-विजय बहादुर सिंह

राष्ट्रीयता के दावेदार और संस्कृति के स्वयम्भू संरक्षकों के पास संवाद के नाम पर विचार की जगह गालियाँ, इससे काम न चले तो मारपीट, इससे भी काम न हुआ तो जानलेवा हमला और हत्या। वैसे राम ,कृष्ण विवेकानंद इनके परम आराध्य है।संघ इनका गुरुकुल है और इनके विचारक हैं सावरकर, गुरु गोलवलकर, दत्तोपंत ठेंगड़ी,पं. दीनदयाल उपाध्याय और मनमोहन वैद्य। शायद और भी लोग हों जिनका नाम मेरी जानकारी में नहीं है। ये शायद ही कभी अपने विचारकों में वैदिक ऋषियों, उपनिषदों के वैश्विक दार्शनिकों, तीर्थंकर महावीर, प्रज्ञा पारमिता वाले विश्व के असाधारण दिग्विजयी दार्शनिक गौतम बुद्ध या फिर शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, वल्लभाचार्य, रामानंद, सूफी संतों, सिखधर्म के संस्थापक गुरु नानकदेव या गुरु गोविन्द सिंह, परवर्तियों में राजाराम मोहन राय, दयानंद, सर सैयद अहमद खाँ, शिबली, ज्योति बा फुले, रानाडे और इसी तरह भारत के क्रांतिकारी संतों, भक्त कवियों या फिर परमहंस रामकृष्ण का नाम भारत के चिंतकों और विचारकों में लेते हों। अम्बेडकर भी इनके लिए चूँकि वोट जुटाने के उपयोग में आते हैं, इस नाते जब तब मजबूरी में याद हो आते हैं।

लेकिन इनके अपने ज्ञनियों को नहीं पढ़ा है तब आप निरक्षर,अज्ञानी, राष्ट्र और संस्कृति विरोधी और हिन्दू. विरोधी हैं।हकीकत जबकि यह कि अभी भी विशाल हिन्दुत्व न केवल इनसे असहमत है बल्कि इनसे दूर और अलग है। वस्तुतः इनका हिन्दुत्व रामायण, महाभारत वाला हिन्दुत्व नहीं है जो सत्य की रक्षा ,मर्यादा का पालन ,औरअन्याय पीड़ित समाज की रक्षा के लिए नये धर्मपालन की घोषणा और समस्त साधु यानी सज्जनों के समाज को उसके चतुर्दिक के त्रासों से मुक्ति दिलाता है। धर्म को ये मंदिरों से जोड़ते हैं जबकि भारत के किसी भी ग्रन्थ में धर्म को उच्चतम मानव आचरण से परिभाषित किया जाता -अब तक तो-किया जाता रहा है।

अफसोस पहले इन्होंने गौ रक्षा के नाम पर मुसलमानों को अपने निशाने पर लिया और अब ये उन सारे हिन्दुओं को लेने की कोशिश में लग गए हैं जो तमाम चीजों और बातों पर इनसे भिन्न ढंग से अपनी राय रखते औरजीवन संबंधी अपनी समझ रखते हैं।आशंका है कल ये सिखों तक भी आएंगें और ईसाइयों तक भी। आतंक पैदा कर ये जैनियों बौद्धों को भी अपने रास्ते लाने की पहल करेंगें।

क्या यह चिंता की बात नहीं है? इस पर मिलजुलकर सोचना और रास्ता खोजना क्या साहित्य चर्चा से कहीं अधिक जरूरी बात नहीं है जबकि संकट एकदम दरवाजे आ खड़ा हो?

– विजय बहादुर सिंह की फेसबुक पोस्ट से साभार
(ये लेखक के निजी विचार हैं. विजय बहादुर सिंह हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार व विचारक हैं)