जाना”।

ये बात हम नहीं कह रहे हैं बल्कि रायपुर के सिलतरा से पैदल बनारस के लिए निकले मज़दूर कह रहे हैं। करीब 350 किलोमीटर चलने के बाद ये अम्बिकापुर पँहुचे। रात करीब 10 बजे इनसे हमने बात की। इन 5 युवाओ से मज़दूरों की व्यथा, ड्यूटी पर तैनात पुलिस और प्रशासन की गंभीर लापरवाही को लेकर कई जानकारियां मिलीं। ये मामला तब और गंभीर हो जाता है जब प्रवासी मज़दूरों में कोरोना के मामले सामने आए हैं।

इन मज़दूरों ने बताया कि रायपुर से अभी तक कहीं पुलिस ने नहीं रोका। ये मज़दूर मिर्जापुर के रहने वाले हैं। जो सिलतरा की श्री राम नाम की सीमेंट पाइप बनाने की फैक्ट्री में काम करते हैं। कोरोना के चलते फैक्ट्री बंद होने के बाद ये करीब महीने भर वही रहे। उसके पास जब सब पैसे खत्म होने लगे तो रायपुर से ये पैदल ही रवाना हो गए।

मज़दूरों में से रइस नाम के युवा ने बताया कि वे अकेले नहीं है। सड़कों पर दिन-रात पैदल चलते हुए मज़दूरों की संख्या हज़ारो में है। जो अपने घरों की ओर निकले हैं। ज़्यादातर मज़दूर पैदल और साईकल पर हैं। इनमे कई ऐसी माएँ हैं, जो तीन-चार महीने के बच्चो को गोद मे उठाकर पैदल चल रही हैं।

रईस ने बताया किसी मज़दूर की कहीं कोई जांच नहीं हो रही है। पिछले चौक पर किसी साहेब ने इन्हें बताया है कि बनारस चौक पर दूसरे साहेब मिलेंगे और वे किसी माल ले जाने वाली गाड़ी में बिठा देंगे। सरफ़राज़ का कहना है कि गाड़ी नहीं मिली तो आस्ते-आस्ते पैदल ही निकल जाएंगे। जब यही रुकवाने का प्रस्ताव हमने इन्हें दिया तो इन्होंने कहा- ‘हम यहां क्या करेंगे’। एक और मज़दूर सरफ़राज़ का कहना है कि वे घर नहीं जाएंगे बल्कि बनारस में पहले जांच करायेंगे और अपने ज़िले के बॉर्डर पर बने क्वारंटाइन सेंटर में रहेंगे।

बहुत सारी बातें इनके हालात ने बयान कर दी। इन्हें भूख की चिंता नहीं थी, रास्ते भर लोग और पुलिस वाले बिस्कुट और खाने के पैकेट दे रहे थे। पर इनके चेहरे पर एक डर था कि कहीं इन्हें रोक न लिया जाए। जब इनसे हमने पूछा कि सरकार अगर यहां पर रुकवाए तो क्या करोगे? तो ये खामोश हो गए। इनके मुरझाये चेहरे पर उलझन भी दिखने लगी।

हवाई चप्पल पहने सैकड़ो किलोमीटर चलने वाले मज़दूरों ने पैरों के छाले दिखाए। रईस ने बताया कि उदयपुर में इनको कुछ मददगारों ने दवाइयां भी दी थी। उसने कहा कि लोग मदद करते रहे तो वे पैदल बनारस पंहुच ही जाएंगे ।