रायपुर। अदिवासियों के अधिकारों को लेकर आवाज उठाए जाने पर वर्ष 2016 में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा गलत तरीके से फंसाए जाने पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने कड़ा फैसला सुनाया है. आयोग ने दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर नंदिनी सुंदर के साथ सभी 13 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को एक-एक लाख रुपए क्षतिपूर्ति देने का आदेश 7 जुलाई को जारी कर छह हफ्तों के भीतर रकम अदा करने का सबूत पेश करने को कहा है.

मामले में जिन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को क्षतिपूर्ति दिए जाने का आदेश पारित किया गया है, उनमें दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर नंदिनी सुंदर के अलावा अर्चना प्रसाद, विनीत तिवारी, संजय पराते, मंजु, मंगला राम कर्मा, सीएच प्रभाकर, बी दुर्गा प्रसाद, बी रबिंद्रनाथ, डी प्रभाकर, आर लक्ष्मइय्या, मोहम्मद नजीर और के राजेंद्र प्रसाद शामिल हैं. इन 13 आरोपियों को क्षतिपूर्ति करने के लिए डीजीपी डीएम अवस्थी और मुख्य सचिव आरपी मंडल को आदेशित किया गया है.

नंदिनी सुंदर, संजय पराते व अन्य ने संयुक्त वक्तव्य जारी करमानवाधिकार आयोग के फैसले स्वागत करते हुए बताया कि 5 नवम्बर 2016 को छत्तीसगढ़ पुलिस ने हम लोगों के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं, आर्म्स एक्ट और यूएपीए के तहत सुकमा जिले के नामा गांव के शामनाथ बघेल नामक किसी व्यक्ति की हत्या के आरोप में एफआईआर दर्ज किया था. बताया जाता है कि यह मामला शामनाथ की विधवा विमला बघेल की लिखित शिकायत पर दर्ज किया गया था.

बहरहाल, इसके प्रमाण हैं कि अपनी शिकायत में उसने हम में से किसी का भी नाम नहीं लिया था. 15 नवम्बर 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ़्तारी से हमें संरक्षण दिया था. चूंकि छत्तीसगढ़ सरकार ने मामले की जांच करने या इसके खात्मे के लिए कोई कदम नहीं उठाया, हमने वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर छत्तीसगढ़ सरकार ने इस मामले की जांच की और हत्या के मामले में हमारा कोई हाथ न पाए जाने पर फरवरी 2019 में अपना आरोप वापस लेते हुए एफआईआर से हमारा नाम हटा लिया था.