वैभव बेमेतरिहा, रायपुर। मुबई-हावड़ा ट्रेन रुट पर एक व्यवसायिक नगर है भाटापारा. भाटापारा आज छत्तीसगढ़ का एक जिला है. इस जिले का पूरा नाम बलौदाबाजार-भाटापारा है. इसी भाटापारा में जन्मा है छत्तीसगढ़ी सिनेमा का सबसे सफल सितारा, छत्तीसगढ़ के करोड़ों लोगों के दिलों में राज करने वाला एक ऐसा नायक जिसे उसके परिवार वाले, उनके बचपन के दोस्त, भाटापारावासी, उसके स्कूल-कॉलेज वाले रामानुज के नाम से जानते हैं. यही रामानुज शर्मा जब सिनेमाई दुनिया में आया तो फिर अनुज शर्मा के रूप में छा गया. रामानुज से अनुज बनने और संघर्षों की सीढ़ियों को चढ़कर पद्म सम्मान पहुँचने की कहानी अनुज के बेहद दिलचस्प रहे है. बिल्कुल किसी फिल्मी कहानी की तरह ही.


अनुज शर्मा का जन्म भाटापारा में 15 मई 1976 को हुआ था. वह बचपन से रचनात्मक गतविधियों में शामिल रहा. उसे कला के सभी तरह की विधाओं में रुचि रही. वे अपने स्कूल के सबसे सफल और आदर्श छात्र रहा है. स्कूल-कॉलेज के दिनों में स्काउट, एनसीसी में सक्रिय रहे. स्कूली शिक्षा के दौरान उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार 1992 (स्काउट), आल इण्डिया बेस्ट कैडेट 1997 (एन सी सी) सी सर्टिफिकेट 1998 (एन सी सी एयर विंग) व कला के क्षेत्र में कई पुरस्कार प्राप्त किये.

अनुज शर्मा इन दिनों तक फिल्मों के बारे में कभी सोचते भी नहीं थे. वे बस फोर्स में जाने का सपना देखा करते थे. उन्हें लगता था कि वे एयरफोर्स में काम करेंगे. यही वजह कि एनसीसी के एयर विंग में रहते उन्होंने बेस्ट कैडेट का पुरस्कार मिला था. लेकिन उनका यह सपना ही रह गया है. वे अपने इस सपने को पूरा नहीं कर पाए. हालांकि उनके जीवन में एयरफोर्स के लिए इंटरव्यू देने का मौका जरूर आया था, लेकिन तब उनके पास डिग्री नहीं थी. सपना यही टूट गया और बिखर गया. यह सन् 2000 बाद की बात थी. तब तक अनुज अपनी पहली छत्तीसगढ़ी फिल्म के साथ पूरे प्रदेश में छा गए थे. बावजूद इसके वे चाहते थे कि एयरफोर्स में जाए. पर ऐसा हुआ नहीं.


बचपन के दिनों में पिता को खो देने के बाद अनुज के जीवन का संघर्ष शुरू हो चुका था. वे अपनी जिम्मेदारियों को समझने लगे थे. इसलिए जब वे भाटापारा से रायपुर कॉलेज की पढ़ाई के लिए आये तो पढ़ाई का खर्च निकालने मार्केटिंग कंपनी में काम करने लगे. यह अनुज के लिए कठिन दौर था. लेकिन कहते संघर्ष जीसके जीवन में जितना अधिक होता है आगे चलकर वही सफल होता है. अनुज भी ऐसे ही सफल व्यक्तियों की शीर्ष पंक्तियों में खड़े भी हुए.

अनुज कॉलेज के दिनों में कला के क्षेत्र में पूरी तरह से अग्रणी रहे. गायन अनुज के जीवन का हिस्सा रहा है. वे जितने सफल अभियन के क्षेत्र में हैं उनते ही सफल गायन के क्षेत्र में भी हैं. कॉलेज के दिनों में होने वाले कार्यक्रमों अनुज का गायन होता ही था. उन्होंने गायन के लिए शास्त्रीय संगीत की शिक्षा भी ली. कई साक्षात्कारों में अनुज ने कहा कि उन्होंने गरीबी के अनेक दिन काटे हैं. कई मौको पर उनके जेब में पैसे तक नहीं होते थे. उन्होंने आर्थिक कठिनाइयों के बीच अपनी पढ़ाई पूरी की है. सेकंड साइकल खरीद कर शिक्षा लेने और जॉब करने तक के जीवन को भी जिया हूँ.


सन् 1998-99 में ये वो दौर था जब अनुज कॉलेज में अपनी पढ़ाई पूरी करने वाला था. अनुज स्नातकोत्तर की शिक्षा पूरी कर जीवन को एक नई दिशा देने की ओर अग्रसर था. और यही दौर अनुज के जीवन को बदलने वाला भी था. उसे एक नई मोड़ देने वाला. इन दिनो बॉलीवुड में कई फिल्मों और धारावाहिकों में काम करके लौटे छत्तीसगढ़ के फिल्म निर्माता-निर्देशक सतीश जैन एक रंगीन छत्तीसगढ़ी फिल्म बना रहे थे. फिल्म का नाम था ‘मोर छइँया भुइँया’. इस फिल्म के सतीश जैन को एक ऐसे चेहरे की तलाश तो जो बिल्कुल युवा हो, उसके चेहरे पर संघर्ष और आक्रोश हो पर मासूमियत भी हो.

सतीश जैन की यह तलाश रामानुज शर्मा पर जाकर खत्म हुई. जी वही भाटापारा वासी रामानुज शर्मा, जो ‘मोर छइँया भुइँया’ फिल्म के बाद अनुज शर्मा कहलाये. रामानुज को देखते ही सतीश जैन ने कहा मिल गया मुझे मेरे फिल्म का नायक. तब शायद कॉलेज में पढ़ने वाले रामानुज को यह एहसास नहीं था कि आगे चलकर वह छत्तीसगढ़ी फिल्मों के सुपरस्टार अनुज शर्मा बनेंगे. अनुज ने भी आर्थिक समस्याओं को देखते हुए फिल्म के लिए हाँ कर दी.


सन 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के साथ जब फिल्म ‘मोर छइँया भुइँया’ सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई, तो रातो-रात अनुज शर्मा प्रदेश के युवाओं के दिलों में छा गए. वे मानों नवगठित राज्य में युवाओं के आदर्श, चरित्र और सपनों के प्रतीक बन गए. यह फिल्म रायपुर के बाबूलाल टाकीज में 106 दिन लगातार 5 शो में चली और सफलतापूर्वक 27 सप्ताह तक चली. इस फिल्म ने शोले और जय संतोषी माँ जैसी फिल्मों के रिकार्ड तोड़ दिए थे. यही नहीं नयापारा और राजिम के एक-एक सिनेमा हाल में पूरे 24 घंटे में आठ शो में प्रदर्शन का अनूठा रिकार्ड भी इस फिल्म ने बनाया था.

भले ही अनुज शर्मा रातों-रात स्टार बन गए, लेकिन इसके साथ उनके सामने भविष्य की चुनौतियां भी थी. क्योंकि फिल्मी जगत में आने और सिनेमाई पर्दे के साथ जनमानस में छा जाने के बाद कहीं नौकरी कर पाना आसान नहीं था. अनुज इसे बखूबी समझ रहे थे. उन्हें यह चिंता सताने लगी कि आगे फिल्म में काम नहीं मिला तो क्या हो ? और ऐसा हुआ भी 2002 में ‘मया ले ले मया दे दे’ जैसी सूपर हिट फिल्म के बाद अनुज के सामने फिर आर्थिक संकट की स्थितियाँ पैदा हो गई. छत्तीसगढ़ी सिनेमा को बड़ा घाटा होने लगा. बड़ी संख्या में लोग फिल्म बनाने लगे और फिल्में फ्लॉप होते गई.

सन् 2002 से लेकर 2008 तक अनुज के समक्ष स्टार होने के बाद भी बड़ी चुनौतियाँ थी. एक लंबा संघर्ष था. लिहाजा उन्होंने कई एल्बमों में भी काम किया. और फिल्मी दुनिया में अपने संघर्ष को जारी भी रखा. इसी बीच सतीश जैन फिर से एक फिल्म अनुज के लिए लेकर ‘मया’. इस फिल्म ने एक बार फि अनुज के फिल्मी कैरियर को उड़ान दे दी. इसके बाद फिर अनुज ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. वे लगातार सफलता की ओर बढ़ते गए. फिर उन्होंने अनेक तरह के कार्यक्रमों के साथ खुद को तराशना शुरू किया और खुद को कला के क्षेत्र में स्थापित कर लिया.

अनुज शर्मा ने छत्तीसगढ़ी फिल्मों में अपना सफर जारी रखा साथ-साथ ही उन्होंने टीवी और रेडियो की दुनिया में अपनी छाप छोड़ी. उन्होंने ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ पर आंचलिक लोक संगीत के कार्यक्रम फोक झमाझम का संचालन प्रारंभ किया, जो बहुत ही सफल रह. बतौर एंकर उन्होंने 125 एपिसोड इस कार्यक्रम को संचालित किया. इसके साथ ही 94.3 माय एफएम पर उन्होंने छत्तीसगढ़ी गीतों का कार्यक्रम माय 36 डिग्री भी प्रस्तुत किया.

अनुज शर्मा ने अपनी रचनात्मकता को यहीं तक सीमित नहीं रखा. उन्होंने कई चर्चित विज्ञपानों को निर्माण भी किया. जिसमें शराबबंदी पर आधारित उनका विज्ञापन करू हे अब्बड़ करू हे….बहुत ही चर्चित हुआ. इसके साथ ही उन्होंने अनुज नाइट के साथ स्टेज शो की शुरुआत भी की. आज आरुग बैंड नाम से वे शो करते हैं. भारत के कई राज्यों के साथ विदेशों में वे अपनी प्रस्तुति दे चुके हैं.

20 वर्षों के उनके फिल्मी कैरियर में अनेक तरह के सम्मान उन्हें मिले. इसमें कई बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के साथ प्ले बैक सिंगर का सम्मान शामिल हे. छत्तीसगढ़ी सिनेमा और कला के क्षेत्र में उनके अतुल्यनीय योगदान को देखते हुए सन् 2014 में उन्हें भारत सरकार की पद्म सम्मान से नवाजा गया. उन्हें राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया.

आज अनुज शर्मा का जन्मदिन है. उनके जन्मदिन विशेष पर यह उनकी कई कहानियों के बीच संघर्ष की एक कहानी थी. इस स्टोरी में बहुत सी बातें छूट भी गई है. उसे फिर कभी किसी मौके पर कहेंगे. वास्तव में अनुज उन युवाओं के लिए एक प्रेरणा है जो संघर्ष के रास्ते जीवन में कुछ कर गुजरना चाहते हैं. अपनी छाप छोड़ना चाहते हैं. जन्मदिन की ढेर सारी बधाइयों और शुभकामनाओं के साथ उम्मीद करते हैं अनुज शर्मा छत्तीसगढ़ी संस्कृति, छत्तीसगढ़ की मिट्टी की खुशबू को इसी तरह से पूरी दुनिया में फैलाते रहेंगे.