डॉ. भवानी प्रधान

आत्मनिर्भरता समय की मांग है। हमें इस अवसर को समझना होगा और खुद को तैयार करना होगा, ताकि देश के साथ -साथ स्वयं भी आत्मनिर्भर बन सकें। आत्मनिर्भर होना बहुत ही सम्मान और स्वाभिमान की बात है। इससे बेरोजगारी दूर होंगी और देश, प्रदेश विकास की राह पर धीरे-धीरे आगे बढ़ेगाl ग्रामीण भारत की रक्षा से ही समृद्धि के द्वार खुलेंगेl

कहते हैं कि हर आपदा में कुछ अवसर छिपे होते हैं। हमें इस अवसर का लाभ उठाकर अपने आप को सुदृढ़ व समर्थ बनाने का समय है। हमें प्रकृति के नियमों का पालन करना चाहिए। सदियों का गौरवपूर्ण इतिहास बताता है कि भारत जब समृद्ध था तब सोने की चिड़िया कहा जाता थाl आत्मनिर्भरता कोई नई चीज नहीं है। हमारे गाँव सदियों से आत्मनिर्भर रहे हैं। अन्नदाता किसान और मजदूर जब खेतोँ में मेहनत करके मिट्टी से सोना निचोड़ते थे, तब भारत पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर था। उस समय कभी किसी आर्थिक मंदी ने प्रभावित नहीं किया और न ही आर्थिक संकट से घबराये थेl आज पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था डगमगा गई है तब भी किसान और मजदूर के चेहरे में सिकन नहीं है।

आज फिर से मेहनत के दम पर कमर कस लिए हैं। अपने जन्मभूमि में आकर मेहनत और आत्मविश्वास के दम पर भारत को प्रगति के पथ पर आगे ले जाने के लिए पूर्ण रूप से तैयार हैं। एक बार फिर आत्मविश्वास उपजा तो उसे आत्मनिर्भरता में बदलने में देर नहीं लगेगीl एक समय था जब गाँव में आंनद ही आनंद रहता था, सबके लिए रोजगार भी था सुनार, लोहार, बढ़ाई, नाई, मोची, धोबी, तेली, पंडित से लेकर हर तरह के पेशे वाले लोग गाँव में ही रहते थे तब गाँव में सुख, शांति, समृद्धि भी था, जब से गाँव के लोग शहरों में पलायन करने करने लगे, गाँव उजड़ने लगा।

हर आपदा में अवसर छिपे होते है। हर समस्या अपने साथ समाधान लेकर आती है। इस महामारी ने जो हालात पैदा किये वे इशारा कर रहे हैं कि गाँव की सुनी गलियां खिलखियेगी, फिर मुखर हो उठेंगे सुने आँगन, धरती उपजाऊ बन सूखे खेतों में फिर से लहलहायेगी फसलें, चौपालों में रौनक लौट आएगी। देश की असली बुनियाद तो गाँव ही हैं। अब समय आ गया है कि हर गाँव को समृद्ध करके लघु और कुटीर उद्योग को बढ़ावा देने की। भारत को बचाना है और गाँव को सुरक्षा करना है तो ग्रामोद्योग अत्यंत आवश्यक है। स्थानीय कारोबार को उपजाने की योजना बनाई जाए। देश के श्रमिक और किसान जो हर परिस्थिति, हर मौसम में दिन रात डटकर परिश्रम कर रहे हैं, उसे आर्थिक रूप से प्रोत्साहन करने की योजनाएं बनाई जाए। सोने की चिड़िया कहलाने वाले भारत में फिर से इतिहास दोहराने का समय आ गया है।

लेखिका
राजनांदगांव शास. महा. में अतिथि प्राध्यापक हैं