सत्यपाल सिंह राजपूत, रायपुर। शिशु के लिए मां के दूध से ज्यादा स्वास्थ्यवर्धक दुनिया में कोई भी चीज नहीं है. शिशु को पहले 6 महीने तक मां के दूध के अलावा और कुछ भी नहीं देने की सलाह दी जाती है, वहीं प्रसव के तुरंत बाद स्तनपान कराने से मां को प्रसव के बाद होने वाली पीड़ा से काफी राहत मिलती है. मां की ममता के साथ छाती से लगाकर बच्चा जब दूध पीता है तो वह सम्पूर्ण आहार और रोग प्रतिरोधक क्षमता भी ग्रहण करता है. इस बात को लेकर समाज में जागरुकता लाने और भ्रांतियों को दूर करने के लिए 1 से 7 अगस्त तक स्तनपान सप्ताह आयोजित किया जाता है.

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे वर्ष 2015-16 की रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ के एनएफएचएस-4 के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो यह पता चलता है कि केवल 47.1 प्रतिशत शिशुओं को ही जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान कराया गया है. वहीं 6 माह तक केवल स्तनपान की बात करें तो यह आंकड़ा 77.2 प्रतिशत है. एनएफएचएस-4 के आंकड़े कहते हैं कि प्रदेश में जागरुकता, कुपोषण, भ्रांतियों एवं अन्य कारणों से 22.8 प्रतिशत शिशुओं को 6 माह की उम्र तक ब्रेस्ट फीडिंग का लाभ नहीं मिल पाता है. इस आंकड़े में सुधार लाने के लिए बेहतर काउंसिलिंग की जरूरत है. इन कमियों को दूर करने के लिए हर वर्ष स्तनपान सप्ताह मनाया जाता है और इस दौरान महिलाओं को स्तनपान कराने जागरुक किया जाता है.

स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं कि शिशुवती माता को दूध, दलिया, पोषणयुक्त भोजन के साथ-साथ खूब पानी पीना चाहिए. प्रसव के तुरंत बाद एक घंटे के भीतर या जितना जल्दी हो सके शिशु को स्तनपान कराना चाहिए, माँ का पहला पीला गाढा दूध शिशु के लिए अत्यधिक महत्तवपूर्ण होता है, जिसे कोलेस्ट्रम एंजाइम भी कहा जाता है, जो बच्चे में रोग प्रतिरोधक क्षमता व आईक्यू विकसित करता है. कालीबाड़ी के मातृ एवं शिशु अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. निर्मला यादव ने बताया, प्रसव के बाद प्रथम तीन दिन तक यानी 36 घंटे मां का दूध कम आता है लेकिन बच्चे के आहार के लिए पर्याप्त होता है.

डॉ. यादव के मुताबिक कुछ माताओं में प्रसव के तुरंत बाद दूध नहीं आने की शिकायत होती है. इसके लिए बच्चे को ज्यादा से ज्यादा बार स्तनपान कराया जाना चाहिए. सही तकनीक से स्तनपान कराने के लिए प्रेरित करने से तीन दिनों के बाद मां को पर्याप्त पोषण आहार मिलने से पर्याप्त मात्रा में दूध आना शुरु हो जाता है. समाज में फैली भ्रांतियों, रुढियों व अशिक्षा की वजह से यह मान लेते हैं कि मां स्तनपान नहीं करा सकती है. इन्हीं वजहों से शिशु को मां की बजाय ऊपर का दूध, किसी अन्य महिला व गाय का दूध पिलाना शुरु कर देते हैं, जो कि गलत परंपरा होती है. बच्चा अगर बाहरी दूध पीना शुरु कर देगा तो मां के दूध के प्रति ज्यादा इच्छा नहीं रखते हुए धीरे-धीरे स्तनपान नहीं कर पाता है, जबकि 6 माह तक बच्चे को किसी भी तरह का बाहरी दूध नहीं देते हुए मां का दूध ही पिलाया जाना चाहिए.

शासकीय आयुर्वेदिक अस्पताल के स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ सीएम घाटगे का कहना है कि स्तनपान नहीं कराने वाली ऐसी महिलाओं में जागरुकता की कमी होती है. स्तनपान के लिए परिवार की बुजुर्ग महिलाओं द्वारा सहयोग प्रदान किया जाना चाहिए. जो माताएं प्रसव के बाद 6 महीने तक दूध पिलाती हैं, उनमें ब्रेस्ट कैंसर का खतरा नहीं होता है. मां का दूध बच्चे के लिए वरदान और संजीवनी होता है, जिसमें सभी जरूरी पोषक तत्व होते हैं साथ ही इससे बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है.