रायपुर। झीरमघाटी नक्सल कांड की जाँच कर राष्ट्रीय जाँच एजेंसी(NIA) ने आज एक बार फिर से उन तीन प्रत्यक्षदर्शियों को बयान के लिए बुलाया जो कि इस घटना के दौरान कांग्रेस के नेताओं के साथ शामिल थे. हालांकि एनआईए के समक्ष गवाहों ने अपना बयान दर्ज नहीं कराया. जिन तीन लोगों को बुलाया गया था उनमें कांग्रेस नेता दौलत रोहरा, रेहान और वसीम शामिल थे.
दौलत रोहरा लल्लूराम डॉट कॉम से बातचीत में कहा कि कल एनआईए की ओर नोटिस मिला था. नोटिस में कार्यालय में आकर बयान देने को कहा था. वे एनआईए के ऑफिस गए जरूर थे, लेकिन उन्होंने बयान दर्ज नहीं कराया. क्योंकि इस मामले में उनका कोर्ट केस में चल रहा है. उन्होंने एनआईए को लिखकर दे दिया है कि उनका केस कोर्ट में चल रहा है, लिहाजा वे बयान देने में असमर्थ हैं. इसी तरह से रेहान ने भी अपना बयान एनआईए को नहीं दिया है.
दौलत रोहरा ने कहा कि सन् 2013 में जब यह घटना हुई, तो उस दौरान हमें बयान के लिए बुलाया गया था, लेकिन बयान तब भी दर्ज नहीं हुआ था. इसके बाद 2014 में हमने न्यायिक आयोग के समक्ष शपथ-पत्र दिया था. एनआईए की जाँच इस दौरान चलती रही, लेकिन कभी हमारा बयान ही दर्ज नहीं हुआ. हमने इस पूरे मामले सीबीआई जाँच की मांग की, लेकिन यह मांग अधूरी ही रही. 2019 में एक अन्य प्रत्यक्षदर्शी विवेक वाजपेयी के साथ हाईकोर्ट में याचिका लगाई. इस मामले की सुनवाई अभी हाईकोर्ट में चल रही है.
दौलत रोहरा का कहना है कि उन्हें एनआईए की जाँच पर कतई भरोसा नहीं है. क्योंकि एनआईए 2014 और 2015 में दो बार बिना हमारे बयान दर्ज किए क्लोजिंग रिपोर्ट स्पेशल कोर्ट में दे चुकी है. सच्चाई यही है कि सही तरीके से अभी इस पूरे मामले में जाँच नहीं हुई. जिसके चलते आज भी झीरमकांड से पर्दा नहीं उठ सका है. कांग्रेस की सरकार बनने के बाद झीरम की नए सिरे से जाँच के लिए एसआईटी गठित की गई है, लेकिन एनआईए केस डायरी नहीं दे रही है. एनआईए जाँच के नाम पर सिर्फ खाना-पूर्ति ही करते रही है. हमने न्याय व्यवस्था पूरा भरोसा है. उम्मीद करते हैं झीरम का सच सबके सामने आएगा.