कोलंबो। भारत के बाद श्रीलंका के राजनीतिक परिदृश्य कमलमय हुआ है. प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे की कमल फूल निशान वाली पार्टी एसएलपीपी ने 225 सीटों वाले संसद में दोतिहाई से ज्यादा सीटों पर काबिज हुई है. चुनाव में विपक्ष के बड़े-बड़े नेता धराशाई हो गए हैं.

राजपक्षे के पार्टी की सुनामी इतनी जबरदस्त थी कि लंका के सबसे पुराने राजनीतिक दल यूएनपी के नेता 1977 में राजनीति में कदम रखने के बाद से कभी भी अपनी कोलंबों की सीट नहीं हारने वाले पूर्व प्रधानमंत्री रनिल विक्रमसिंघे को भी अपनी सीट गंवानी पड़ी. यही नहीं चुनाव में लंका की विश्व कप विजेता क्रिकेट टीम के कप्तान और यूएनपी के प्रत्याशी अर्जुना रणतुंगे भी गुम्पाहा सीट से पराजित हो गएवहीं यूएनपी से अलग होकर सत्ता के लिए संघर्ष कर रही पार्टी एसजेबी के नेता और पूर्व प्रधानंत्री रमसिंघे प्रेमदासा के पुत्र सजिथ प्रेमदासा अपनी सीट बचाने में सफल रहे. पार्टी को द्वीप के अन्य हिस्सों में भी कुछ सफलता हासिल हुई है.

चुनाव में जहां महिंदा राजपक्षे कुरुनेगाला सीट और उनके बेटे नमल परिवार की परंपरागत सीट हंबनटोटा से जीत हासिल की. अब लंका के राष्ट्रपति के तौर पर छोटे भाई गोटाबाया राजपक्षे के साथ प्रधानमंत्री राजपक्षे आने वाले पांच सालों तक बिना किसी बाधा के लंका पर शासन करेंगे. अबकी बार लंका की राजनीति में महिंदा के बेटे नमल की भी शक्तिशाली कैबिनेट मंत्री के तौर पर अहम भूमिका होने वाली है.